वाकई ऐसे भी क्या जाना, इतनी यंग उम्र में और जब ज़िन्दगी के बहुत से काम बाकी हों। जहां बेटियों को मां की बहुत जरूरत हो, पति को पत्नी की हो, फिल्म क्षेत्र की इस उम्र में कर्मठ अभिनेत्री श्रीदेवी की एक बड़ी जरूरत थी। इसमें कोई शक नहीं कि जिंदगी और मौत हमारे बस की बात नहीं, सब ऊपर वाले की मर्जी है। यही संसार का नियम है और यही युगांतरों से चलता आया है और युगों-युगों तक चलता रहेगा। मौत की बात करें तो यह एक डरावना नाम है, परंतु जीवन की सच्चाई भी यही है। हम जब भी किसी की भी मृत्यु के बारे में सुनते हैं तो बड़ा अफसोस होता है परन्तु जीवन की यही सच्चाई है।
उस समय लगता है कि एक दिन ऐसे ही सबने चले जाना है। मेरा अपना कुछ नहीं, साथ आपके कर्म ही जाएंगे और आपके कर्मों से ही लोग आपको याद करेंगे परन्तु समय के साथ हम सब भूल जाते हैं और फिर दुनिया के झूठे मोह-जाल में फंस जाते हैं। जाना तो सभी ने है पर एेसे छोटी उम्र में…. उनके लिए लोगों का प्यार देख कर बहुत अच्छा लगा। हर वह स्त्री खुशकिस्मत होती है जो सुहागिन की तरह जाए और उसकी कदर करने वालों की संख्या भारी हो। मुझे भी ऐसे ही जाना अच्छा लगेगा। बॉलीवुड की बेहद खूबसूरत अदाकारा और बेहद अच्छी इंसान श्रीदेवी जैसा सचमुच न कोई था और कोई है।
उनकी मौत की बात सुनकर विश्वास ही नहीं हो रहा। मौत के कारण कुछ भी रहे हों, परंतु अपने कामकाज के क्षेत्र में श्रीदेवी ने एक कर्मयोद्धा की तरह अपना जीवन जिया। बॉलीवुड में पचास वर्ष तक अभिनय करना और फिर सुपरस्टार की तरह जमे रहना यह एक ऐसा उदाहरण है, जो सिर्फ श्रीदेवी के ही केस में मिलता है। उनकी मौत ने भारत के हर आम और खास इंसान को हिला दिया तो इससे यही सिद्ध होता है कि जिन लोगों को फिल्मों से प्यार नहीं भी था, लेकिन श्रीदेवी की मौत पर वे भी विचलित जरूर हुए। काम का स्ट्रेस कुछ खास लोगों में बहुत ज्यादा होता है। 4 साल की उम्र से लेकर 54 वर्ष तक अभिनय करते चले जाना और हमेशा रिजर्व रहना यह श्रीदेवी की प्रकृति थी। अपने भांजे की शादी में उन्होंने आखिरी दम तक मांगलिक गीत गाए और नृत्य भी किया यानि कि पूरा जीवन आनंद में बिताया। जीवन में कभी हार नहीं मानी। पत्नी, मां, बहन, प्रेमिका जैसे कितने ही किरदार उन्होंने अपनी सैकड़ों फिल्मों में निभाए तो जीवन में उन्होंने अपने चाल-चलन और कर्म क्षेत्र के प्रति समर्पित रहते हुए लोगों के दिलों पर राज भी किया।
आज तक किसी ने उनके आचार-व्यवहार और चरित्र पर उंगली नहीं उठाई। वह किसी पॉलिटिक्स में नहीं थीं लेकिन अभिनय के मामले में मुश्किल से मुश्किल रोल को पूरी प्रैक्टिस करके निभाती थीं। यह पक्ष हमें भी अपने जीवन में काम के प्रति समर्पित रहने की प्रेरणा देता है। अचानक दिल का दौरा पड़ना, बॉथ टब में गिर जाना और फिर मौत यह सब कुछ परिवार के लोगों ने झेला है, परंतु भारत की संस्कृति काबिले तारीफ है। बॉलीवुड के क्षेत्र में उनके महान योगदान को सम्मान मिला। यकीनन इसीलिए उनकी अंत्येष्टि राजकीय सम्मान के साथ की गई। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के अलावा बॉलीवुड की हर हस्ती ने उन्हें आखिरी विदाई दी और उनके बारे में जो कुछ कहा वह सबके लिए प्रेरणादायी है। मैं श्रीदेवी को पहली बार अमर सिंह जी की पार्टी में मिली।
दोनों मियां-बीवी हाथ में हाथ पकड़ कर आए थे उस समय मैंने हल्की सी मुस्कुराहट दी। बात करने की कोशिश भी नहीं की। बेशक अप्सरा लग रही थी परन्तु मेरे मन में यही था कि क्या फायदा किसी का घर बर्बाद करके खुशी लेना। मैंने अपनी जिन्दगी में ऐसी औरतों को कभी भी सम्मान की नज़रों से नहीं देखा चाहे उनकी वजह कुछ भी रही हो परन्तु फिर मैं उन्हें ललित सूरी की बेटी की शादी में मिली। उस समय उनकी दोनों बेटियां पैदा हो चुकी थीं और वह शरीर से कुछ भारी भी हो चुकी थीं परन्तु फिर भी सुन्दरता और भोलापन था। संयोगवश हमें इकट्ठा बैठने का अवसर मिला। न चाहते हुए भी मैंने उससे बातें करीं और मुझे वह अच्छी लगनी शुरू हो गईं। उसने मुझे पूछा कि आप अपने चेहरे पर क्या लगाते हो, फिट कैसे रहते हो।
मैंने उसे अपनी सासू मां के बताए नुस्खे बताए जो साधारण थे। मुझे बहुत देर बात करके लगा वह अपनी सुन्दरता के लिए बहुत ही सतर्क थीं (जैसे हम सब महिलाएं होती हैं) और कुछ असुरक्षित सी भी लगी परन्तु न चाहते हुए भी मुझे वह अच्छी लगने लगी, फिर हम कुछ साल के बाद मिले तो श्रीदेवी बिल्कुल पहले से भी फिट वाली श्रीदेवी थी तो मैंने उससे पूछा क्या जादू किया है तो उसने झट से कहा मैंने कार्बस बंद कर दिए, केवल सब्जियां और सलाद, फ्रूट खाती हूं। फिर हम कई जगह मिले कभी अमर सिंह जी की पार्टी पर, कभी सुब्बा रेड्डी की पार्टी पर, कभी ललित सूरी की दूसरी बेटियों की शादी पर।
वह कम बोलने वाली, बड़ी प्यारी, हमेशा गले लगकर मिलती। उनके पति बोनी कपूर और देवर अनिल कपूर भी बहुत अच्छे से अश्विनी जी को प्यार से मिलते हैं। सारा परिवार बहुत अच्छा है चाहे वह संदीप मरवाह का परिवार हो। वह एक बहुत ही अच्छी मां, बेटी, पत्नी थी यहां तक कि मुझे लगता है जैसे अर्जुन कपूर और उसकी बहन ने अंतिम विदाई दी उसमें भी उनकी कुछ न कुछ अच्छी भूमिका रही होगी। जब खबर मिली तो विश्वास ही नहीं हुआ। झट से प्रिय सहेली टीना अम्बानी को फोन मिलाया। एक मिनट में जवाब देने वाली टीना का फोन नहीं उठा तो समझ आने लगी खबर की सच्चाई और ईश्वर को कहा यह ठीक नहीं, एेसे जाना भी क्या जाना..।