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लालबत्ती जलाइये मोदी जी…

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार द्वारा वीआईपी कल्चर यानी अतिविशिष्टï संस्कृति को खत्म करने के फैसले को एक सप्ताह होने को है। बड़ों-बड़ों ने अपनी गाडिय़ों से लालबत्तियां उतार दी हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार द्वारा वीआईपी कल्चर यानी अतिविशिष्ट संस्कृति को खत्म करने के फैसले को एक सप्ताह होने को है। बड़ों-बड़ों ने अपनी गाडिय़ों से लालबत्तियां उतार दी हैं। एक मई से पहले जो ‘खास’ थे ‘आम’ हो गए हैं। मंत्रियों, राजनीतिज्ञों और बेलगाम अफसरों में से अधिकांश ने इस फैसले का स्वागत किया, परन्तु मन ही मन में वे इस फैसले को कोसते रहे। उन्हें ऐसे लगा जैसे-
* प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन पर सर्जिकल स्ट्राइक कर दी हो।
* लालबत्ती, नीलीबत्ती हटाने से आम और खास लोगों का अंतर ही खत्म हो गया।
* रोब झाडऩे वाले मंत्रियों, विधायकों के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आई हैं क्योंकि जनता के बीच उनकी अलग पहचान ही नहीं बची है।
* लालबत्ती लगाकर कारों में घूमने वाले अफसरों को लोग खुद ही जान लेते थे लेकिन अब उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
* लालबत्ती लगी सफेद गाडिय़ों की हालत देखिये-गाडिय़ां भी उदास हैं, हताश हैं, वह आंसू बहाने लगती हैं जैसे किसी ने उनकी मांग का सिंदूर उजाड़ दिया हो, उनके पति की दुर्घटना में मौत हो चुकी हो। लालबत्ती के बिना विधवा जीवन जीने को मजबूर होना पड़ रहा है।
वीआईपी कल्चर खत्म किए जाने के फैसले से जनता और वे अधिकारी खुश हैं जिन्हें लालबत्ती लगाने का अधिकार नहीं था। खास और रसूखदार लोगों के लिए स्टेटïस सिम्बल बनी लाल-नीली बत्तियां अब म्यूजियम का सामान बन चुकी हैं या यूं कहिये कि अब वे घरों के कबाडख़ाने की शोभा बढ़ा रही हैं। लालबत्ती लगी गाडिय़ों में सैरसपाटा करने वाली महिलाएं भी परेशान हैं क्योंकि उन्हें लालबत्ती लगी कार में घूमने की आदत पड़ी हुई थी। कभी-कभी मैं उन कुत्तों को देखता हूं जो लालबत्ती लगी गाडिय़ों में घूमते थे और कार की विंडो में लगे शीशे के पीछे से लोगों को घूरते और भोंकते नजर आते थे। अब इन कुत्तों के भोंकने में भी कोई दम नहीं दिखाई दे रहा। वैसे ये लालबत्तियां फार्म हाऊसों में राजनीतिज्ञों के कुकर्मों, दंगों, हिंसा और प्राकृतिक आपदाओं की चश्मदीद रही हैं। सवाल रुतबे का है। रुतबा गया तो मानो सब कुछ चला गया।

परेशान तो बेचारे लालू जी और उनकी पार्टी राजद के विधायक भी हुए। बिहार के कुछ विधायकों ने तो लालबत्ती उतारने से इंकार कर दिया। भला हो महाराजा पटियाला के खानदान के पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्द्र ङ्क्षसह का जिन्होंने सत्ता में आते ही वीआईपी कल्चर को खत्म कर दिया। उनकी तारीफ तो करनी पड़ेगी। लालबत्ती का अपना ही नशा था। कई नए अफसर जिनको कारें सरकार से नहीं मिलती थीं, वे अपनी निजी कारों में भी लालबत्ती लगाते थे और कार भी खुद ड्राइव करते थे।  लग्जरी गाडिय़ों पर लगी लालबत्ती तो इंसान के रसूख की प्रतीक बन गई थी। इससेे पता चलता था कि गाड़ी का मालिक एक लोकप्रिय और सम्मानित चेहरा है मगर दौलत और लालबत्ती की ताकत के नशे में चूर इनके शहजादों ने एक बार नहीं कई बार सड़कों पर कहर बरपाया। लालबत्ती लगी गाडिय़ों में क्या-क्या होता है यह बात भी किसी से छिपी नहीं। ऐसी गाडिय़ों को पुलिस वाले नहीं रोकते थे क्योंकि उन्हें डर रहता था कि कहीं बड़े अफसर से पंगा ले लिया तो नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा।

दिसम्बर 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि लालबत्ती की गाडिय़ों का इस्तेमाल केवल संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्ति ही कर सकते हैं। जस्टिस जी.एस. सिंघवी की अध्यक्षता वाली पीठ ने केन्द्र सरकार को लालबत्ती पाने का अधिकार रखने वाले लोगों की सूची सौंपने और सम्बन्धित कानून में संशोधन करने को कहा था। न्यायालय में लालबत्ती और नीलीबत्ती का मामला कई सालों से चल रहा था। याचिका में कहा गया था कि सत्ता से जुड़े सदस्य अपना रसूख दिखाने के लिए अपनी गाड़ी पर लालबत्तियां लगाकर घूमते हैं और जनता को परेशान करते हैं। इससे पहले न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की थी कि लालबत्ती और सायरन का इस्तेमाल अंग्रेजी राज की याद दिलाता है।
लालबत्ती के लिए तो कोई मुख्यमंत्री स्तर पर या फिर संगठन स्तर पर छुटभैये नेता भी प्रयास करते रहे हैं कि किसी न किसी कमेटी की चेयरमैनी मिल जाए तो लालबत्ती लगा कर घूमते। हजारों लोगों ने इसमें कामयाबी भी हासिल की, मजे भी लिए।

अब सड़कों पर जाम में, टोल प्लाजा पर बिना लालबत्ती की गाड़ी लेकर फंसने से इन लोगों को परेशानी हो रही है। अब क्या करें, मोदी सरकार ने ऐसा फैसला कर ही लिया तो केन्द्रीय मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों ने अपनी गाडिय़ों पर लगी लालबत्तियां ऐसे हटाईं मानो यह गुलामी की ऐसी जंजीरे थीं जिसमें वह कभी बंधना ही नहीं चाहते थे, लेकिन राष्ट्र धर्म के नाते उन्हें अपनी गाडिय़ों पर लगाकर अपने कत्र्तव्य का निर्वाह कर रहे थे। अनेक राजनीतिज्ञों ने अपनी गाडिय़ों से लालबत्ती उतारते फोटो भी खिंचवाई। लाल-नीली बत्तियां तो खत्म हो गईं लेकिन सवाल है कि मन के भीतर लालबत्ती की सोच भी खत्म होनी चाहिए। इन बत्तियों को लेकर मेरा अपना दृष्टिïकोण है, मेरा मानना है कि लालबत्ती जलनी ही चाहिए। मैं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से अनुरोध कर रहा हूं कि वे लालबत्ती जलाएं। लालबत्ती कब और कहां जलनी चाहिए, इसके बारे में चर्चा कल के लेख में करूंगा। (क्रमश:)

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