अब जब कि अयोध्या श्रीराम मंदिर को लेकर धुंध छटने लगी है तो हम इस बात के पक्षधर हैं कि मंदिर निर्माण हो ही जाना चाहिए। दरअसल, इस बात के संकेत उस दिन मिलने लगे थे जब उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री की कमान आदित्यनाथ योगी ने संभाली थी। इस बात का स्वागत किया जाना चाहिए कि श्री श्री रविशंकर सुप्रीम कोर्ट में केस चलते रहने के बावजूद तीनों पक्षों में मध्यस्थता को तैयार हैं और इसके अच्छे संकेत भी उस दिन मिले जब शिया वक्फ बोर्ड प्रमुख वसीम ने यह ऐलान किया कि विवादित स्थल पर अब मस्जिद नहीं है। यह एक बड़ी घोषणा है और विवाद की दिशा में समाधान की तरफ बढ़ रही है।
बाबरी मस्जिद के विध्वंस से लेकर मंदिर निर्माण की राह के बीच अब तक जो कुछ हुआ है, वह समाधान की ओर निश्चित रूप से इसलिए अग्रसर है, क्योंकि मोदी सरकार के चलते राजनीतिक दृष्टिकोण से बहुत कुछ खुशगवार हो रहा है। हर विवाद वार्ता के दौर से ही आरंभ होता है। जहां-जहां अंधकार होता है, वहां रोशनी तो सूर्य की पहली किरण से ही होती है। शिया-सुन्नी या अखाड़ा परिषद या अन्य पक्षकार क्या कहते हैं हम इनके किसी तर्क में नहीं जाना चाहते। हम तो केवल इतना जानते हैं कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का जिस अयोध्या में जन्म हुआ यह एक अखंड सत्य है, जिसे ठुकराया नहीं जा सकता। वहां श्रीराम का मंदिर बनने से किसी को क्या ऐतराज है। भारत जैसे हिन्दू बाहुल्य देश में मंदिर निर्माण को लेकर किसी दूसरे पक्ष को आपत्ति होनी भी नहीं चाहिए। तो फिर यहां अगर कोई दूसरा पक्ष विरोधी सुर उठाता है तो उसे नजरंदाज किया जाना चाहिए। जब हमने किसी पक्ष की मस्जिद को लेकर ऐतराज नहीं किया और पूरे देश में आए दिन मस्जिदें सार्वजनिक मार्गों तक बन रही हैं। सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणियों के बावजूद देश में किसी ने विरोधी आवाज नहीं उठाई तो श्रीराम मंदिर के निर्माण में भी कोई विरोधी आवाज नहीं उठनी चाहिए।
राजनीतिक दृष्टिकोण से हम इतना कहना चाहेंगे कि मोदी सरकार के पास इस समय प्रचंड बहुमत है। लिहाजा राजनीतिक दृष्टिकोण से कोई दिक्कत नहीं आनी चाहिए। साम्प्रदायिक सद्भाव के पक्षधर हिन्दू और मुसलमान दोनों रहे हैं लेकिन जिन्होंने साम्प्रदायिकता फैलानी है और सियासतवाजी करनी है तो इसे कोई रोक नहीं सकता। कहीं न कहीं उनके हित प्रभावित रहते हैं तभी वो भड़काने का कार्य करते हैं, लेकिन उम्मीद की जानी चाहिए कि शीर्ष अदालत अब इस मामले में नियमित सुनवाई की पक्षधर है तो यकीनन मंदिर निर्माण होकर रहेगा। इसी मामले में हम यह कहना चाहेंगे कि अब भाजपा ने जब 2019 का मिशन तय कर लिया है तो सत्ता में वापसी का रास्ता भी श्रीराम मंदिर के निर्माण सुनिश्चित करने के मार्ग से ही होकर गुजरता है। राजनीति अपनी जगह चले लेकिन मंदिर निर्माण को लेकर किसी भी किस्म की सियासतवाजी नहीं होनी चाहिए। हम देख रहे हैं कि अभी भी अनेक संगठन मध्यस्थता को लेकर तरह-तरह के विरोधी सुर उठा रहे हैं, क्योंकि उनकी चौधराहट नहीं चल पाई। हिन्दू समाज में चौधराहट को लेकर अभी भी अनेक संगठन सक्रिय हैं और श्रीराम मंदिर निर्माण को लेकर वो जो कुछ भी कहते हैं उसे भी नजरंदाज किया जाना चाहिए। संबंधित पक्षों से वार्ता के जरिए बहुत कुछ सामने आता है। इस देश में सुप्रीम कोर्ट ने अनेक बड़े मामलों में कोर्ट से बाहर जाकर फैसला निपटाने के मार्ग को भी अपनाया है। अगर आज की तारीख में सभी विवादित पक्षों से मध्यस्थता के जरिए किसी एक मकसद को लेकर सहमती बनती है तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए। किसी भी समस्या के समाधान का हल तो वार्ता ही है।
पिछले दिनों दीवाली के मौके पर जिस तरह से यूपी के सीएम आदित्यनाथ योगी ने सरयू के किनारे दीए जलाने की एक परंपरा को नई दिशा दी हम उस पर यही कहना चाहेंगे कि अब सरयू के किनारे अनेकों घाटों का जीर्णोद्धार भी हो जाना चाहिए। इसे भी श्रीराम मंदिर निर्माण की प्रक्रिया से ही जोड़ लेना चाहिए। कल तक हमने सौगंध राम की खाते हैं हम मंदिर वहीं बनाएंगे जैसे उद्घोष किए हैं तो अब उन्हें निभाने का वक्त आ गया है। विश्व हिन्दू परिषद और आरएसएस ने श्रीराम मंदिर निर्माण को प्राथमिकता में रखा हुआ है तो इसे निभाने का वक्त आ गया है। यह न केवल हमारी श्रीराम के प्रति ब्रह्मांड के चप्पे-चप्पे पर बसे लोगों की आस्था की जीत होगी, बल्कि मोदी सरकार की एक बड़ी राजनीतिक जीत भी होगी, क्योंकि राजनीतिक दृष्टिकोण से आरोप-प्रत्यारोप खुले लगते रहे हैं और मंदिर निर्माण से ही इन पर रोक लगेगी।
कुल मिलाकर पूर्व में क्या-क्या सुझाव आते रहे हैं उसे अतीत जानकार भुला दिया जाना चाहिए और जो हमें अनुकूल लगता हो उसे मंदिर निर्माण से जोड़कर नई दिशा बना लेनी चाहिए, क्योंकि इस समय माहौल और दस्तूर बने हुए हैं। देशवासी श्रीराम मंदिर के निर्माण की प्रतीक्षा कर रहे हैं। सरकार तैयार है। सुप्रीम कोर्ट ने भी सर्वसम्मति का रास्ता तैयार कर दिया है तो फिर इस दिशा पर आगे बढ़ भी जाना चाहिए। बड़ी मुद्दत बाद एक अच्छी पहल दिखाई दे रही है, जिसका स्वागत पूरा देश करने को तैयार है। वैसे भी अब बहुत देर हो चुकी है। लगभग दो दशक हो चुके हैं किसी समस्या का समाधान ढूंढऩे में इतना वक्त लगना नहीं चाहिए। तो अब श्रीराम मंदिर निर्माण और इसके प्रयास सबके लिए शुभ हों यही हमारी कामना है। यकीनन इसका श्रेय राजनीतिक दृष्टिकोण से मोदी सरकार, विश्व हिन्दू परिषद, यूपी सरकार के अलावा सभी पक्षों को दिया जाना चाहिए, जिन्होंने मंदिर निर्माण के लिए मार्ग तैयार किया है।