पिछले दिनों कश्मीर घाटी में हमारी सेना के बहुत से जवान शहीद हुए। उन सभी की शहादत को नमन है लेकिन हरियाणा के पटौदी में रहने वाले कैप्टन कुंडू की शहादत पर उनकी मां श्रीमती सुनीता कुंडू ने वीरता और भावनाओं का जो जज्बा दिखाया है वह पूरे देश की आंखें खोल देने के लिए काफी है। शहादत पर पूरा देश आंसू बहाता है और शहीदों को दिल से याद करता है। हरियाणा प्रदेश के तो बहुत सारे नौजवान शहीद हुए। अश्विनी जी सांसद होने के नाते उनके घर जाकर भी आते हैं आैर आकर बड़े भावुक होते हैं। पाकिस्तान को पंजाबी में गाली भी देते हैं। मुझे कई बार लगता है उनका बस चले तो एक मिनट में पाकिस्तान को उड़ा दें। जिस दिन कुंडू शहीद हुए, हम दोनों टी.वी. पर उस जवान की मां का जोश और देशभक्ति से भरा स्टेटमेंट सुन रहे थे।
वो वीरांगना कह रही थीं कि मेरा आैर बेटा भी होता तो मैं उसे भी फौज में भेजती और देश पर कुर्बान कर देती। उस समय झट से अश्विनी जी ने मेरी तरफ देखा और कहा-काश! मेरे बेटे भी फौज में होते। मेरा बस चले तो मैं भी अपने तीनों बेटों को अभी फौज में भेज दूं। देश के लिए कुर्बान कर दूं। मैंने एकदम कहा-‘‘नहीं, मैं नहीं भेज सकती, मैं नहीं भेजूंगी (मां की स्वार्थी ममता एकदम बोली) और मैं इस तरह घबरा गई कि मानो मेरे से कोई मेरे बच्चे छीन रहा हो आैर मैं तड़प गई, दिल घबरा गया। अश्विनी जी ने बड़ी हैरानगी से मेरी तरफ देखा, अरे तुम इतने बड़े-बड़े काम करती हो, देश के फौजियों के लिए काम करती हो, बुजुर्गों के लिए, बेटियों के लिए, तो इतना छोटा दिल और जीवन-मरण तो प्रभु के हाथ में है। जब किसी ने जाना है, लिखा है तो क्यों न देश के लिए कुर्बान हुआ जाए। मैंने झट से कहा- यह सब तो मैं हमेशा करती रहूंगी। समाज और देश के लिए दिन-रात काम करूंगी परन्तु यह मुझसे नहीं हो सकता और कुंडू जैसे नौजवान शहीद की मां की तरह बहादुर मां बनना आसान नहीं। आतंकवाद के खात्मे के लिए बॉर्डर पर देश के विभिन्न भागों में अपनी ड्यूटियां निभाने वाले सेना, अर्द्ध सैन्य बल आैर पुलिस जवान आये दिन शहीद हो रहे हैं।
राष्ट्र के प्रति उनके इस जुनून को मैं कोटि-कोटि नमन करती हूं। इस जुनून की कोई परिभाषा नहीं लेकिन इसका परिणाम मैंने अपने दादा ससुर अमर शहीद लाला जगत नारायण और पिता ससुर शहीद शिरोमणि श्री रोमेश चन्द्र जी की शहादत के रूप में देश की एकता और अखंडता को कायम करने के रूप में देखा है। उस समय तो दुःख में सारा देश तुम्हारे साथ रोता है, क्या बाद में कोई आकर पूछता है कि बच्चे कैसे जी रहे हैं, उसकी बीवी कैसी है, उसके बच्चों के साथ नाइंसाफी तो नहीं हो रही। सो, मुझे देश सेवा करनी मंजूर, समाज सेवा करनी मंजूर, लोगों को खुशियां बांटनी मंजूर परन्तु यह काम बहुत मुश्किल है क्योंकि मैंने अपनी सांसु मां के कभी न समाप्त होने वाले आंसू देखे हैं। अश्विनी जी को आधी-आधी रात चहलकदमी करते आंखों में आंसू भरते भी देखा, सो मेरा इतना बड़ा दिल नहीं है। मैं सुनीता कुंडू जैसी मां के चरणों की धूल माथे पर लगाती हूं। वैसी माताओं को नमन करती हूं। मेरी कलम भी ऐसी माताओं को नमन करती है परन्तु फिर कहूंगी, दिल से कहूंगी, हाथ जोड़कर कहूंगी कि आसान नहीं ऐसी मां बनना। कम से कम मैं झूठ नहीं बोल सकती, मैं तो नहीं…अभी कि मुझे अपने ससुर जी की पंक्तियां हमेशा याद रहती हैं जो वह अक्सर गुनगुनाते थे कि जिन्दगी की 6 बातें किसी के बस में नहीं- यश-अपयश, हानि-लाभ, जीवन-मरण सब विधि हाथ।