लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

इंसाफ कहीं खो गया है

NULL

भारत में कानून, कानून की रट लगाने वाले शायद यह देख नहीं पा रहे कि जब सिस्टम ही ध्वस्त हो जाए तो कानून क्या करेगा? अंधा कानून न जाने आंख पर पट्टी बांधे कब का दम तोड़ चुका है, जो प्राकृतिक न्याय की अवहेलना करता है। कानून ताे तब काम करेगा जब मामला उसके द्वार तक पहुंचेगा। जब पुलिस और अपराध करने वाले ही आपस में मिल जाएं तो फिर कानून भी असहाय है। सवाल यह है कि राजनीति के अपराधीकरण ने सिस्टम को नाकारा बना दिया है। आखिर लोग जाएं तो जाएं कहां?

उत्तर प्रदेश की जनता को उम्मीद थी कि शायद भगवा पहनने वाले योगी आदित्यनाथ उनकी परेशानियों को दूर कर देंगे, लेकिन सालभर बीतने के बाद भी उनकी चर्चा ब्रज की होली आैर अयोध्या की दीवाली के कारण ज्यादा होती है। बदमाशों अाैर गैंगस्टरों को या तो सुधर जाएं या फिर राज्य से बाहर चले जाने की बार-बार चेतावनी देने वाले योगी आखिर उस विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को संरक्षण क्यों दे रहे हैं, जिस पर मुख्यमंत्री के आवास पर आत्मदाह का प्रयास करने वाली युवती ने सामूहिक बलात्कार का आरोप लगाया है। अब तक तो उस विधायक को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा देना ​चाहिए था।

विधायक दोषी है या नहीं, इसका निर्धारण न्यायपालिका करती। कोई यूं ही मुख्यमंत्री आवास पर खुद को आग नहीं लगाता। स्पष्ट है कि जब किसी की भी सहनशीलता खत्म होती है तो तभी वह ऐसे कदम उठाता है। ऐसा ही बलात्कार की शिकार महिला के साथ हुआ। वह पुलिस की चौखट पर भी गई तथा भाजपा विधायक, उसके भाई और साथियों पर बलात्कार का आरोप लगाया। तब उसे भगा दिया गया था।

अदालत के आदेश पर एफआईआर लिखी भी गई तो विधायक और कुछ के नाम नहीं थे। मुकद्दमा वापिस लेने के लिए परिवार पर दबाव बनाया गया, मारपीट की गई, जान से मारने की ध​मकियां दी गईं। पीड़िता जब थाने में तहरीर देने गई तो फर्जी मामला बनाकर उसके पिता को जेल भेज दिया गया। पीड़िता जब मुख्यमंत्री के आवास पर मिलने पहुंची तो उसे वहां भी हताशा ही मिली। आखिर उसने खुद को आग लगा ली।

इसके बाद जेल में उसके पिता की संदिग्धावस्था में मौत हो गई। क्या पूरा घटनाक्रम सियासत में बैठे दबंगों के अत्याचार को ही प्रदर्शित नहीं करता है ! महिलाओं के सम्मान की रक्षा की दुहाई देने वाली पुलिस और सत्ता की यह नैतिक जिम्मेदारी नहीं बनती थी कि वह इस मामले में निष्पक्ष कार्रवाई करते। सिस्टम के दरवाजे पर खड़े पहरेदारों की संवेदनाएं शून्य हो चुकी हैं, वे कभी घूस मांगते हैं तो कभी इंतजार कराते हैं। ऐसे में कौन उनकी आवाज सुनेगा?

मुख्यमंत्री गोरखपुर में जनता दरबार लगाते हैं लेकिन बाहर एक रोता हुआ युवक आयुष सिंघल दिखाई दिया। न केवल उसकी फाइल फैंक दी गई बल्कि उसे बाहर भी निकाला गया। मामला कवयित्री मधुमिता हत्याकांड के चर्चित दबंग विधायक के बेटे अमनमणि त्रिपाठी द्वारा उस युवक की जमीन कब्जाने का था लेकिन उसकी कोई सुनवाई नहीं हुई। अमेठी के राहुल चौरसिया की फसल खराब हो गई थी, उसने मदद पाने के लिए मुख्यमंत्री से मुलाकात करनी चाही तो उसकी सारी कोशिशें बेकार हो गईं।

आरोपी भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर ने सियासत की शुरूआत कांग्रेस से की थी, उसके बाद बसपा, सपा और फिर भाजपा में शामिल हुए थे। कौन नहीं जानता कि उनकी छवि एक बाहुबली की है। हर बार चुनाव लड़ा लेकिन इलाका बदल-बदल कर। अब वह सफाई दे रहे हैं कि पीड़ित परिवार की उनके परिवार से 12 वर्ष पुरानी रंजिश है, यह सब उनको बदनाम करने का षड्यंत्र है।

हैरानी की बात यह है कि उत्तर प्रदेश का गृह विभाग कुलदीप सिंह सेंगर को क्लीनचिट देता रहा है। अब कहा जा रहा है कि विवेचना में कुछ और नाम एफआईआर में जोड़े जा सकते हैं। यह सब जानते हैं कि प्रभावशाली विधायक परिवार के सामने पीड़ित परिवार काफी कमजोर है तो पुलिस उनका साथ कैसे देती। अब हंगामा मचा तो विधायक के भाई को गिरफ्तार कर लिया गया है। विधायक की दबंगई आज भी बरकरार है।

मुख्यमंत्री योगी अब कह रहे हैं कि दोषी बख्शे नहीं जाएंगे लेकिन सवाल उठ रहा है कि भाजपा विधायक को अब तक क्यों बचाया जाता रहा। धर्म को धारण करने वाले व्यक्ति से ऐसी उम्मीद नहीं थी। धर्म विशुद्ध सात्विक मापदंडों के आधार पर केवल धारण करने योग्य गुणों का परिचायक माना जाए तो एक धार्मिक व्यक्ति सदा ही पूज्य और नमनीय है। मैं योगी आदित्यनाथ का व्यक्तिगत रूप से सम्मान करता हूं लेकिन सियासत में परिस्थितियां भिन्न हैं, यहां वह धर्म को पीड़ा देने वाले और अधर्म का सुख भोगने वाले लोगों से घिरे हुए हैं। इस चक्रव्यूह को भेद कर उन्हें न्याय का मार्ग निकालना है और पीड़ित परिवार को इंसाफ दिलाना ही होगा। फिलहाल तो इंसाफ कहीं खो गया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

5 × one =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।