पाकिस्तान फिर खिसियाया - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

पाकिस्तान फिर खिसियाया

NULL

कुलभूषण जाधव के मामले में अपनी किरकिरी देखकर पाकिस्तान की सरकार ने हेग की अन्तर्राष्ट्रीय अदालत में गुहार लगाई है कि आगामी छह सप्ताहों के दौरान मुकदमे की पुन: सुनवाई की जाये। अदालत द्वारा दिये गये अन्तिम फैसले के अनुसार पाकिस्तान उसके अन्तिम निर्णय दिये जाने तक कुलभूषण के मामले में किसी प्रकार की आगे कार्रवाई नहीं कर सकता है। कुलभूषण को पाकिस्तान की फौजी अदालत ने जो फांसी की सजा सुनाई है उसके विरुद्ध यह स्थगन आदेश था। यह भी स्वयं में महत्वपूर्ण है कि पाकिस्तान की तरफ से इसके वकील खावर कुरैशी ने विश्व की इस सबसे बड़ी न्यायिक अदालत में दलील दी थी कि कुलभूषण का मामला इस अदालत के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। अत: पाकिस्तान द्वारा इसी अदालत के सामने पुन: सुनवाई करने की प्रार्थना से स्पष्ट है कि पाकिस्तान का पक्ष कितना कमजोर है मगर पाकिस्तान इसी दलील को पुन: अदालत में दोहराना चाहता है और इसके लिए इसने अपने कानूनविदों में भी फेरबदल करने का फैसला किया है मगर पाकिस्तान में वहां के विपक्षी दल इस बात को लेकर नवाज शरीफ सरकार को निशाने पर ले रहे हैं कि उनकी सरकार ने कुलभूषण जाधव मामले की पैरवी करने के लिए ऐसे वकील कुरैशी का चयन किया जिसने 2004 में एनरोन की दभोल बिजली परियोजना के मुकदमे में भारत की पैरवी की थी। दूसरी तरफ भारत में यह विवाद उठ खड़ा हुआ है कि उस समय केन्द्र में पहली मनमोहन सरकार गठित हो जाने पर दभोल मुकदमे में ब्रिटेन स्थित पाकिस्तान मूल के वकील कुरैशी का क्यों चयन किया गया जबकि इस मुकदमे में पहले हरीश साल्वे भारत की तरफ से पैरवी कर रहे थे मगर केन्द्र में सरकार बदलने के बाद उन्हें इस मुकदमे से हटा दिया गया। कुरैशी को लेकर भारत और पाकिस्तान दोनों ही जगह विवाद पैदा हो गया है। पाकिस्तान में समझा जा रहा है कि वह अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में पाकिस्तान का पक्ष पुरजोर तरीके से नहीं रख सके जिसकी वजह से भारत की विजय हुई और भारत में माना जा रहा है कि यदि दभोल मुकदमे में भी हरीश साल्वे पैरवी करते तो परिणाम वही आता जो हेग में आया है। दरअसल दभोल मुकदमे में भारत की पराजय हुई थी और इसका अमेरिकी कम्पनी ‘एनरोन’ से हर्जाना वसूल करने का दावा खारिज हो गया था। भारत को तब भारी आर्थिक नुकसान हुआ था। यह एनरान वही अमरीकी कम्पनी थी जिसकी परियोजना को 1996 में 13 दिन की वाजपेयी सरकार ने स्वीकृति प्रदान की थी। तब भी इस परियोजना पर देश में सवालिया निशान लगे थे अत: दभोल का मामला शुरू से ही विवादास्पद रहा था लेकिन ब्रिटिश वकील कुरैशी के सन्दर्भ में यह सवाल उठना वाजिब है कि मनमोहन सरकार ने 2004 में श्री साल्वे के स्थान पर उनका चयन क्या सोचकर किया था। जाहिर है कि सरकार की तरफ से यह फैसला तत्कालीन वित्त मन्त्रालय और कानून मन्त्रालय के आपसी विचार-विमर्श के बाद पूरी तरह पेशेवर तरीके से किया जाना चाहिए था। अब सवाल खड़ा किया जा रहा है कि क्या इसमें गफलत बरती गई थी? दूसरा मूल प्रश्न यह है कि इस सारे मामले में वकील कुरैशी का क्या दोष है। 2004 में भारत ने उन्हें अपना वकील बनाया और कुलभूषण मामले में पाकिस्तान ने। उन्होंने अपनी कानूनी विशेषज्ञताओं की फीस अपने मुवक्किलों से वसूल की। पाकिस्तान कुलभूषण का मुकदमा प्राथमिक तौर पर हारा है तो इसकी वजह साफ है कि उसके पास वे कानूनी नुक्ते नहीं हैं जिसकी वजह से उसका पलड़ा भारी हो सके। दूसरा भारत में कुरैशी के पाकिस्तान मूल का होने को मुद्दा बनाकर कहा जा रहा है कि 2004 में उन्होंने भारत का पक्ष मजबूती से नहीं रखा होगा। ऐसा हम भारत-पाक के बीच चल रहे कटु सम्बन्धों के चलते सोच सकते हैं और वह भी तब जब अन्तर्राष्ट्रीय अदालत में श्री साल्वे और कुरैशी आमने-सामने भिड़े मगर ऐसा करके हम पाकिस्तान के पक्ष को बेवजह पुख्ता बनाने की गलती कर रहे हैं। अगर कुरैशी की जगह पाक की तरफ से कोई और वकील होता तो क्या वह कुलभूषण मामले में मुकदमा अपने पक्ष में करा सकता था? बिल्कुल नहीं क्योंकिपाकिस्तान के पास कुलभूषण के खिलाफ वे सबूत ही नहीं हैं जिनके आधार पर अदालत कोई दूसरा नजरिया बनाती। सवाल तो पाकिस्तान की उस बेइमान निगाह का है जो भारत के एक बाइज्जत शहरी कुलभूषण को जासूस और आतंकवादी बनाने पर तुली हुई है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अन्तर्राष्ट्रीय अदालत का यह अन्तरिम आदेश है। अभी अदालत को पूरे मामले की सुनवाई हर पहलू से करनी है। अदालत ने कुलभूषण की फांसी की सजा माफ नहीं की है बल्कि उसके अमल पर रोक लगाई है। हमें कुलभूषण को बाइज्जत तरीके से पाकिस्तानी जबड़े से बाहर निकाल कर लाना है और कानूनी तरीके से लाना है। हम क्यों यह ढिंढोरा पीट रहे हैं कि पाकिस्तान का वकील कमजोर है? सवाल मुल्क की इज्जत का है, अत: भावुकता में आकर रास्ता भटकने की जरूरत नहीं है। पाकिस्तान वियना समझौते से बन्धा हुआ है और अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर वह बेगुनाह कुलभूषण को फांसी पर नहीं चढ़ा सकता। अत: सब्र से काम लेना चाहिए और पाकिस्तान की ‘वहशी’ चालों का मुकाबला करने के लिए कमर कसनी चाहिए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

seven − 2 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।