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जस्टिन ट्रूडो : बेरुखी का सवाल ही नहीं

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साझा मूल्यों यथा लोकतंत्र, बहुलवाद, सभी के लिए समानता और कानून के राज पर आधारित भारत और कनाडा के सम्बन्ध लम्बे समय से रहे हैं। व्यक्ति से व्यक्ति मजबूत सम्पर्क तथा कनाडा में व्यापक भारतीय जनमानस की उपस्थिति इन सम्बन्धों को मजबूत आधार प्रदान करती है। अप्रवासी भारतीयों के लिए सबसे सहिष्णु देश है कनाडा। 1903 में काम की तलाश में भारत से निकले सिख कनाडा गए। यह देश उन्हें इतना भाया कि वह भारत लौटकर नहीं आए। यह सिलसिला आज भी जारी है। ऐसा इसलिए है कि वह अप्रवासियों का सम्मान करता है और अप्रवासियों ने वहां की संस्कृति को आत्मसात कर लिया है। इसका अन्दाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कनाडा की जस्टिन ट्रूडो सरकार में 4 सिख मंत्री हैं।

कनाडा के हाउस ऑफ कामन्स में पहली बार 19 भारतीय मूल के कनाडियन जीतकर पहुंचे हैं। इनमें से 17 पंजाबी मूल के हैं। कनाडा के रक्षामंत्री भी हरजीत सिंह सज्जन हैं। भारतीय मूल के किसी व्यक्ति का किसी दूसरे देश का रक्षामंत्री बन जाना भारतीयों के लिए गौरव की बात है। कनाडा की घरेलू राजनीति में वहां के भारतीय समुदाय की मजबूत भागीदारी है और इसमें ज्यादातर लोग सिख हैं। कनाडा में पंजाब की झलक साफ-साफ दिखती है। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो परिवार समेत भारत की आधिकारिक यात्रा पर आए हुए हैं। उनके पत्नी और बच्चों के संग ताजमहल देखने, भारतीय परिधान पहनकर अहमदाबाद में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साबरमती आश्रम जाकर भारतीय अन्दाज में नमस्कार करने की तस्वीरें मीडिया में आ रही हैं लेकिन उनके दौरे के दौरान सरकार द्वारा कोई गर्मजोशी न दिखाए जाने पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। यहां तक कि गुजरात दौरे के दौरान न तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उनके साथ दिखे आैर न ही मुख्यमंत्री विजय रूपाणी।

ताज का अवलोकन करते समय भी उत्तर प्रदेेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी नजर नहीं आए। यद्यपि राजनीतिक विश्लेषक इसकी वजह ढूंढ रहे हैं। इसकी वजह ढूंढना व्यर्थ की बात है। प्रोटोकॉल के मुताबिक विदेशी मेहमानों की मेजबानी कैबिनेट मंत्री करता है और ट्रूडो मामले में भी यही प्रक्रिया अपनाई गई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अपनी व्यस्तताएं हैं। यह सही है कि पूर्व में उन्होंने विदेशी मेहमानों की अगवानी खुद कर प्रोटोकॉल तोड़ा है लेकिन उनसे यह अपेक्षा नहीं की जाती कि वह भारत आने वाले हर विदेशी राजनेता का खुद स्वागत करें। जब ईरान के राष्ट्रपति रुहानी हैदराबाद गए थे तब भी मोदी उनके साथ नहीं थे।

23 फरवरी को दोनों की मुलाकात होगी तो फिर वजह ढूंढना बेकार की कवायद होगी। यह सही है कि कनाडा में खालिस्तान आंदोलन को हवा दिया जाना भारत के लिए चिन्ता की बात है। दरअसल जस्टिन ट्रूडो की लिबरल ​पार्टी सिख कनाडाई वोट बैंक पर काफी आश्रित है और उनकी सरकार के कुछ सदस्य खालिस्तानियों के साथ अक्सर दिखाई देते हैं लेकिन खालिस्तान के कारण आज तक दोनों देशों के सम्बन्धों की मधुरता में कोई अन्तर नहीं आया। पिछले वर्ष पंजाब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद पर रहते पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्द्र सिंह ने कनाडा के रक्षामंत्री हरजीत सिंह सज्जन से मिलने से इन्कार कर दिया था क्योंकि वह ऐसा समझते थे कि हरजीत सिंह सज्जन कनाडा में खालिस्तान समर्थकों काे साथ रखते हैं लेकिन कैप्टन अब पंजाब के मुख्यमंत्री हैं आैर उन्होंने जस्टिन ट्रूडो से मुलाकात करने की सहमति दे दी है। दोनों की मुलाकात अमृतसर में ही होगी। जस्टिन ट्रूडो स्वर्ण मन्दिर परिसर भी जाएंगे।

103 वर्ष पुरानी कामागाटा मारु घटना के लिए 20 मई 2016 को जस्टिन ट्रूडो संसद में आधिकारिक तौर पर माफी मांग चुके हैं। कामागाटा मारु घटना के बाद लोग क्रांतिकारी आजादी आंदोलनों में शामिल हुए, यह बहुत महत्वपूर्ण अध्याय था। जस्टिन ट्रूडो की स्वर्ण मन्दिर यात्रा सिख समुदाय के लिए काफी अहम है। कनाडा में पंजाबी को तीसरी भाषा का दर्जा हासिल है, वहां भारतीयों को दीवाली पर आतिशबाजी की अनुमति भी है। जब भारतीय समुदाय कनाडा आैर अन्य देशों में समरसता से रहता है तो फिर भारत में अनेक समुदाय ऐसा क्यों नहीं कर पाते। कनाडा अमेरिका का पड़ोसी देश है। जिस तरह से कनाडा-अमेरिका के मजबूत सम्बन्ध बने हुए हैं, उसी तरह पाकिस्तान और भारत के सम्बन्ध अच्छे क्यों नहीं हो सकते? पाक को कनाडा से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है।

कनाडा के सिख समुदाय की प्रगति के पीछे एक संदेश भी छिपा हुआ है। वह यह है कि भारतीय समुदाय उनसे सबक सीखे, जिस देश में आप रहते हैं, जहां की मिट्टी में आप पले-बढ़े हैं, जहां आपका और आपके बच्चों का जन्म हुआ है, उस देश से मोहब्बत करो। पिछले कुछ सालों में भारत-कनाडा रिश्ते काफी गहरे हुए हैं। परमाणु करार पर हस्ताक्षर होने से साबित होता है कि दोनों के हित साझा हैं। कनाडा ने 2015 में घोषणा की थी कि वह भारत को यूरेनियम की आपूर्ति करेगा। यूरेनियम की खेप भारत भी पहुंच रही है। जस्टिन ट्रूडो के दौरे का उद्देश्य दोनों देशों के बीच व्यापार, ऊर्जा, विज्ञान और इनोवेशन, उच्च शिक्षा, आधारभूत विकास, अंतरिक्ष समेत कई क्षेत्रों के साझा हितों को लेकर द्विपक्षीय सम्बन्धों को मजबूत करना है। क्षेत्रीय मुद्दों के साथ-साथ सुरक्षा आैर आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई को लेकर आपसी सहयोग पर भी बातचीत होगी। भारत खालिस्तान आंदोलन पर अपनी चिन्ताओं से भी उन्हें अवगत कराएगा। उनकी यात्रा की सफलता सुनिश्चित करना भारत के हित में होगा, इसलिए बेरुखी का कोई सवाल ही नहीं।

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