लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

उच्च शिक्षा संस्थानों को स्वायत्तता का अर्थ

NULL

हाल ही में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा 60 उच्च शिक्षा संस्थानों को स्वायत्तता प्रदान करने के विषय पर भारतीय जनमानस में बहस छिड़ गई है। शैक्षिक संस्थानों के लिए स्वायत्तता की केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर की घोषणा पर सवाल उठाए जाने लगे हैं। क्या यह घोषणा उच्च शिक्षा आैर जनतंत्रीकरण के सिद्धांत के विपरीत है? मुद्दा काफी गम्भीर है।

यह स्वायत्तता जिन संस्थानों को दी गई है उनमें पांच केन्द्रीय विश्वविद्यालय, 21 राज्य विश्वविद्यालय, 24 डीम्ड विश्वविद्यालय, 2 निजी विश्वविद्यालय और 8 स्वायत्त महाविद्यालय शामिल हैं। अब इन स्वायत्त संस्थानों को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के दायरे में काम करते हुए नए पाठ्यक्रम, अनुसंधान संस्थान और किसी अन्य नए शैक्षणिक कार्यक्रम को शुरू करने की आजादी होगी। इन संस्थानों को विदेशी शिक्षकों और छात्रों को भर्ती करने का अधिकार होगा। इन्हें दूरस्थ कार्यक्रम चलाने की भी आजादी होगी।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का यह फैसला उच्च शिक्षा के निजीकरण की दिशा में एक बड़ा कदम है। प्राइवेट शिक्षा संस्थान किस कदर लूट का अड्डा बन चुके हैं, यह सर्वविदित है। प्राइवेट संस्थानों का सच एक बार नहीं बल्कि बार-बार सामने आ रहा है तो फिर इस स्वायत्तता का अर्थ क्या है? स्वायत्तता का मतलब यही है कि वह सरकार से किसी भी प्रकार की वित्तीय सहायता नहीं लेंगे। संस्थान अपनी आर्थिक जरूरतों को स्वयं पूरा करेंगे।

इससे स्पष्ट है कि स्वायत्तता असल में देश के शिक्षा संस्थानों को वित्तीय सहायता देने की जिम्मेदारी से सरकार को मुक्त कर संस्थानों के प्रशासन को स्व-वित्त पोषित पाठ्यक्रम शुरू करने और फीस में जबर्दस्त बढ़ौतरी करने की खुली छूट मिल जाएगी। जब फीस में जबर्दस्त बढ़ौतरी होगी तो उन छात्रों के लिए उच्च शिक्षा के द्वार बन्द हो जाएंगे जो फीस वहन नहीं कर सकते। हाल ही में उत्तराखंड में मेडिकल कॉलेजों की फीस 8 लाख से बढ़ाकर 24-25 लाख वार्षिक करने पर जबर्दस्त कड़ी प्रतिक्रिया हुई थी और सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ा था।

जनता के पैसे पर बने ऐसे शिक्षा संस्थान हाशिये पर पड़े सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि से आने वाले छात्रों को सस्ती और बेहतरीन शिक्षा नहीं दे सकेंगे। यानी आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों के लिए इन संस्थानों के दरवाजे बन्द हो गए हैं। यह संस्थान अब वर्तमान में मंजूर की गई विदेशी शिक्षकों की संख्या में 20 फीसदी तक की बढ़ौतरी कर सकेंगे। इस तरह विदेशी छात्रों के दाखिले में भी 20 फीसदी तक की वृद्धि कर सकेंगे।

एक ऐसे देश में जहां लाखों भारतीय युवाओं को उच्च शिक्षा के अवसर पहले से ही पर्याप्त नहीं हैं और युवाओं की एक पूरी पीढ़ी नौकरियों को तरस रही है, ऐसे में क्या शिक्षा संस्थानों को स्वायत्तता के फैसले को ऐ​तिहासिक करार दिया जा सकता है ? प्राइवेट संस्थानों से छात्रों का केवल इतना ही सम्बन्ध होगा कि नोटों के बंडल दो और शिक्षा प्राप्त करो। स्वायत्तता के नाम पर यह संस्थान अब छात्रों के दाखिले और शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया में आरक्षण सहित सामाजिक न्याय के सभी साधनों को मजाक बना देंगे। दिल्ली विश्वविद्यालय को पहले से ही उसके 30 प्रतिशत फण्ड का इंतजाम खुद करने के लिए निर्देशित कर दिया गया है।

अब स्वायत्तता की आड़ में श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में सैल्फ फाइनेंसिंग की बाढ़ लाने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। श्रेष्ठ विश्वविद्यालय और अन्य संस्थान शिक्षा की निजी दुकानें बन जाएंगे। केवल धनी परिवारों के बच्चे ही दाखिला ले सकेंगे। विश्व व्यापार संगठन तो यही चाहता था कि भारत सरकार उच्च शिक्षा पर पैसा खर्च करना बन्द कर दे ताकि वैश्विक बाजार में शिक्षा बिक्री योग्य सेवा बन जाए।

अब जबकि यूजीसी की भूमिका लगभग खत्म होने के कगार पर है तो साफ है कि संस्थान अब निजी दुकानें ही चलाएंगे। सरकार का उच्च शिक्षा से मुंह मोड़ लेना कोई बुद्धिमत्ता नहीं। यह उच्च शिक्षा के लोकतंत्रीकरण के खिलाफ है। उच्च शिक्षा में सरकार केवल 2.9 प्रतिशत ही खर्च करती है। सरकार को खर्च बढ़ाने की जरूरत थी लेकिन वह अपना हाथ खींच रही है। देश में संस्थान तो बहुत हैं लेकिन गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में अभी भी बहुत पीछे हैं। मानव संसाधन मंत्रालय को अपने फैसले पर पुनर्विचार करना होगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

4 × one =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।