भारत-नेपाल के सम्बन्ध सदियों पुराने हैं। दोनों देशों के बीच बेटी और रोटी के सम्बन्ध रहे हैं। ये रिश्ते इतने मजबूत रहे कि उन्हें समाप्त करना नामुमकिन माना जा रहा था लेकिन अब चीन आड़े आ रहा है। चीन के आजाद होने के बाद चीनी नेतृत्व ने नेपाल से कहा था कि वह अपने देश के विकास के लिए भारत से सम्बन्धों को मधुर बनाए रखे क्योंकि नेपाल भारत के काफी निकट है। तब चीन का नेतृत्व अपने देश की स्थिति को सुधारने में ध्यान केन्द्रित कर रहा था। चीन ने अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाने के साथ-साथ अपनी विस्तारवादी नीतियों पर काम करना शुरू किया। अब उसके लिए हिमालय कोई बाधा नहीं।
चीन ने हर तरफ बढ़ना शुरू किया। तिब्बत को कब्जाने के बाद उसने पाकिस्तान, म्यांमार, मालदीव की ओर बढ़ना शुरू किया। अब उसने नेपाल में अपनी गहरी पैठ बना ली है। एशिया की राजनीति तेजी से बदल रही है। चीन लगातार अपना प्रभुत्व बढ़ा रहा है। हाल ही में नेपाल में सम्पन्न हुए आम चुनाव में साम्यवादी राजनीतिक दलों का वर्चस्व रहा है और चीन समर्थक माने जाने वाले के.पी. शर्मा ओली नेपाल के प्रधानमंत्री बन गए।
उन्होंने चीन के वन बैल्ट वन रोड प्रोजैक्ट में नेपाल के शामिल होने की घोषणा कर डाली जिससे भारत की चिन्ताएं काफी बढ़ी हुई हैं। हम हर बार यह कहकर अपने बीच के रिश्तों को परिभाषित करते आए हैं कि सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक आैर धार्मिक रूप से दोनों देश एक-दूसरे के करीबी हैं परन्तु क्या वजह है कि हमें बार-बार यह बात दोहरानी पड़ती है। यानी कहीं न कहीं कुछ ऐसा है, जो दोनों देशों के रिश्तों को प्रभावित करने के लिए समय-समय पर विवश करता है।
जहां तक नेपाल-भारत के सम्बन्धों में आए तनाव की बात है तो इसकी एक वजह मधेशी आंदोलन तो जरूर था। मधेिशयों के पक्ष में खड़ा होना नेपाल के खास समुदाय और राज्य दोनों को ही गवारा नहीं हुआ। पिछले कुछ वर्षों में नेपाल की आंतरिक उठापटक की वजह से दोनों देशों के सम्बन्धों में कड़वाहट दिखी। यह राजनीति है जहां रिश्तों का बनना और बिगड़ना लगा रहता है। इसके लिए सही आैर ईमानदार कोशिश दोनों देशों को करनी होगी।
विकास की राह पर बढ़ने के लिए नेपाल को अपने पड़ोसियों की आवश्यकता है इसलिए नेपाल के हक में एकतरफा नीति कभी भी सही नहीं हो सकती। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि भारत नेपाल की सरकार के साथ सौहार्दपूर्ण वातावरण में काम करने का इच्छुक है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने अपने दो दिवसीय नेपाल दौरे के दौरान भी आश्वस्त किया था कि हम नेपाल में राजनीतिक स्थिरता और विकास चाहते हैं। बदले हुए वातावरण में श्रीमती सुषमा स्वराज के दौरे ने एक सकारात्मक परिदृश्य कायम किया था। भले ही नेपाल यह दिखाने की कोशिश करे कि उसने भारत के विकल्प के रूप में चीन को तलाश लिया है लेकिन सच्चाई नेपाल भी जानता है।
पनबिजली, सड़क जोड़ना, व्यापार के मामलों में दोनों देश एक-दूसरे के सहयोग के बिना आगे नहीं बढ़ सकते, इसलिए यह आवश्यक है कि नेपाल में भारत को लेकर अविश्वास का जो माहौल है उसे दूर किया जाए। पहले कांग्रेस आैर नेपाली कांग्रेस के बीच वैचारिक नजदीकी थी और समाजवादी धारा से जुड़े लोग भी नेपाली कांग्रेस के समर्थक थे लेकिन अब स्थिति एकदम बदली हुई है।
भारत-नेपाल सम्बन्धों में एक घटक अब पाकिस्तान भी है। पिछले महीने पाक के प्रधानमंत्री एस.के. अब्बासी ने अचानक काठमांडाै पहुंचकर नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री ओली को बधाई दी थी। पाक की खुफिया एजैंसी आईएसआई नेपाल को भारत विरोधी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल करती है। भारत को चीन-नेपाल-पाकिस्तान का त्रिकोण हमेशा से नापसंद है। नेपाल अब सार्क सम्मेलन के आयोजन को लेकर भी पाक के नजदीक जा रहा है।
जब भी नेपाल को जरूरत पड़ी भारत ने दिल खोलकर उसकी मदद की लेकिन वह बार-बार भारत पर उसके अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप का आरोप लगाता रहा है। के.पी. शर्मा ओली और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी में आज कई मुद्दों पर बातचीत हुई आैर उलझे हुए रिश्तों को फिर से मधुर बनाने के लिए लम्बी बातचीत हुई। यह भी तय हुआ कि भारत और काठमांडाै को रेल लाइन से जोड़ा जाएगा।
दोनों देशों में सम्पर्क बढ़ाने पर भी चर्चा हुई। इस बात पर प्रतिबद्धता व्यक्त की कि वह अपनी खुली सीमाओं का दुरुपयोग नहीं होने देंगे। प्रधानमंत्री ने नेपाल को भरोसा दिलाया कि भारत हमेशा की तरह नेपाल को सहयोग देता रहेगा। उम्मीद है कि दोनों देशों के सम्बन्धों को नया आयाम मिलेगा और भविष्य में दोनों देशों में हुई संधियों की समीक्षा भी हो सकती है। अब देखना यह है कि नेपाल भारत आैर चीन से सम्बन्धों में किस तरह संतुलन कायम रखता है ताकि भारतीय हित भी प्रभावित नहीं हों आैर नेपाल का अपना भी विकास हो।