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ओम शांति ओम!

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उत्तर कोरिया के तानाशाह और क्रूर माने गए नेता किम जोंग 1953 में कोरियाई युद्ध के बाद दक्षिण कोरियाई जमीन पर कदम रखने वाले पहले नेता हो गए हैं। युद्ध के बाद कोरियाई द्वीप दो हिस्सों में बंट गया था। किम जोंग उन की दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून-जे-इन से मुलाकात खुशगवार माहौल में हुई। दोनों में बातचीत दक्षिण कोरिया में पड़ने वाले असैन्य क्षेत्र स्थित पीस हाउस में हुई।

पूरा विश्व हैरान है कि दक्षिण कोरिया ने कभी भी उत्तर कोरिया के ऐसे वरिष्ठ प्रतिनिधिमंडल का स्वागत नहीं किया, उसने किम जोंग उन के स्वागत में पलक पावड़े बिछा दिए। युद्ध उन्माद से भरे बयानों के आने के कुछ माह बाद ही यह मुलाकात हुई। दोनों देशों ने कोरियाई प्रायद्वीप को परमाणु हथियारों से मुक्त करने पर सहमति जताई।

ऐतिहासिक वार्ता के बाद एक साझा पत्र जारी किया गया जिसमें कहा गया है कि दोनों देशों के बीच सभी तरह की दुश्मनी भरी कार्रवाई बन्द की जाएगी। दोनों देशाें की सरहद पर होने वाले प्रचार को रोककर वहां मौजूद सेनारहित जोन को शांति जोन बनाया जाएगा। युद्ध के कारण सीमाओं की वजह से बंट गए परिवारों को फिर से मिलाया जाएगा और दोनों देशों काे आधुनिक सड़क आैर रेलवे यातायात से जोड़ने का भी फैसला किया गया।

इस मुलाकात से पूरे विश्व ने राहत की सांस ली है लेकिन कई विश्लेषक उत्तर कोरिया के इस उत्साह और गर्मजोशी को लेकर शक भी जाहिर कर रहे हैं। दोनों कोरिया के बीच अब तक समझौते उत्तर कोरिया के अपने परमाणु और मिसाइल कार्यक्रम को फिर से शुरू करने के साथ रद्द हो चुके हैं, वहीं दक्षिण कोरिया में अधिक रूढ़िवादी राष्ट्रपति पद पर आते रहे हैं।

महज 40 कदमों की दूरी को पाटने में दोनों देशों के पूरे 7 दशक लग गए। मगर दोनों के कदम अपने-अपने मुल्क में थे। किम जोंग उन का यह ऐलान कि वह अगले दो माह में अपने परमाणु परीक्षण स्थल को बन्द कर देगा, का अपना एक महत्व है और यह एक तरह से अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से वार्ता से पहले एक सकारात्मक संदेश है जो उत्तर कोरिया हमेशा से ही परमाणु हथियारों और उनके परीक्षण का हितैषी रहा है।

किम जोंग खुद कई मौकों पर कह चुका है कि उसे अमेरिकी आक्रमण का जवाब देने के लिए इन परमाणु हथियारों की आवश्यकता है। उसका यह बयान काफी चौंकाने वाला है। किम ने कहा कि मैं यहां टकराव के इतिहास को खत्म करने आया हूं। एक भाषा, एक देश, एक खून तो फिर हमें एक रहना चाहिए जबकि दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति मून जेई-इन ने कहा कि अब मैं शांति से सो सकता हूं।

कोरिया प्रायद्वीप में अच्छी चीजें हो रही हैं। उधर भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग से बातचीत के बाद भारत लौटे हैं। इस मुलाकात के बाद भारत-चीन के रिश्तों के सुधरने की उम्मीद है। बुहान में हुई इस वार्ता के बाद ऐसा लग रहा है कि दुनिया में भाईचारे का दौर लौट रहा है। विश्व के इतिहास में कई ऐसी मुलाकातें होती रही हैं जिसने पूरी दुनिया को नई राहें दिखाई हैं।

2013 में अ​मेरिका के राष्ट्रपति बराक आेबामा और क्यूबा के राष्ट्रपति कास्त्रो की मुलाकात ने सभी को हैरान कर दिया था। कई वर्षों तक क्यूबा और अमेरिका के बीच दुश्मनी का दौर चला और उसके बाद किसी सार्वजनिक मंच पर यह पहली मुलाकात देखने को मिली थी। इस मुलाकात की वजह से न सिर्फ दोनों देशों के बीच सम्बन्धों पर जमी बर्फ पिघली बल्कि इनमें मजबूती भी आई। चीन और ताईवान में भी कुछ ऐसा ही हुआ था।

अब पूरी दुनिया की नजरें किम जोंग उन और डोनाल्ड ट्रंप की होने वाली मुलाकात पर लगी हुई हैं। भारत ने हमेशा उत्तर कोरिया के निरस्त्रीकरण के लिए शांतिपूर्ण और कूटनीतिक तरीकों का समर्थन किया है। क्षेत्रीय तौर पर भारत एक उभरती हुई ताकत है और हम चाहेंगे कि उत्तर कोरिया के निरस्त्रीकरण की प्रक्रिया आगे बढ़े। भारत के आर्थिक हित भी क्षे​त्र में शांति की अपेक्षा करते हैं।

पिछले एक दशक में भारत क्षेत्रीय देशों के साथ द्विपक्षीय आैर बहुपक्षीय व्यापार बढ़ाने में कामयाब रहा है। पूरे विश्व ने बर्लिन की दीवार गिरते देखी है। 1990 में पूर्वी आैर पश्चिमी जर्मनी दीवार तोड़कर एक हो गया था। भविष्य में क्या होगा, इसका अनुमान लगाना कठिन है लेकिन भाषा, संस्कृति और इतिहास में साझेदारी करने के बाद भी सीमा रेखा को मिटाना आसान नहीं।

दक्षिण कोरिया आधुनिक हो चुका है जबकि उत्तर कोरिया पुराने ढर्रे पर ही चल रहा है। फिलहाल दोनों में दोस्ती बनी रहे, यह बहुत बड़ी बात होगी। सहअस्तित्व को स्वीकार करने और विश्व शांति के लिए प्रयास करने का युग है लेकिन पड़ोसी पाकिस्तान दुनिया से कोई सबक नहीं ले रहा। पाकिस्तान के हुक्मरान, उसकी सेना आतंकवाद की राह छोड़ शांति की राह पकड़े तो दोनों देशों में तनाव खत्म हो जाएगा। समस्त पृथ्वी, वनस्पति, परब्रह्म सत्ता, सम्पूर्ण ब्रह्मांड यहां तक कि कण-कण में शांति बनी रहे इसलिए शांति पाठ का उच्चारण करना जरूरी है। मानवता की रक्षा के लिए परमाणुविहीन विश्व का होना बहुत जरूरी है, इसलिए ओम शांति ओम, आेम शांति ओम।

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