फिर महंगाई से आम जनता त्रस्त है। खुदरा बाजार में रोजमर्रा इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं के दाम काफी बढ़ गए हैं। जिस मौसम में साग-सब्जियों का उत्पादन होता है उस समय इनकी कीमतें कम होती हैं लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो रहा। लगभग पिछले दो माह से प्याज और टमाटर की कीमतें काफी ऊंची बनी हुई हैं। बाजार में दोनों वस्तुएं 50 से 60 रुपए किलो बिक रही हैं। यद्यपि सरकार महंगाई काबू में होने का आंकड़ा पेश करती है और इसे अपनी उपलब्धियों में शामिल करती है लेकिन व्यावहारिक धरातल पर महंगाई नियंत्रण से बाहर लगती है। इस मौसम में टमाटर के दाम तो बढ़ जाते हैं लेकिन प्याज क्यों महंगा है? प्याज को लेकर बाजार में आग क्यों लगी हुई है, यह समझ से बाहर है। प्याज और टमाटर जैसी वस्तुओं की कीमतों में संतुलन बिगड़ने की वजह भंडारण की पर्याप्त सुविधा न होना भी है और किसानों से खरीद नीति में भी व्यावहारिकता का अभाव है।
सर्दियों में अंडे के दामों का बढ़ना आम माना जाता है लेकिन इस बार इसके दाम आसमान को छू रहे हैं। अंडा 7 रुपए में बिक रहा है जो कि करीब-करीब चिकन की कीमत के बराबर माना जा रहा है। पुणे की अंडा मंडी में फिलहाल 100 अंडे 585 रुपए में बिक रहे हैं, जिनकी प्रति अंडा कीमत देखी जाए तो बाजार में 6.50 से 7.50 रुपए पहुंच गई है। इस हिसाब से अंडा 120 से 135 रुपए प्रति किलो पहुंच गया है जबकि चिकन की कीमत 130 से 150 रुपए है। इस बार अंडे के दामों में जिस तरह से इजाफा हो रहा है वह पहली बार देखा गया है। सब्जियों की कीमतें काफी बढ़ी हुई हैं, इसलिए लोग इनके मुकाबले अंडे खाना ज्यादा पसन्द करते हैं। देश में अंडा जल्दी और भारी मात्रा में सप्लाई होता है। लोगों के पास आसानी से पहुंच जाने की वजह से भी यह लोगों की पहली पसन्द बना हुआ है। देश में अंडों की दर नियंत्रण के लिए एनईसीसी की स्थापना की गई है। एनईसीसी की आेर से विगत दो सप्ताह में प्रति अंडे की कीमत में 40 पैसे की बढ़ौतरी की गई। देश में 17 स्थानों पर एनईसीसी की शाखाएं हैं।
गत माह थोक महंगाई 3.59 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई, जबकि सितम्बर में यह 2.6 प्रतिशत थी। एक माह में महंगाई के सूचकांक में लगभग एक फीसदी वृद्धि हुई। केन्द्रीय वाणिज्य मंत्रालय ने मंगलवार को इस सम्बन्ध में आंकड़े जारी किए। आंकड़ों के अनुसार डब्ल्यूपीआई में खाद्य समूह का सूचकांक 2.23 प्रतिशत बढ़ा है। फल एवं सब्जी के दाम लगभग 10 प्रतिशत बढ़े हैं। चाय, अंडा, चिकन सहित रोजमर्रा की वस्तुएं भी 2 से 5 प्रतिशत महंगी हुई हैं। अखाद्य वस्तुओं की कीमत में भी लगभग 9 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। फल, सब्जी, चाय एवं खाद्य तेल की कीमतों में वृिद्ध को इसके लिए जिम्मेदार माना जा रहा है। फुटकर महंगाई की दर भी पिछले 7 महीने के स्तर पर पहुंच गई है। महंगाई का असर खान-पान के साथ ही अन्य क्षेत्रों पर भी पड़ा है। महंगाई ने सस्ते ऋण की उम्मीदों पर भी पानी फेर दिया है।
पैट्रोल और डीजल की कीमतें भी लगातार बढ़ रही हैं जिसका असर महंगाई पर पड़ा है। पैट्रोल-डीजल महंगा होने से माल की ढुलाई भी बढ़ती है। जीएसटी लागू होने के बाद सरकार का दावा था कि इससे खुदरा बाजार में कीमतें नीचे आएंगी लेकिन हकीकत इसके विपरीत ही रही है। बड़ी कम्पनियां एमआरपी बढ़ा रही हैं और मुनाफाखोरी भी बढ़ रही है। जीएसटी के मामले में बचने के लिए छोटे व्यापारी तो बिना बिल के माल बेच रहे हैं। आंकड़े बाेलते हैं, हम सुनते हैं, भरोसा भी कर लेते हैं लेकिन आम लोग महंगाई की मार झेल रहे हैं। मुनाफाखोरी के कारण जीएसटी दरें तय होने से उपभोक्ताओं को होने वाला फायदा भी उन तक नहीं पहुंच पा रहा। जिन भी कारोबारियों को इनपुट टैक्स क्रेडिट मिलता है, उन्हें इसका फायदा अपने ग्राहकों को देना होता है। जब कोई कारोबारी कच्चा माल या अन्य सामग्री खरीदता है तो उसे टैक्स भरना पड़ता है, यह इनपुट टैक्स होता है।
जीएसटी के तहत इस सामग्री से कोई उत्पाद तैयार होता है तो कारोबारी को इनपुट टैक्स भरने की वजह से टैक्स भरते समय छूट मिलती है। यही इनपुट टैक्स क्रेडिट होता है लेकिन इस छूट का फायदा कारोबारी ग्राहकों को देने को तैयार ही नहीं हैं। विशेषज्ञों ने तो कई सवाल खड़े किए हैं। उनका कहना है कि क्या इनपुट टैक्स क्रेडिट का फायदा हर ब्रांड पर आम लोगों को पहुंचाना सम्भव नहीं है? जीएसटी परिषद अब मुनाफाखोरों पर अंकुश लगाने के लिए एंटी प्रोफिटियरिंग नियम बनाने जा रही है। फल-सब्जी सहित सभी आवश्यक वस्तुओं की कीमतों को नियंत्रित करना सरकार का दायित्व है। सरकार को महंगाई के मूल कारणों को समझकर इसका निदान करना होगा।