अन्ततः आयरलैंड में वर्षों पुराना गर्भपात कानून बदल ही गया। गर्भपात कानून को लेकर हुए जनमत संग्रह में आयरलैंड के लोगों ने गर्भपात कानूनों में बदलाव के समर्थन में वोट दिया है और अब यहां की महिलाएं भी गर्भपात करा सकेंगी। आयरलैंड के अबाॅर्शन लॉ में बदलाव के लिए महिला संगठन लम्बे समय से आवाज उठाते रहे हैं लेकिन इस कानून में देरी की बड़ी वजह है कि यहां का बहुसंख्यक कैथोलिक समुदाय हर हाल में गर्भपात का विरोधी रहा। ऐसे में भारत की बेटी का संघर्ष इस बदलाव का अहम किरदार बनकर उभरा और आखिरकार देश में कानून में बदलाव को लेकर जनमत तैयार हुआ। आयरलैंड में भारतीय मूल की सविता हलप्पनवार का 6 वर्ष पहले मिसकैरिज हो गया था। हालांकि कड़े कैथोलिक कानून के चलते गर्भपात कराने की कई बार मांग कर चुकी सविता को इसकी इजाजत नहीं दी गई। इस वजह से उसकी मौत हो गई। डाक्टरों ने गर्भपात करने से इन्कार कर दिया था क्योंकि सविता का भ्रूण जीवित था। डाक्टरों ने स्पष्ट कह दिया था कि एक कैथोलिक देश में उसे गर्भपात नहीं कराना चाहिए।
सविता के पति ने डाक्टरों से गुहार लगाई थी कि वह हिन्दू है, कैथोलिक नहीं तो उन पर यह कानून क्यों थोपा जा रहा है तो डाक्टरों ने कहा था कि कानून के मुताबिक वह जीवित भ्रूण का गर्भपात नहीं करेंगे। सविता की मौत के बाद यह सवाल उठ खड़ा हुआ था कि आयरलैंड में मां की जान से भ्रूण की जान को अधिक अहमियत क्यों दी जा रही है। सविता की मौत के बाद से ही गर्भपात कानून के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हुए। महिलाओं के संघर्ष के चलते वहां की सरकार ने गर्भपात के मुद्दे पर कानूनी स्पष्टता लाने की घोषणा की थी आैर कहा था कि वह एक ऐसा कानून बनाएगी जिससे मां को जान का जोखिम होने पर गर्भपात का प्रावधान होगा। तब वहां के डाक्टरों के लिए ऐसे कोई दिशा-निर्देश नहीं थे कि उन्हें किन हालातों में गर्भपात करना है और किनमें नहीं। इसके बाद ही मां की जिन्दगी खतरे में होने पर गर्भपात की मंजूरी के लिए 2013 में इस कानून में बदलाव किया गया था। सविता खुद दन्त चिकित्सक थी। जब उसकी मौत का मामला वहां की अदालत में गया तो ज्यूरी ने इसे चििकत्सकीय हादसा करार दिया जबकि परिवार गुहार लगाता रहा कि अगर उसे गर्भपात की अनुमति दी जाती तो सविता की जान बचाई जा सकती थी।
आयरलैंड में गर्भपात कानून में बदलाव इसलिए नहीं हो रहा था क्योंकि यह विशुद्ध रूप से वोट की राजनीति थी।कोई भी राजनीतिक दल कैथोलिक समुदाय को नाराज नहीं करना चाहता था। सभी इस मुद्दे पर ढुलमुल रवैया आैर दोहरे मानदंड अपनाते रहे जबकि आयरलैंड का हर नागरिक जानता है कि लड़कियां गर्भपात के लिए ब्रिटेन और अन्य देशों में जाती हैं मगर वे इस बारे में खामोश रहते रहे। आइरिश फ्री स्टेट एवं उत्तरी आयरलैंड राजनीतिक और आर्थिक दृष्टि से ग्रेट ब्रिटेन का एक भाग था, परन्तु सदियों से चलते राष्ट्रीय आंदोलन के फलस्वरूप 1921 ईस्वी में फ्री स्टेट का जन्म हुआ। दरअसल आयरलैंड के राष्ट्रीय आंदोलन के पीछे धार्मिक भावना मुख्य थी इसलिए कैथोलिकों की धार्मिक मान्यताओं के चलते गर्भपात पर पाबंदी जैसे कानून बनाए गए। कानून परिस्थितियों में बदलाव के साथ बदले जाने चाहिएं लेकिन आयरलैंड ने कानून बदलने में बहुत लम्बा समय लिया। मुझे आश्चर्य होता है कि जिस देश में नागरिकों से ज्यादा मोबाइल फोन हों, जिस देश में समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता प्राप्त हो, वहां महिलाओं के अधिकारों को आज तक कुचला ही गया। यह अच्छी बात रही कि आयरलैंड के प्रधानमंत्री लियो वराडकर ने गर्भपात कानून को लेकर जनमत संग्रह कराया और लोगों ने गर्भपात पर पाबंदी के विरोध में वोट दिए।
भारतीय मूल के डाक्टर लियो वराडकर आयरलैंड के अब तक के सबसे युवा प्रधानमंत्री हैं। वराडकर के पिता अशोक मुम्बई में एक डाक्टर थे जिन्होंने 1970 में मरियम नामक नर्स से शादी की थी। लियो वराडकर मुम्बई भी आते-जाते हैं। उन्होंने गर्भपात पर पाबंदी की पेचिदगियों को समझा आैर जनमत संग्रह कराया। सविता का परिवार भी जनमत संग्रह के परिणामों से खुश है आैर उनके पिता चाहते हैं कि इस ऐतिहासिक कानून को सविता लॉ के नाम से जाना जाए। भारत की बेटी का संघर्ष इस बदलाव में अहम किरदार बनकर उभरा और अन्ततः आयरलैंड में कानून में बदलाव को लेकर जनमत तैयार हुआ। आयरलैंड के इतिहास में सविता हमेशा जीवित रहेगी।