भारत इतनी विविधताओं से भरा देश है कि इसके हर राज्य के हर अंचल के रहने वाले निवासियों की अलग-अलग विशिष्टताएं हैं। इन्हीं विशिष्टताओं की समेकित ताकत पर भारत का एक राष्ट्र के रूप में अस्तित्व टिका हुआ है। अत: राज्य अथवा क्षेत्र के आधार पर वहां के लोगों के किसी खास क्षेत्र में योगदान को मापना पूरी तरह मूर्खता और भारतीयता को न जानने के समकक्ष ही देखा जायेगा। आज से ठीक 170 वर्ष पहले भारत की आजादी की पहली लड़ाई लड़ी गई थी जिसे अंग्रेजों ने गदर या सैनिक विद्रोह का नाम दिया था। वर्ष 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता युद्ध में भारत के इन सभी राज्यों और अंचलों के लोगों ने अपने-अपने स्तर पर अंग्रेज कम्पनी बहादुर को भारत से खदेडऩे का बीड़ा उठाया था। गुजरात के विभिन्न अंचलों में भी अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कम्पनी के खिलाफ वहां के लोगों ने अपने कौशल के अनुरूप युद्ध किया था। अत: समाजवादी पार्टी के नवोदित नेता अखिलेश यादव का यह कहना कि देश के लिए मर-मिटने वालों की फेहरिस्त में गुजरात के लोगों का नाम क्यों नहीं है, पूरी तरह भारत देश की अवमानना है और शहादत पर ओछी राजनीति करना है। गुजरात के लोगों ने देश के आर्थिक विकास में अपना योगदान दिया है और समय पडऩे पर राष्ट्र की सेवा में अपने आर्थिक स्रोतों को देश सेवा में अर्पित किया है। गुजरात के पटेल समुदाय सहित क्षत्रिय जातियां देश की सेना में भर्ती होने में किसी से पीछे नहीं रही हैं। सीमा सुरक्षा बल व केन्द्रीय रिजर्व पुलिस में इस राज्य के लोगों की समुचित भागीदारी है। अत: पूरे गुजराती समाज को अलग-थलग खड़ा करने से श्री यादव को कुछ नहीं मिलने वाला है उल्टे उन्होंने अपने उस तंग दिमाग का परिचय दे दिया है जो उत्तर प्रदेश के चुनावों में भारी पराजय की वजह से बेवजह प्रतिशोध से भर गया है। यदि प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी मूलत: गुजराती हैं तो इससे उनका राजनीतिक विरोध इस हद तक नहीं किया जा सकता कि पूरे गुजरात राज्य को ही शहादत देने वालों की फेहरिस्त से बाहर कर दिया जाये। कच्छ के रणबांकुरे जवानों को कौन भूल सकता है, जिन्होंने 1965 के भारत-पाक युद्ध में अपने जौहर दिखाये थे। अत: श्री यादव को शब्दों को बोलने से पहले तोलना चाहिए था क्योंकि वह भारत राष्ट्र की सीमाओं की सुरक्षा के बारे में सवाल उठा रहे थे मगर उन्होंने यह सवाल ऐसे समय खड़ा किया है जब पाकिस्तान अपनी दुरंगी चालों से हमारी सीमाओं को खून से लाल कर देना चाहता है। इसके साथ ही उन्हें यह अच्छी तरह मालूम होना चाहिए कि जब दुश्मन से भारत की सेना लड़ती है तो न कोई गुजराती होता है, न मद्रासी और न ही कोई राजपूत या जाट अथवा सिख या मुसलमान, सभी हिन्दोस्तानी होते हैं। उनका धर्म सिर्फ हिन्दोस्तानी होता है, उनकी जाति भारतीय होती है मगर उत्तर प्रदेश के चुनावों में मिली मुंहतोड़ पराजय से अखिलेश यादव इतने विचलित हो गये कि उन्होंने भारतीय सुरक्षा बलों को ही क्षेत्र के दायरे में बांटने का दांव चल डाला और इन्हीं चुनावों में मुंह के बल गिरी कांग्रेस भी उनके समर्थन में आकर खड़ी हो गई। शायद श्री यादव भूल गये कि जब वह 2012 में मुख्यमन्त्री बने थे तो उन्होंने बड़े गर्व से कहा था कि वह उत्तर प्रदेश में गुजरात के शेरों को लायेंगे और ऐसा उन्होंने किया भी। अत: गुजरात की मिट्टी में तो शेरों को पालने-पोसने की तासीर है। गुजरात की इससे बड़ी कैफियत क्या होगी कि इसने अंग्रेजों की शस्त्रों से सुसज्जित सेना को अहिंसा के अस्त्र से परास्त करने वाले महात्मा गांधी को जन्म दिया। इसने अन्तरिक्ष में भारत का परचम फहराने का इन्तजाम बांधने वाले ‘विक्रम साराभाई’ को पैदा किया और देश के परमाणु कार्यक्रम की नींव रखने वाले ‘होमी जहांगीर भाभा’ को दिया मगर जो राजनीतिज्ञ हार से हताश होकर भारत की ताकत को बांटने तक की हिमाकत करने लगे उसे राजनीति में रहने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि वह जिस जमीन पर खड़ा होता है उसी से परिचित नहीं होता है। जब किसी भारतीय सैनिक के साथ पाकिस्तान पाशविकता करता है तो वह पूरे भारत के सम्मान के साथ खेलने की जुर्रत करता है अत: इस पर किसी गुजराती का खून न खौले ऐसा नहीं हो सकता। राजनीतिक विरोध के लिए भारत के लोगों के बीच में ही विरोध पनपाने की तजवीजें देश के दुश्मन ढूंढा करते हैं, मित्र नहीं मगर जिन लोगों की राजनीति जातिवाद के तंग दायरे में सिमटी रही हो उनका दिमाग इससे ऊपर क्योंकर उठे? जिस धरती ने भारत के 536 रजवाड़ों को एक ही तिरंगे झंडे के नीचे आने के लिए केवल अपने तेवरों से मजबूर करने वाला ‘शेर’ सरदार पटेल दिया हो उसके लोग राष्ट्र समर्पण में किसी से पीछे नहीं रह सकते। क्या अखिलेश बाबू को बताना पड़ेगा कि भारतीय सुरक्षा बलों में कितने गुजराती हैं? क्षमा कीजिये भारत की सेना के संस्कार सैनिकों में भेदभाव करने के नहीं हैं, शहादत पर सियायत करने को यह जुर्म मानती है।