भारत की समुद्री सीमाओं को निर्धारित करने वाले हिन्द महासागर क्षेत्र में आजकल जो तूफान उठा हुआ है वह किसी भी स्तर पर हमारे राष्ट्रीय हित में नहीं है। बंगलादेश में जहां राजनैतिक बवंडर इसकी राजधानी ढाका की सड़कों पर अशान्ति फैलाता नजर आ रहा है वहीं छोटे से देश माले में संविधान व कानून के शासन को जिस प्रकार वहां की सत्तारूढ़ सरकार धत्ता बता रही है उससे यह इलाका अन्तर्राष्ट्रीय ताकतों को अपने-अपने हिसाब से खेलने की मोहलत दे सकता है। यदि एेसा होता है तो यह भारत के लिए अत्यन्त चिन्ता की बात होगी। कुल चार लाख की आबादी वाले माले देश में कट्टरपंथी मजहबी ताकतें अपनी जोर आजमाइश की कोशिश कर रही हैं। एेसा पहली बार नहीं हो रहा है कि माले में लोकतान्त्रिक अधिकारों को बरतरफ करके इमरजेंसी लगाई गई हो मगर एेसा पहली बार हुआ है कि इस देश के राष्ट्रपति ने अपने ही देश के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को एक तरफ फेंकते हुए उसके न्यायाधीशों को ही गिरफ्तार कर लिया, माले में पिछले साल से ही एेसे संकेत मिलने लगे थे कि यह देश अराजकतावादी ताकतों के हाथ का खिलौना बन सकता है। जिस तरह यहां की सरकार ने पुराने राष्ट्रपति मुहम्मद गयूम व उनके पुत्र को गिरफ्तार करके पुराने चुने हुए राष्ट्रपति मुहम्मद नौशीद को निर्वासन में श्रीलंका में ही रहने काे मजबूर किया हुआ है, उससे साफ है कि इस क्षेत्र में दुनिया की बड़ी ताकतों ने अपनी राजनीतिक बाजियां लगा रखी हैं।
अमरीका और चीन ने हिन्द महासागर को सैनिक प्रतियोगिता का अखाड़ा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रखी है। इसकी वजह साफ है कि एक तरफ चीन हिन्द महासागर में अपने जंगी जहाजी बेड़ों को तैनात करके क्षेत्र के देशों को सन्देश देना चाहता है कि वे अमरीका के पाले में जाने से पहले कई बार सोचें और दूसरी तरफ अमेरिका संकेत दे रहा है कि उसकी ताकत का कोई मुकाबला नहीं कर सकता। सवाल पैदा हो सकता है कि चार लाख की आबादी वाले देश की रणनीतिक स्थिति का लाभ चीन व अमेरिका दोनों ही क्यों उठाना चाहते हैं ? चीन ने तो गत वर्ष दिसम्बर महीने में माले के साथ उन्मुक्त व्यापार समझौता करके साफ कर दिया था कि इस देश की रणनीतिक स्थिति को अपने हक में करने के लिए वह सभी प्रकार के उपाय कर सकता है। इस देश में बन्दरगाह व सैनिक अड्डे बनाने के लिए भी चीन जमकर निवेश कर रहा है। दूसरी तरफ इस मुस्लिम देश में कट्टरपंथी इस्लामी ताकतें भी अपना दबदबा बढ़ाने की फ़िराक में हैं। इस देश में आईएसआईएस समर्थक ताकतें सक्रिय बताई जाती हैं लेकिन भारत की सोच शुरू से ही रही है कि माले की सुरक्षा का सीधा सम्बन्ध भारत की सुरक्षा से है।
अतः माले पर यह एेतिहासिक जिम्मेदारी है कि वह अपनी स्वतन्त्रता कायम रखने के लिए भारत के समुद्री हितों की सुरक्षा इसकी अग्रिम पंक्ति बनकर करे। मुगलकाल से ही माले के सुल्तानों और दिल्ली के बादशाह के बीच आपसी सुरक्षा का पुख्ता समझौता रहा है मगर अब अमेरिका व चीन के हिन्द व प्रशान्त महासागर क्षेत्र में एक-दूसरे का मुकाबला दिखाने की होड़ ने हालात को बदल दिया है। हमें इस क्षेत्र में पूरी तरह स्वतन्त्र होकर अपने हितों की रक्षा करनी होगी और माले में लोकतन्त्र की रक्षा में अपना योगदान उसी प्रकार देना होगा जिस प्रकार हमने 2007 में नेपाल में दिया था। दूसरी तरफ बंगलादेश में भी जो राजनीतिक उखाड़–पछाड़ चल रही है उससे बंगाल की खाड़ी के मुहाने पर बैठे इस मुल्क में स्थायित्व होना भी भारत के हक में होगा। बंगलादेश भी भारत की समुद्री सीमाओं का रक्षक है। इसके भीतर यदि लोकतन्त्र को खतरा पैदा होता है तो वह भारत के लिए अशुभ माना जाएगा।
हम पहले भी देख चुके हैं कि इस देश में किस तरह बंग बन्धू शेख मुजीबुर्रहमान के राजनीतिक प्रभाव को समाप्त करने के लिए साजिश की गई थी और भारत के लिए पूर्वी सीमा पर भी तनाव पैदा करने की कोशिशें की गई थीं लेकिन इस देश के लोगों की बंगला संस्कृति ने लोकतंत्र की लौ को फिर से जलाया और भारत के साथ अपने सम्बन्ध मधुर बनाने की दिशा में निर्णायक पहल की। दरअसल हिन्द महासागर एेसा इलाका है जिसमें भारतीय संस्कृति की विरासत आज भी विभिन्न देशों में आपसी सम्बन्धों को निर्धारित करती है। यही वजह थी कि भारत ने इन्दिरा गांधी के शासनकाल में पूरे क्षेत्र को शान्ति क्षेत्र घोषित करने की मांग की थी मगर अस्सी के दशक से इस क्षेत्र में परिस्थितियां बदलने लगीं उसने भारत के लिए चुनाैतियां ज्यादा खड़ी कर दीं। हमें बहुत धैर्य के साथ माले व बंंगलादेश के सन्दर्भ मंे अपनी नीति तय करनी होगी।