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भारत की कूटनीतिक जीत

कतर की अदालत द्वारा भारत के 8 पूर्व नौसेना कर्मियों की मौत की सजा को कैद में बदलने के फैसले से न केवल उनके परिवारजन बल्कि पूरा राष्ट्र राहत महसूस कर रहा है। निःसंदेह इस संवेदनशील मामले का निपटारा भारत सरकार के लिए बड़ी चुनौती था। मोदी सरकार की यह अ​ग्नि परीक्षा थी क्योंकि कतर के साथ भारत के संबंध उतने मधुर नहीं हैं जितने सऊदी अरब और संयुुक्त अरब अमीरात से हैं। शरिया कानूनों पर चलने वाली कतर की अदालतों से भी ऐसे फैसले की उम्मीद कम ही थी। भाजपा की एक पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा के बयान पर भारत की आलोचना करने वाली कतर सरकार की आवाज खाड़ी देशों की सबसे तेज आवाजों में से एक थी। नूपुर शर्मा मामले के बाद से दोनों देशों के संबंधों में उतार-चढ़ाव देखा गया था। भारत और कतर के बीच कश्मीर और भारतीय मुसलमानों को लेकर भी तनाव रहा है। 2022 में कतर में हुए फीफा वर्ल्ड कप फुटबाल के उद्घाटन समारोह के लिए विवादास्पद इस्लामी प्रचारक जाकिर नाइक को आमंत्रित किये जाने की खबरों पर भारत में भी बहुत से सवाल खड़े हो गए थे। अन्तर्राष्ट्रीय मामले कई बार बहुत लम्बे खिंच जाते हैं।
भरसक प्रयास करने के बावजूद हम अभी तक पाकिस्तान की जेल में बंद कुलभूषण जाधव को रिहा नहीं करवा पाए हैं। कुलभूषण को पाकिस्तान ने आतंकवाद और जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया था और एक सैन्य अदालत ने 2017 में उन्हें मौत की सजा सुनाई थी। भारत इस मामले को लेकर अन्तर्राष्ट्रीय कोर्ट ऑफ जस्टिस में पहुंचा था जिसने पाकिस्तानी कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी और पाकिस्तान से कुलभूषण को दूतावास संबंधी सहायता और मुलाकात का अवसर देने को कहा था लेकिन कुलभूषण जाधव को पाकिस्तान ने रिहा नहीं किया है। 1990 में ईराक में दो भारतीयों का अपहरण कर लिया गया था तब कतर की ही शरिया अदालत के प्रमुख ने हस्तक्षेप कर दोनों भारतीयों की रिहाई करवाई थी।
कतर में आठ पूर्व सैनिकों की फांसी की सजा पर रोक भारतीय कूटनीति की जीत ही मानी जानी चाहिए। विदेश मंत्रालय ने कूटनयिक स्तर पर इस मामले में काफी मेहनत की और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी कतर के अमीर से इस मामले में बातचीत की थी। भारतीय राजदूत को आठों पूर्व नौसैनिकों से मिलने की अनुमति भी दे दी गई थी। भारत के 8 पूर्व सैनिकों को अब 3 साल से 25 साल की सजा दी गई है लेकिन चिंता की बात यह है कि इन पर लगे जासूसी के आरोप अभी हटाए नहीं गए हैं। इसका अर्थ यही है कि भारत सरकार को अभी और लड़ाई लड़नी पड़ेगी। इन लोगों को बेगुनाह साबित करने के लिए अभी और कूटनीतिक दबाव बनाए जाने की जरूरत है।
यह सभी पूर्व नौसेना कर्मी एक ओमानी नागरिक की कंपनी दहरा ग्लोबल टेक्नोलॉजिज एंड कंसल्टेंसी सर्विसेज के लिये कतर में सेवाएं दे रहे थे। कतर की सुरक्षा एजेंसी ने इस कंपनी के मालिक को भी गिरफ्तार किया था, लेकिन उसे पिछले साल के अंत में छोड़ दिया गया था। यह कंपनी कतर की एक कंपनी के लिये सेवाएं उपलब्ध करा रही थी। उल्लेखनीय है कि मौत की सजा पाने वालों में एक पूर्व नौसेना कमांडर पूर्णेन्दु तिवारी, जो इस ओमानी कंपनी में प्रबंध निदेशक थे, भी शामिल हैं। उन्हें विगत में भारत व कतर के बीच संबंध सुधारने में योगदान के ​लिए प्रवासी भारतीय सम्मान दिया गया था। बहरहाल, अभी यह स्पष्ट नहीं है कि कतर की खुफिया एजेंसी स्टेट सिक्योरिटी ब्यूरो ने इन पूर्व नौसेना कर्मियों को क्यों गिरफ्तार किया है। अभी आरोप सार्वजनिक नहीं हुए हैं, जिसकी वजह से सजा पाने वाले पूर्व अधिकारियों के परिजन खासे चिंतित हैं। इनमें से कई वरिष्ठ नागरिक होने के साथ कई तरह के उम्र से जुड़े रोगों से जूझ रहे हैं।
मीडिया रिपोर्टों से ही पता चला कि इन पर कतर की पनडुब्बी परियोजना से जुड़ी जानकारी इजराइल को देने का आरोप लगाया गया था। पूर्व नौसेना कमांडर पुर्णेन्दु तिवारी के अलावा नवतेज सिंह गिल, सौरभ वशिष्ठ, अमित नागपाल, संजीव गुप्ता, वीरेन्द्र कुमार वर्मा, सुग्नाकर पकाला और रागेश को आरोपी बनाया गया था। इन लोगों ने लम्बे समय तक नौसेना अधिकारियों के रूप में देश की सेवा की है। भारत के एक-एक नागरिक का जीवन महत्वपूर्ण है आैर हमारे लिए बेशकीमती भी है। भारत ने जब भी संकट आया अपने नागरिकों की रक्षा करने और उन्हें संकट से निकालने में हर सम्भव कोशिश की है। संकट की घड़ी में भारत ने अपने नागरिकों को सुरक्षित निकाला है। विषय की संवेदनशीलता को देखते हुए केन्द्र सरकार की यही कोशिश होगी कि राजनयिक स्तर पर या मध्यपूर्व के मित्र देशों की मदद से जेल में बंद इन नौसैनिकों को रिहा कराया जाए। कतर में करीब 9 लाख भारतीय कार्यरत हैं। भारत उनके लिए भी कोई मुश्किलें खड़ी नहीं कर सकता। न्याय के लिए संघर्ष करना ही पड़ेगा। उम्मीद की किरण कतर के अमीर को लेकर है जो विशेष परिस्थितियों में क्षमादान देने की शक्ति रखते हैं। भारत के लोगों को भी इससे सबक लेना चाहिए और ऐसी कम्पनियों के साथ काम नहीं करना चाहिए जो भारतीयों की सुरक्षा के प्रति सजग न हो। उम्मीद तो यही की जाती है कि कतर के अमीर इनको क्षमादान देकर इन पूर्व सैनिकों को भारत भेज दें।

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