लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

भारत : रेशमी नहीं है सिल्क रूट

चीन लगातार भारत की घेराबंदी में जुटा हुआ है। यह भी सत्य है कि दुनिया का कोई भी राष्ट्र चीन की अनदेखी नहीं कर सकता। यहां तक कि सबसे बड़ी ताकत अमेरिका भी नहीं।

चीन लगातार भारत की घेराबंदी में जुटा हुआ है। यह भी सत्य है कि दुनिया का कोई भी राष्ट्र चीन की अनदेखी नहीं कर सकता। यहां तक कि सबसे बड़ी ताकत अमेरिका भी नहीं। चीन हर दृष्टि से ताकतवर बन रहा है और भारत के संदर्भ में उसकी ताकत को गम्भीरता से लेना ही होगा। चीन लगातार भारत पर इस बात के लिए दबाव बना रहा था कि वह उसकी महत्वाकांक्षी ‘वन बैल्ट वन रोड’ परियोजना में शामिल हो। यह परियोजना तीन महाद्वीपों एशिया, यूरोप और अफ्रीका को सीधे तौर पर जोड़ेगी। किसी एक देश का दुनिया में यह सबसे बड़ा निवेश माना जा रहा है लेकिन इसके साथ ही यह चर्चा भी शुरू हो गई है कि इस परियोजना के जरिये चीन सम्पर्क बढ़ाना चाहता है या फिर वैश्विक राजनीति में अपनी हैसियत बढ़ाना चाहता है। ड्रैगन के इरादों से पूरी दुनिया वाकिफ है, भारत की अपनी चिंताएं हैं। इसीलिए भारत ने आज से शुरू हुए ‘वन बैल्ट वन रोड’ सम्मेलन का बहिष्कार करने का निर्णय लिया है। भारत का तर्क बिल्कुल सही है कि कोई भी देश ऐसी किसी परियोजना को स्वीकार नहीं कर सकता, जो संप्रभुत्ता और क्षेत्रीय अखंडता पर उसकी मुख्य चिंता की उपेक्षा करती हो। सम्पर्क परियोजनाओं को इस तरह आगे बढ़ाने की जरूरत है, जिससे संप्रभुत्ता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान हो। वास्तव में इस परियोजना का एक हिस्सा पाक अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है। इसे चीन और पाकिस्तान के बीच आर्थिक कॉरीडोर भी कहा जाता है। भारत शुरू से ही इसका विरोध करता रहा है क्योंकि भारत का स्टैंड यह है कि पीओके पाकिस्तान का नहीं भारत का हिस्सा है। नेपाल चीन में शुरू हुए फोरम में हिस्सा ले रहा है। पाकिस्तान तो चीन का पहले से ही सखा बना हुआ है। नेपाल ने तो फोरम शुरू होने से पहले ही चीन के साथ करार पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। भारत के लिए स्थिति और भी जटिल हो गई है क्योंकि अमेरिका भी यू-टर्न लेते हुए इसमें भाग ले रहा है। रूस भी इस बैठक में भाग ले रहा है। मोदी सरकार के बाद से अमेरिका और भारत के रिश्तों में नए बदलाव आए हैं लेकिन आपत्तियों के बावजूद अमेरिका का इस सम्मेलन में भाग लेना भारत के लिए बड़ा झटका है। परम्परागत रूप से नेपाल के साथ अच्छे आर्थिक और राजनीतिक संबंध रखने वाला भारत पिछले कुछ वर्षों से चीन से लगातार स्पर्धा का सामना कर रहा है। चारों तरफ जमीनी सीमा से घिरा नेपाल आयात के मामले में प्रमुखता से भारत पर निर्भर है और समुद्री सम्पर्क के लिए पूरी तरह भारतीय बंदरगाहों पर आश्रित है। बंगलादेश भी इस फोरम में शामिल हो चुका है।
चीन लगातार दोस्त खरीद रहा है। ओबीओआर लगभग 1400 अरब डालर की परियोजना है, जिसे 2049 में पूरा किए जाने की उम्मीद है। चीन इस परियोजना की मदद से हान शासन के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले सिल्क रूट को फिर से जिंदा करने की जुगत में है। करीब 2000 वर्ष पहले सिल्क रूट के जरिये पश्चिमी और पूर्वी देशों के बीच कारोबार होता था। चीन इस रूट की मदद से यूरोप में अपना सिल्क बेचता था और बदले में धातुओं का आयात करता था। तब भारत भी इस रूट  का हिस्सा था लेकिन इस बार चीन की महत्वाकांक्षा दूसरी है। यह परियोजना उसकी सामरिक नीति का हिस्सा है लेकिन इसका मुखौटा आर्थिक है। भारत की परेशानी यह भी है कि क्योंकि यह परियोजना चीन की है इसलिए टैक्स और इंफ्रास्ट्रक्चर पर उसका ही नियंत्रण होगा जिसका सीधा लाभ चीन को मिलेगा। भारत की अर्थव्यवस्था चीन की तरह निर्यात आधारित नहीं है। डर तो इस बात का भी है कि चीन सिल्क रूट के जरिये हिन्द महासागर में शक्ति के वर्तमान संतुलन को चुनौती देगा। उसकी कोशिश महत्वपूर्ण समुद्री रास्तों के साथ-साथ बंदरगाह परियोजनाओं को हासिल करना, म्यांमार और पाकिस्तान के जरिये चीन तक ऊर्जा और परिवहन गलियारा बनाना और बड़े व्यापार रास्तों के जरिये ईंधन भरने वाले स्टेशन और सामुद्रिक नियंत्रण वाले आउटपोस्ट के रूप में मोतियों की माला गूंथना है। अगर भारत इस सिल्क रूट में शामिल होता है तो इससे चीन को हिन्द महासागर के पिछवाड़े से आक्रमण का मौका भी मिल सकता है।
पाकिस्तान के जरिये फारस की खाड़ी तक चीन के आर्थिक गलियारा से हिमालय के इलाके वाली सीमाओं से लेकर हिन्द महासागर के रास्तों तक चारों तरफ से भारत चीनी सेना के दायरे में रहेगा। आखिर भारत करे तो क्या करे। भारत कौन सा कार्ड खेले? रणनीतिक तौर पर भारत ने भले ही इस परियोजना को खारिज कर दिया है लेकिन वाणिज्यिक तौर पर उसके लिए इसे लम्बे समय तक टालना मुश्किल लगता है। सिल्क रूट भारत के लिए रेशम जैसा मखमली नहीं होगा। भविष्य में रणनीति और कूटनीति क्या करवट लेती है, कुछ कहा नहीं जा सकता। फिलहाल मोदी सरकार इस मामले पर अलग-थलग खड़ी दिखाई देती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

1 × four =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।