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परमाणु युद्ध का मंडराता खतरा

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उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच बढ़ते तनाव ने पूरे विश्व की चिन्ताएं बढ़ा दी हैं। हर कोई सवाल करने लगा है कि क्या युद्ध होगा? युद्ध होगा तो क्या किया जाना चाहिए। बढ़ते तनाव के चलते शेयर बाजार प्रभावित हो रहा है और निवेशकों को अच्छा-खासा नुक्सान हो रहा है। अमेरिका और उत्तर कोरिया आपस में भिड़ गए तो दुनिया का क्या होगा? अगर किसी पक्ष ने जरा सी भी गलती की तो युद्ध भड़क सकता है। अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच जारी विवाद में दक्षिण कोरिया हाशिये पर है और पड़ोसी देश घबराए हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने उत्तर कोरिया पर उसके मिसाइल कार्यक्रम के आरोप में नए प्रतिबंध लगाने की मंजूरी दी है जिसमें चीन ने भी सहमति जताई है। उत्तर कोरिया ने जुलाई में दो इंटरकांटीनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलों का परीक्षण करते हुए दावा किया था कि अब उसके पास अमेरिका तक मार करने की क्षमता है। इन परीक्षणों की दक्षिण कोरिया, जापान और अमेरिका ने कड़ी निन्दा की थी और यहीं से उत्तर कोरिया पर नई पाबंदियों की भूमिका तैयार हुई।

उत्तर कोरिया हर वर्ष करीब 3 अरब डॉलर का सामान बाहर के देशों को बेचता है और नई पाबंदियों से उसका एक अरब डॉलर का व्यापार खत्म हो सकता है। किसी देश को तबाह करना हो तो सबसे पहले उसकी अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाई जाती है, फिलहाल अमेरिका यही कर रहा है। बार-बार पाबंदियां लगने के बावजूद उत्तर कोरिया ने मिसाइल कार्यक्रम में कोई बदलाव नहीं किया। सुरक्षा परिषद ने पाबंदियां लगाकर उत्तर कोरियाई तानाशाह किम जोंग उन को संदेश दे दिया है कि उत्तर कोरिया की गैर-जिम्मेदार और लापरवाह हरकतें उसके लिए भारी पड़ रही हैं। सनकी किम जोंग उन का दक्षिण कोरिया से विवाद है परन्तु दक्षिण कोरिया के साथ अमेरिका है। यद्यपि चीन ने उत्तर कोरिया पर प्रतिबंध लगाए जाने का समर्थन किया है लेकिन चीन का उत्तर कोरिया से प्रेम किसी से छिपा हुआ नहीं है।

चीन और उत्तर कोरिया ने 1961 में पारस्परिक सहयोग संधि पर हस्ताक्षर किए थे। इस संधि में कहा गया था कि अगर दोनों देशों में से किसी पर हमला होता है तो वे एक-दूसरे की तत्काल मदद करेंगे। इसमें सैन्य सहयोग भी शामिल है। इस संधि में यह भी कहा गया है कि दोनों शांति और सुरक्षा को लेकर सतर्क रहेंगे। हालांकि चीनी विशेषज्ञ महसूस करते हैं कि परमाणु कार्यक्रम पर चीन को उत्तर कोरिया के साथ हुई संधि के साथ नहीं रहना चाहिए लेकिन चीन कोरियाई प्राय:द्वीप में उत्तर कोरिया को हाथ से जाने नहीं देना चाहता। चीन को लगता है कि कोरियाई प्राय:द्वीप में किसी का प्रभुत्व नहीं बढ़े। अगर कोरियाई प्राय:द्वीप में कोई परमाणु युद्ध होता है तो चीन के लिए खतरनाक होगा। चीन की कम्पनियां उत्तर कोरिया में आम्र्स प्रोग्राम की सप्लाई करती हैं, अगर वहां किम जोंग का शासन उखड़ता है तो चीन को नुक्सान होगा और आर्थिक बोझ बढ़ जाएगा। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप धमकियां दे रहे हैं कि उत्तर कोरिया को ऐसे हमले का सामना करना पड़ेगा जिसे दुनिया ने कभी देखा नहीं होगा। इसके जवाब में उत्तर कोरिया ने प्रशांत महानगर में अमेरिकी द्वीप ग्वाम पर हमले की योजना पेश कर दी है।

सवाल यह भी है कि अमेरिका उत्तर कोरिया को परमाणु और मिसाइल कार्यक्रम छोडऩे के बदले क्या दे सकता है? क्या उत्तर कोरिया का परमाणु हथियार आखिरी लक्ष्य है जिसमें उसे झुकाया नहीं जा सकता? उत्तर कोरिया के पारंपरिक दुश्मन अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया हैं। वह आत्मनिर्भर होना चाहता है और चीन और रूस पर निर्भरता से भी मुक्त होना चाहता है। आशंका तो यह भी है कि अमेरिका उत्तर कोरिया को इराक या लीबिया बनाना चाहता है। उत्तर कोरिया को लगता है कि अगर उसे इराक और लीबिया बनने से बचना है तो उसे भारी बर्बादी के विश्वस्तरीय हथियारों को किसी भी सूरत में हासिल करना है। उत्तर कोरिया के किम वंश के राजनीतिक नेतृत्व की जड़ें अमेरिका से दुश्मनी और उसके बचाव से जुड़ी हुई हैं। 1950-53 के कोरियाई युद्ध में उत्तर कोरिया का प्रोपेगेंडा भी यही था कि अमेरिका को उत्तर कोरियाई नागरिकों के दुश्मन के रूप में दिखाया जाए जो उनके देश को तबाह करना चाहता है। उत्तर कोरिया की प्राथमिकता है कि वह मिसाइल और परमाणु परीक्षण जारी रखे ताकि युद्ध की स्थिति में उसके पास पर्याप्त प्रतिरोधक क्षमता हो।

उत्तर कोरिया और पाकिस्तान दो ऐसे देश हैं जो कभी भी दुनिया को परमाणु युद्ध में झोंक सकते हैं। पाकिस्तान को इस समय चीन का समर्थन प्राप्त है। अगर परमाणु युद्ध होता है तो मानव जाति का विनाश ही होगा। इस युद्ध का जिम्मेदार अमेरिका भी होगा। इतिहास गवाह है कि अमेरिका आज तक किसी का मित्र नहीं रहा। वह दूसरों की बर्बादी में भी अपने हितों की रक्षा करना जानता है। भारत को ऐसी स्थिति में बहुत सतर्क होकर चलना है। भारत को अमेरिका के किसी बहकावे में नहीं आना चाहिए और अपनी राह खुद बनानी होगी। चीन से डोकलाम विवाद पर टकराव में भी उसे सूझबूझ से काम लेना होगा। युद्ध किसी समस्या का हल नहीं लेकिन सनकी तानाशाह किम जोंग और अस्थिर मानसिकता वाले ट्रंप क्या कर बैठें, किसी को नहीं पता।

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