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पत्थरबाजों पर मेहरबानी, हिन्दुओं से दुश्मनी, यह अच्छी बात नहीं

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देश में जो कुछ हो रहा है और पड़ोस में जो कुछ हो सकता है यह एक देश के बॉर्डर पर स्थित राज्य के हुक्मरानों को जरूर सोचना चाहिए। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि देश की सुरक्षा नीति का एक अक्स हमेशा बॉर्डर राज्य में होने वाली गतिविधियों से ही उभरता है। हमारे सीमांत राज्य जम्मू-कश्मीर को लेकर एक पुराना लफड़ा सदियों से चल रहा है तो इसकी वजह वहां का राजनीतिक सिस्टम है। सन् 1948 में भारत-पाक बंटवारे के बाद पाकिस्तान के मामले में जिस तरह से जम्मू-कश्मीर को फोकस करके जो कुछ हुआ और जो कुछ हो रहा है वह यकीनन चिंतनीय है।

आज की तारीख में महबूबा मुफ्ती जम्मू-कश्मीर की सीएम भाजपा की बैसाखियों पर बनी हैं और सुरक्षा के मामले में मैडम ने सब कुछ दांव पर लगा दिया है। हमारी जम्मू-कश्मीर पुलिस और हमारी सेना के साथ-साथ अर्द्ध सैन्य बलों पर पथराव की जो छूट उन्होंने दिलवाई उसका उदाहरण देश के किसी और राज्य में नहीं मिलता। पाकिस्तान की शह पर बॉर्डर पार करके जम्मू-कश्मीर को टारगेट बनाकर हमेशा कश्मीरियों को निशाने पर रखना और ऐसे आतंकवादियों और उनके आकाओं का समर्थन करना भारतीय लोकतंत्र में अगर किसी ने यह काम किया है तो वह महबूबा हैं। इस मामले में भारतीय जनता पार्टी आज सोशल साइट्स पर लोगों के निशाने पर है।

ताजा घटनाक्रम चौंकाने वाला है जिसके तहत महबूबा ने केंद्र से गुजारिश की है कि आतंकवादियों के खिलाफ कोई फायरिंग न की जाए। इस एकतरफा सीज फायर का क्या मतलब है? यह हमारी समझ से बाहर है लेकिन देशवासी तो इतना जानते हैं कि भाजपा के समर्थन से महबूबा की जम्मू-कश्मीर में सरकार है। कितनी हैरानगी की बात है कि जब कश्मीर घाटी में बिगड़े हुए युवकों ने पढ़ाई-लिखाई छोड़कर खुद को आतंकवादियों से जोड़ लिया और फिर सोशल साइट्स पर उनकी छवि हीरो की तरह उभारी जाने लगी तो इसका जनता के दिलो-दिमाग पर गलत असर पड़ता है। भाजपा ने इन युवकों को माफ करके राष्ट्र की मुख्यधारा में आने का मौका दिया।

तो यहां भी महबूबा ने दांव खेल दिया। इस महबूबा से पूछा जाना चाहिए कि पत्थरबाजों और आतंकवादियों की गोलियों से हमारे कितने सैनिक और पुलिस तथा सीआरपीएफ और बीएसएफ जवान शहीद हुए। पत्थरबाजों को माफी का प्रस्ताव जिस दिन जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पास हुआ यह एक बहुत शर्मनाक कांड था, जिसे मैडम ने जमीन पर लागू करके भी दिखा दिया। लगभग नौ हजार से ज्यादा पत्थरबाजों को सेना पर पत्थर फैंकने के लिए माफ कर दिया और आज भी हर जुम्मे की नमाज के बाद हजारों यही पत्थरबाज सेना और पुलिस पर पथराव करना नहीं भूलते। ऐसे में अब श्रीमती महबूबा ने नई दलील दी है कि केंद्र सरकार आतंकवादियों को लेकर एकतरफा सीजफायर घोषित करे। सोशल साइट्स पर लोग साफ कह रहे हैं कि यह कवायद शुरू करके महबूबा ने पाकिस्तानी आतंकवादियों से हाथ मिलाने की आशंका को यकीन में बदल दिया है।

राजनीतिक दृष्टिकोण से भाजपा को इस मामले में कुछ सोचना ही होगा। ताज्जुब तो इस बात का है कि इसी महबूबा ने जिस तरह से कश्मीर घाटी में मुसलमानों को लेकर एक ध्रुवीकरण स्थापित किया है, हम समझते हैं कि पावर का रिमोट अपने हाथ में रखने वाली भाजपा को अब कोई गंभीर पग उठाना होगा, क्योंकि देशवासी देश में अमन चाहते हैं। इसी कश्मीर घाटी में उन सैन्य अधिकारियों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया गया था, जिन्होंने पत्थरबाजों को गिरफ्तार किया था। भला हो सुप्रीम कोर्ट का जिसने इंसाफ किया और केस वापस लेने का फैसला दिया।
हमारा यह मानना है कि जम्मू- कश्मीर, जिसे पहले ही मैदान और पहाड़ की जमीन के आधार पर बांटा जा चुका है, अब हिन्दू और मुसलमान के चक्कर में अगर राज्य सरकार ऐसी घोषणाएं करने लग जाए, जो आतंकवादियों के खिलाफ एक्शन से रोकती हों तो बताइए देश की सुरक्षा कैसे होगी? सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि महबूबा सब कुछ वही कर रही हैं जो आतंकवादियों को पसंद है। यह सरकार बताए कि उसने कश्मीरियों के लिए आज तक क्या किया? कश्मीरियों को वहां से पलायन के लिए मजबूर करने वाली महबूबा सरकार को अब सबक सिखाने का वक्त आ गया है। इसी महबूबा ने भारत-पाक वार्ता बहाल करने की वकालत की, जो बुरी बात नहीं है लेकिन आतंकवादियों के सुर में सुर मिलाकर बात करना और इसके बाद श्रीनगर से सेना हटाने की बात करना यह कहां तक जायज है।

हमारा मानना है कि भाजपा और केंद्र सरकार को न सिर्फ महबूबा को सबक सिखाना होगा, बल्कि जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा को लेकर ठोस कार्रवाई करनी होगी।लोगों का दिल जीतना जरूरी है। रमजान के महीने में सारी सुविधाओं का पिटारा खोलना और अमरनाथ यात्रा मार्ग पर सुविधाएं न देना ऐसा भारत के लोकतंत्र में नहीं चलेगा। अपने हितों के लिए जब हुक्मरान अपनी बेटी तक का आतंकियों के हाथों अपहरण कराकर राजनीतिक सौदेबाजी कर सकते हैं और ऐसे ही लोग जब राजनीति में आतंकियों के समर्थन की बात केंद्र के सामने रखने लगते हैं तो इसे एक खतरे की घंटी समझना चाहिए। इस मामले में देश को इंतजार है कि जल्द ही महबूबा को सबक सिखाया जाएगा और सरकार की राष्ट्रभक्ति की वही तस्वीर उभरेगी जिसके लिए भाजपा जानी जाती है।

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