दुनिया में सबसे बड़ी सेवा का नाम है जरूरतमंद इंसान की मदद करना। अगर कोई बीमार है तो उसको मेडिकल सुविधा प्रदान करना सबसे बड़ी सेवा है। यकीनन इसीलिए मेडिकल जगत को इंसानियत का दूसरा नाम बताया गया है परंतु कमाई के चक्कर में प्राइवेट अस्पताल जिस तरह से नैतिकता की हदें पार कर रहे हैं उन पर शिकंजा कसना जरूरी तो है लेकिन अगर केवल पैसा कमाने के चक्कर में मरीजों की जान ले ली जाए तो फिर कोई ऐसा कानून बनाना चाहिए ताकि दोषियों के खिलाफ अपराधी की तरह कार्यवाही की जा सके। दु:ख इस बात का है कि नामी-गिरामी अस्पताल कायदे-कानून का पालन न करके मासूमों की जान लेने का काम कर रहे हैं तो सचमुच ममता कांप उठती है और इंसानियत शर्मसार हो उठती है। पिछले दिनों देश के नामी-गिरामी अस्पतालों में से एक फोर्टिस और दूसरा मैक्स अस्पताल में जिस तरह से यहां जानें ली गईं इस तरीके से मानवता का बहता हुआ खून हमने पहले कभी नहीं देखा।
गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल में दिल्ली की द्वारका की एक सात साल की बच्ची की डेंगू से मौत हो गई और अस्पताल वालों ने 17 लाख रुपए का बिल कोई तरस न खाते हुए माता-पिता के हाथ में थमा दिया। अब सात साल की नन्हीं बच्ची आद्या, जो मौत के क्रूर पंजों में जा समाई है, कभी लौट के तो नहीं आ सकती है लेकिन हरियाणा के हैल्थ मिनिस्टर ने जिस तरह से कार्यवाही की और अस्पताल को दोषी मानते हुए उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की बात कही तो हमें बड़ा सुकून मिला है। इसी तरह एक और नामी-गिरामी अस्पताल शालीमार बाग स्थित मैक्स अस्पताल की लापरवाही देखिए, एक नवजात शिशु यहां दाखिल किया गया। अस्पताल वालों ने चौबीस घंटे बाद उसे एक प्लास्टिक के थैले में पैक करके मरा हुआ घोषित करके मां-बाप के पास थैला पार्सल करा दिया। माता-पिता ने थैला खोला परंतु बच्चा जीवित था। दुबारा इलाज के लिए अस्पताल वालों ने 50 लाख रुपए की डिमांड की तो परिजनों ने अस्पताल पर धरना-प्रदर्शन किया तब कहीं जाकर अस्पताल वालों ने उसे दोबारा भर्ती किया, जिसकी बुधवार को मौत हो गई। यह बच्चा जिंदगी और मौत से लड़ता रहा, पर उसकी मौत हो गई। यहां भी दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सतेंद्र जैन ने इस अस्पताल का लाइसैंस रद्द करने का ऐलान कर दिया है।
हरियाणा और दिल्ली दोनों ही मामलों में जागरूक स्वास्थ्य मंत्रियों अनिल विज और डॉ. सतेंद्र जैन ने जिस तरह से एक्शन लेकर पूरी रिपोर्ट के आधार पर इन अस्पतालों को घेरा है, लोगों की मांग यही है कि इस पर क्रिमिनल एक्ट के तहत सीधा-सीधा 302 का केस दर्ज कर एक्शन लिया जाना चाहिए। डॉक्टरों या अन्य अधिकारियों को सस्पेंड करने से बात नहीं बनेगी। श्री विज और डॉक्टर सतेंद्र जैन ने साफ कहा है कि मानवता का खून करने वाले ऐसे अस्पतालों का अगर लाइसेंस रद्द करना पड़े तो हम भी पीछे नहीं हटेंगे। पिछले दिनों मेरे पति सांसद श्री अश्विनी कुमार जी ने करनाल के कल्पना चावला अस्पताल में मरीजों को सुविधाएं न दिए जाने के मामले पर खुद औचक निरीक्षण कर इसे उजागर किया था। वह कहते हैं कि सिर्फ करनाल ही क्यों, हर सरकारी अस्पताल में मरीजों का इलाज तरीके से होना चाहिए और लापरवाह डॉक्टर और अफसर बख्शे नहीं जाने चाहिएं। उन्होंने खुद मरीजों से बात की तो मरीजों ने अस्पताल के अधिकारियों की लापरवाही की शिकायत की।
मैक्स और फोर्टिस के साथ-साथ मरीजों को इलाज की बजाय लाखों का बिल थमाने वाले प्राइवेट अस्पतालों के खिलाफ अब आपराधिक कार्यवाही का समय आ गया है। यह हमारी नहीं देश की एक मांग है। ये दो अस्पताल तो नामी-गिरामी हैं परंतु हम एक हकीकत आप सब के साथ शेयर कर रहे हैं कि दिल्ली में कदम-कदम पर प्राइवेट नर्सिंग होम और अन्य अस्पताल अभी भी कानूनों को ताक पर रखकर मरीजों से मनमाना पैसा वसूल रहे हैं। सड़क पर पड़े किसी आम आदमी को एडमिट करने की बजाए पैसे की मांग करते हैं, जबकि सुप्रीम कोर्ट का सीधा आर्डर है कि दुर्घटना या जानलेवा हमले की सूरत में प्राइवेट या सरकारी अस्पताल वाले घायल की जान बचाएं न कि प्राइवेट अस्पताल वाले पुलिस या एक्सीडेंट केस बताकर अपनी जान छुड़ाएं परंतु सुम्रीम कोर्ट की व्यवस्था है कि वे ऐसा नहीं कर सकते। अंत में यही कहूंगी कि हर डाक्टर, हर अस्पताल हर मरीज को अपना जानकर देखें, महसूस करें और हमेशा यह आवाज आनी चाहिए कि इस मरीज की जगह कहीं कोई अपना बच्चा हो तो?