लोकतंंत्र की सीधी सी परिभाषा यही है कि जहां लोगों की चलती है, लोग अपना प्रतिनिधि चुनते हैं। भारत के लोकतंत्र को दुनिया में सबसे विशाल माना गया है तो यह भी सच है कि अच्छे-अच्छे नेताओं को भारतीय लोकतंत्र ने अर्श से फर्श पर पटका है। जब लोगों ने चाहा तो किसी को भी जमीन से आसमान की बुलंदी पर भी पहुंचाया है। आम आदमी पार्टी यानी कि ‘आप’ ने दिल्ली में जिस तरह से इतिहास रचा उसके उदाहरण दुनिया में कहीं नहीं मिलेंगे। यह भी सच है कि ऐतिहासिक सफलता के बाद यह पार्टी अब जिस तरह से अपने अंदरूनी लोकतंत्र को भंग कर रही है वैसी मिसाल भी कहीं और नहीं मिलेगी। लोगों का एक पार्टी के प्रति अंध विश्वास और उसकी पार्टी के कर्णधारों का अपनी ही पार्टी के लोगों के प्रति अविश्वास क्यों पैदा हुआ कि आज यही आम आदमी पार्टी अंदरूनी जंग की इस कदर शिकार हुई है कि लोग इससे दूरियां बढ़ाने लगे हैं।
मुख्यमंत्री केजरीवाल को इस मामले में संगठन और सरकार के बीच तालमेल बनाना होगा। पार्टी के जल्दी विस्तारके चक्कर में और दिल्ली जैसा इतिहास हर जगह दोहराने की होड़ में संगठन और सरकार के मुखिया अरविंद केजरीवाल गच्चा खा गए। पंजाब और गोवा की छलांग उन्हें महंगी पड़ी। पंजाब और गोवा के चुनावों में उतरना बुरी बात तो नहीं थी परन्तु जिस तरीके से आम आदमी पार्टी ने लोगों के बीच में खुद को प्रस्तुत किया यह बात लोगों को जंची नहीं और उन्होंने पार्टी को करारा जवाब दिया। हार-जीत हर पार्टी के साथ होती है परन्तु आम आदमी पार्टी ने हर मंच पर, हर जमीन पर उस आदमी से रिश्ता जोड़ा जिसका जमीनी आधार था और फिर ऐसे ही लोगों को नेता बनाया लेकिन उनके पांवों की जमीन जब बड़े नेता छीन लेंगे तो आपकी आपसी जंग को देखकर जनता आपके पैर भी जमीन से उखाड़ देगी। यह क्यूं हुआ, कैसे हुआ अब इस पर मंथन करने का समय आ गया है। जो झंडा और जो डंडा लेकर कल तक केजरीवाल ने केन्द्र सरकार के खिलाफ या राज्यों में अन्य सरकारों के खिलाफ आंदोलन किए आज इसी पार्टी की लोकप्रिय सरकार के लोकप्रिय मंत्री और कई अन्य नेतागण आंदोलन कर रहे हैं। कितने ही संस्थापक सदस्य आम आदमी पार्टी को छोड़कर चले गए। भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग को लेकर चलाए गए गांधीवादी नेता अन्ना हजारे के आंदोलन से उत्पन्न आम आदमी पार्टी की नीयत और नीतियों में पारदर्शिता दिखाई नहीं देने पर लोगों ने जिस पार्टी को विधानसभा में 70 में से 67 सीटें दी उसे एमसीडी चुनावों में धूल चटा दी तो यकीनन अब केजरीवाल को कुछ करना होगा।
हर समय नकारात्मकता नहीं चल सकती। केजरीवाल को इस मुद्दे पर न सिर्फ खुद चलना होगा बल्कि अपने साथियों के बीच यह स्पष्टï करना होगा कि हम सब ईमानदार हैं और भ्रष्टाचार से दूर हैं लेकिन जब आपके लोग ही आपके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाएंगे तो आप को शीशे की तरह सब कुछ साफ करना होगा। दुर्भाग्य से आप ऐसा नहीं कर पा रही और अभी तक नकारात्मकता की ही राजनीति कर रही है। इसी नकारात्मकता के चलते अब आप खुद निशाने पर आ गए हैं। हालत यह है कि लाभ के पद को लेकर आम आदमी पार्टी के 21 विधायकों पर निलम्बन की तलवार लटकी हुई है। मामला दिल्ली हाईकोर्ट में है, कुछ भी हो सकता है। उधर पार्टी में जबर्दस्त तोडफ़ोड़ के बीच आपसी अविश्वास की भावना परवान चढ़ी हुई है। ऊपर से एमसीडी चुनावों में पराजय ने तबाही मचा रखी है। पंजाब की हार इतनी दुखदायी नहीं थी जितना इस हार को लेकर आम आदमी पार्टी के बीच घमासान मचा। पुरानों की छुट्टी के बाद नए नेताओं के चयन के बाद जो कुछ हो रहा है वह आम आदमी पार्टी के लिए अच्छा नहीं हो रहा।
आम आदमी पार्टी ने अगर जनता के बीच अपना विश्वास बनाकर कांग्रेस और भाजपा को सबक सिखाया था और नया उदाहरण लिखा था तो अब इसे जनता के दिलों पर राज करना है तो कुछ ऐसा करना होगा कि उनकी आपसी जंग पहले खत्म हो। एक लोकप्रिय पार्टी का इतनी जल्दी ऐसा हश्र यह कल्पना न तो दिल्ली वालों ने की थी जिसने उसे 24 कैरेट का सोना समझा था और न ही खुद आम आदमी पार्टी को यह उम्मीद थी। सवाल पैदा होता है कि दूसरों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने के बाद खुद मुख्यमंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं। उनके खिलाफ आंदोलन हो रहे हैं तो आप क्या जवाब देंगे। आप फंस चुकी है, अपने झगड़ों के अलावा उसने खुद को मझदार में खड़ा कर लिया है। एक तरफ वह गुजरात में भाग्य आजमाएगी तो दूसरी ओर दिल्ली में हालात बेकाबू हैं। आपसी जंग और खींचतान के बीच जनता का विश्वास जीतना जरूरी है। लोकतंत्र में किसी पार्टी की मजबूती के लिए यही समय की मांग है। इस लिहाज से यह आप के लिए अग्रि परीक्षा का समय है।