आज भारत की सभी सुहागिनें और होने वाली सुहागनें करवा चौथ का व्रत रख रही हैं। बहुत ही अच्छा और परम्पराओं व भारतीय संस्कृति का प्रतीक है यह त्यौहार। यह हिन्दू औरतों का त्यौहार है। यह तीन रिश्तों का गूढ़ प्रतीक है। बहू, सास और बेटा क्योंकि बहू अपने पति के लिए व्रत रखती है। सास अपने बेटे की मंगल कामना करते हुए सुबह बहू को सरगी (सुहाग की सभी वस्तुएं) देती है और बहू शाम को पूजा के बाद अपने पति के लम्बे जीवन की मंगल कामना करते हुए अपनी सासु मां को बया मनस कर (पूजा कर) उसकी मनपसन्द का उपहार देती है, शृंगार की वस्तुएं देती है।
सच पूछो तो मुझे यह त्यौहार बहुत ही अच्छा लगता है। कहने को तो हम हर दिन अपने पति की लम्बी उम्र की मंगल कामना करती हैं परन्तु इस दिन का आनन्द ही कुछ और है। सासु मां से लाड़, पति से लाड़ और मुझे तो वे दिन नहीं भूलते, जब शादी से पहले मेरे पापा मां को लेकर बाजार जाते थे। खुद चीजें खरीद कर देते थे और मां के चेहरे की रौनक ही कुछ और होती थी। फिर शादी हुई, वहां सिस्टम बिल्कुल अलग था। मैं सासु मां और चाची सास के साथ बाजार जाती थी। सामान खरीदते थे और सबसे बढिय़ा बात लगती थी कि सुबह सरगी के समय सारा परिवार इकट्ठे सरगी खाते थे। पापा, चाचा, अश्विनी जी, उनके सभी भाई-बहनों के साथ फैनियां बड़ी अच्छी लगती थीं, इसे परिवार था। सभी घर के लोग सुबह इक बैठकर सरगी खाते थे जो प्रथा आज भी कायम है।
अश्विनी जी सुबह मेरे साथ उठकर सरगी खाते हैं और वह तो सारा दिन मेरे साथ व्रत भी रखते हैं और अश्विनी जी हमेशा कहते हैं हमारा सात नहीं 107 जन्मों का साथ है और जब हम एक-दूसरे से नाराज होते हैं तो कहते हैं एक ही जन्म का साथ है और यह आखिरी जन्म है। पिछले 26 सालों से मैं सुषमा स्वराज जी के साथ शाम को पूजा करती थी और वही कथा सुनाती थीं। हमारे घर बहुत बड़ा सर्कल बनता था। पिछले 2 सालों से वह बीमार थीं और अभी उन्हें इन्फैक्शन से बचना है तो पिछले 3 साल से हम इके करवा चौथ नहीं मना रहे। जब वह बीमार हुईं तो मेरी एक-एक सहेली ने उनके लिए प्रार्थना की क्योंकि सभी करवा चौथ पर उनको बहुत मिस कर रही थीं। इस बार वैसे भी मुझे जल्दी और छोटे सर्कल में करना है क्योंकि मुझे अवार्ड लेने विज्ञान भवन जाना है। प्रियंका गांधी, जिसके साथ घर की एक ही दीवार थी, 14 साल हमने शगुन इके किए, वह थाली नहीं बदलती थीं, बाकी सारे शगुन व सजना-संवरना मेरे साथ ही करती थीं।
मुझे इन दिनों करनाल, दिल्ली बहुत सी प्री-करवा चौथ, दीवाली एग्जीबिशन की ओपनिंग करने के लिए जाना हुआ। इसमें सबसे ज्यादा जो मुझे बात आकर्षित कर रही थी वह थी युवा लड़कियां जो ट्रेडिशनल रूप से तैयार होकर इस त्यौहार में भाग ले रही थीं, चाहे करनाल के ऑल इंडिया वैइव समाज की या पंजाबी बाग महिला मंडल से जुड़ी महिलाएं, उनकी बेटियां, बहुएं। क्योंकि आजकल बड़ा मॉडर्न जमाना है। कहीं-कहीं तो युवा लड़कियां ऐसी दिखती हैं जो शायद इन त्यौहारों में विश्वास नहीं रखेंगी परन्तु कई जगह इसे पारम्परिक तरीके से मनाने में बहुत आगे हैं। हम अपनी संस्कृति अपनी आने वाली पीढिय़ों को दे रहे हैं और मैं तो कहती हूं कि हमारी संस्कृति व देश की परम्पराएं जीवित ही महिलाओं के कारण हैं, जो अपने संस्कार और व्यवहार आने वाली पीढिय़ों को देती हैं।
मैंने भी संस्कार सीखे अपनी जननी मां से जिसने मुझे जन्म दिया और व्यवहार सासु मां से, जिन्होंने मुझे जिन्दगी में व्यवहार सिखाया और अब मैं भी अपनी बहू-बेटी (क्योंकि मेरी बहू ही मेरी बेटी है) उसके साथ मैं मेहंदी लगवाने गई प्रसिद्ध मेहंदी वाली गीतांजलि से जिसने मुझे कहा कि किरण जी जो आप काम कर रही हैं, उसके साथ मैं भी जुडऩा चाहती हूं और आपके साथ काम करना चाहती हूं तो मुझे लगा कि इस बार तो करवा चौथ और भी सफल हो गया जो देश की मशहूर मुम्बई की गीतांजलि और उसकी बेटी आगे आने वाले समय में मेरे साथ जरूरतमंद लड़कियों के लिए काम करेंगी और जिस तरीके से वह पूजा कर सुहागिन होने का आशीर्वाद देकर मेहंदी लगाती हैं, संस्कार फैलाती हैं तो मुझे लगा इस बार से हम काम के साथ संस्कार भी फैलाएंगे तो अच्छा रहेगा, अगर हम किसी जरूरतमंद बेटी या महिला को अपने पांव पर खड़ा करेंगे जो कि हम पहले ही चौपाल के माध्यम से कर रहे हैं, तो इस त्यौहार मैं और भी मंगल कामनाएं होंगी।