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बढ़ते भिखारी : अपराध या रोजगार

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भारत आर्थिक रूप से प्र​गति कर रहा है। देश में अरबपतियों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है तो दूसरी तरफ देश का एक तबका भीख मांगकर पेट भरने को मजबूर है। भिक्षावृत्ति आधुनिक भारत के माथे पर कलंक है। मन्दिरों, मस्जिदों या किसी भी धार्मिक स्थल पर भिखारियों की भीड़ लगी रहती है। कोई इन्हें कुछ भी देने को आगे बढ़े तो सभी उस पर टूट पड़ते हैं। हजारों लोग वास्तव में दो जून की रोटी का प्रबन्ध करने के लिए ऐसा करते हैं तो अनेक लोगों ने इसे पेशा बना रखा है। कई बार ऐसी खबरें मिलती रही हैं कि सड़क किनारे भीख मांगने वाला लाखों का बैंक खाता छोड़ गया। भीख मांगने वाली वृद्धा अपने पीछे लाखों की सम्पत्ति छोड़ गई लेकिन जब हम अस्पतालों, रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों, चौराहों या अन्य सार्वजनिक स्थलों पर भीख मांगती महिलाओं आैर बच्चों को देखते हैं तो सोचने को विवश होते हैं। क्या भीख मांगना अपराध है या नहीं। कानूनी प्रावधानों के जरिये भीख मांगने पर रोक लगाने की कोशिशें अब तक असफल ही साबित हुई हैं। भीख मांगने को कानूनन अपराध घोषित करने के बावजूद भिखारियों की संख्या कम नहीं हो रही है। जिन बच्चों के हाथों में किताबें होनी चाहिए, उनके हाथों में कटोरा थमा दिया जाता है। इस काम में उनके अभिभावक भी सहायक होते हैं।

देश में कुछ क्षेत्र तो ऐसे हैं जहां भीख मांगना पेशा हो चुका है। उत्तर प्रदेश का एक गांव तो ऐसा है जहां सभी पुरुष भीख मांगते हैं आैर अगर पुरुष भीख मांगने का काम नहीं करते तो यह समुदाय उसकी शादी नहीं होने देता। कितने बेरहम हैं यह लोग जो अपने बच्चों के अंग काटकर उन्हें अपाहिज बना देते हैं और उन्हें भीख मांगते के लिए मजबूर कर देते हैं। इस समुदाय के लोग सदियों से भीख मांगते आ रहे हैं और उन्होंने कभी भी अपने हालातों को बदलने के बारे में नहीं सोचा। इस समाज की धारणा बन चुकी है कि नौकरी से अच्छा भीख मांगना है। लोग सोचते हैं कि नौकरी करने से एक माह में मिलेंगे 10-12 हजार लेकिन भीख से कमाई इससे कहीं ज्यादा है। इन लोगों का ऐसा सोचना शिक्षा की कमी के कारण है। दूसरी तरफ देश में भीख माफिया बहुत बड़ा उद्योग है, जो गायब बच्चों के सहारे संचालित होता है। देश में हर साल लगभग 48 हजार बच्चे गायब होते हैं और इनमें से आधे बच्चे तो कभी मिलते ही नहीं। इन गायब बच्चों में से अधिकांश को अपराध और भिक्षावृत्ति में धकेल दिया जाता है।

बाल भिखारी तो पीड़ित है, अपराधी नहीं। कानून के विशेषज्ञ भीख माफिया को नेस्तनाबूद करने के लिए कठोर कानून के पक्षधर रहे हैं लेकिन समाजशास्त्री मानते हैं कि कानून बच्चों को केन्द्र में रखकर बनाने होंगे। समाजशास्त्री भी मानते हैं कि भीख मांगना सम्मानजनक पेशा नहीं है, सिवाय आपराधिक गिरोह या कुछ निठल्ले रहकर भी कमाई करने के इच्छुक इस धंधे को स्वेच्छा से अपनाते हैं। समाज में ऐसे उदाहरण कभी-कभार मिल जाते हैं कि किसी ने भीख मांगते लोगों की मदद की आैर उन्हें भिक्षावृत्ति से मुक्त कराया। दिल्ली के एक मैकेनिकल इंजीनियर आशीष की नजर भीख मांगते बच्चों पर पड़ी तो उसे देखकर उनके मन में बहुत पीड़ा हुई।

आशीष ने उस बच्चे का दाखिला स्कूल में करवाया और ऐसे कई बच्चों से भीख मांगना छुड़वाया। अब वह देश को भिक्षावृत्ति से मुक्त कराने के लिए पदयात्रा कर रहे हैं। उनकी यात्रा का लक्ष्य है लोगों को जागरूक करना कि वो भिखारियों के प्रति सहानुभूति तो रखें मगर उन्हें भीख न दें। अगर वे पढ़ना चाहते हैं तो उनकी पढ़ाई में मदद करें या फिर कुछ ऐसा करें कि उनका भीख मांगना छूट जाए। भिक्षावृत्ति को अपराध माना जाए या नहीं, यह सवाल कई बार उच्च अदालतों में उठ चुका है। भीख मांगने को अपराध की श्रेणी से बाहर किए जाने की मांग से जुड़ी जनहित याचिकाओं की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने कहा कि देश में अगर सरकार भोजन या नौकरियां देने में असमर्थ है तो भीख मांगना अपराध कैसे हो सकता है? अदालत ने कहा कि ‘‘यदि हमें एक करोड़ रुपए की पेशकश की जाती है तो आप या हम भीख नहीं मांगेंगे, एक व्यक्ति केवल भारी जरूरत के कारण ही भीख मांगता है न कि अपनी पसन्द के कारण।’’

केन्द्र सरकार ने अदालत को बताया था कि बाम्बे प्रिवेंशन एक्ट में पर्याप्त प्रावधान है। इस अधिनियम के तहत भीख मांगने को अपराध बताया गया है। केन्द्र ने यह भी कहा कि यदि गरीबी के कारण ऐसा किया गया है तो भीख मांगना अपराध नहीं होना चाहिए। राजधानी दिल्ली में भी भीख मांगना अपराध है। पहली बार भीख मांगते पकड़े जाने पर तीन साल की कैद हो सकती है। आप देख सकते हैं कि कानून का कोई असर नहीं, आप भिखारियों से जेलें नहीं भर सकते। देश में बेरोजगारी बहुत बड़ा मुद्दा है। इस बात पर भी चर्चा हो चुकी है कि पकौड़े बेचना रोजगार है या नहीं। जिस देश में शिक्षित युवाओं को नौकरी नहीं मिल रही वहां भिखारियों को नौकरी कौन देगा? भिक्षावृत्ति पर एक ऐसे कानून की जरूरत है जो इनके पुनर्वास और सुधार पर जोर डालता हो, न कि इसे गैरकानूनी मानता हो। सरकारों को इस बात की पहल करनी होगी कि मजबूरी के चलते भीख मांगने वालों को स्वरोजगार का प्रशिक्षण दिया जाए आैर इनके लिए जीविकोपार्जन के रास्ते खोले जाएं। समाज को भी ऐसे लोगों को मुक्त हृदय से अपनाना होगा। जिन लोगों ने इसे पेशा बनाया हुआ है उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई भी जरूरी है। समाज को चाहिए कि भीख देना बन्द करे और इन लोगों को काम करने की आदत डालने के लिए प्रेरित करें। यह काम सरकार से ज्यादा समाज को ही करना होगा।

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