लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

कावेरी जल बोर्ड पर राजनीति!

NULL

कावेरी नदी के जल बंटवारे को लेकर बनाये जाने वाले जल प्रबन्धन बोर्ड का मामला अगर केन्द्र सरकार टालना चाहती है तो इसे किसी भी सूरत में तब उचित नहीं कहा जा सकता जबकि इसी को लेकर तमिलनाडु में भारी बावेला इस तरह मचा हुआ है कि इससे भारत की संसद की कार्यवाही सीधे प्रभावित हो रही है। यह किसी भी तरह संयोग नहीं हो सकता कि संसद का सत्र चालू हो और केन्द्र सरकार सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को लागू करने में आनाकानी कर रही हो।

बोर्ड के गठन में किसी भी तरह राजनीति करने की कोई गुंजाइश इसलिए नहीं थी क्योंकि इसमें केन्द्र की भूमिका केवल कानूनी निर्णय को लागू करने वाले की है लेकिन इसके बावजूद बोर्ड को राजनीति का मुद्दा बना दिया गया है आैर इस तरह बना दिया गया है कि पिछले तीन सप्ताहों से संसद के दोनों सदनों में तमिलनाडु के राजनीतिक दलों के सदस्य इसकी कार्यवाही में लगातार बाधा पहुंचा रहे हैं जिसकी वजह से देश का यह सबसे बड़ा सदन तमाशा बन गया है हालांकि पिछले सप्ताह लोकसभा में केवल अन्नाद्रमुक के सदस्य ही अध्यक्ष के आसन के निकट आकर नारेबाजी कर रहे थे और पोस्टरबाजी कर रहे थे मगर सदन इनकी इसी गतिवि​िध की वजह से नहीं चल पाया था।

सदन में फैली अव्यवस्था को मुद्दा बनाकर लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन नियमतः लाये गये अविश्वास प्रस्ताव को विचार के लिए इसलिए स्वीकृत नहीं कर रही हैं कि सदन में अव्यवस्था है जिसके चलते वह प्रस्ताव के समर्थक न्यूनतम 50 सदस्यों की गिनती करने में असमर्थ रहती हैं। हालांकि सदन में अव्यवस्था पैदा करने में शुरू में आन्ध्र प्रदेश के तेलगूदेशम व वाईएसआर कांग्रेस के सांसदों की भी भूमिका रही मगर बाद में उन्होंने लोकसभा में अपना विरोध बन्द कर दिया लेकिन राज्यसभा में अब भी उनका यह प्रदर्शन चालू है।

सबसे बड़ा सवाल यह है कि केन्द्र सरकार सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर अमल को क्यों टालने की मुद्रा में है? विगत 16 फरवरी को सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया था कि सरकार 6 सप्ताहों के भीतर बोर्ड का गठन कर दे जिससे तमिलनाडु, कर्नाटक व केरल के बीच कावेरी नदी के जल का बंटवारा उसके बताये गये फार्मूले के तहत किया जा सके। न्यायालय के फैसले का कर्नाटक ने स्वागत किया था जबकि तमिलनाडु में इस पर रोष भी व्यक्त किया गया था।

इसके बावजूद तमिलनाडु के लोग चाहते हैं कि फार्मूले के अनुसार नदी का पानी उन्हें दिया जाये मगर यह काम तभी हो सकता है जबकि बोर्ड का गठन हो जाये। गर्मियों का समय आ जाने की वजह से इस राज्य के किसानों को खेती के लिए पानी की आवश्यकता भी जरूरी हो जायेगी अतः राज्य के राजनीतिक दलों की इस सम्बन्ध में जिज्ञासा को समझा जा सकता है।

आश्चर्य की बात यह है कि छह सप्ताहों के समय की अवधि के अन्तिम दिन 30 मार्च को केन्द्र की सरकार जागी और उसने सर्वोच्च न्यायालय में पुनर्समीक्षा याचिका दायर करके समय बढ़ाये जाने की दरखास्त यह जानते हुए लगा दी कि 2 अप्रैल को जब लोकसभा की कार्यवाही पुनः शुरू होगी तो यह विषय लटका ही रहेगा जिससे संसद का कामकाज फिर से ठप्प हो सकता है।

यदि संसद फिर से ठप्प होती है तो सरकार के खिलाफ लाया जाने वाला अविश्वास प्रस्ताव फिर से बट्टे खाते में डाला जा सकता है, सदन केवल 6 अप्रैल तक ही चलेगा और सरकार अविश्वास प्रस्ताव से बच सकती है लेकिन यह सवाल अब अन्नाद्रमुक के लिए राजनीतिक रूप से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि वह यदि अब भी लोकसभा में नारेबाजी व शोर-शराबा करके इसकी कार्यवाही को नहीं चलने देती तो सीधे उस पर सरकार की मदद करने का आक्षेप लग जायेगा क्योंकि सरकार ने यह मामला न्यायालय के दायरे में डाल दिया है। शायद इसी वजह से तमिलनाडु की अन्नाद्रमुक सरकार सर्वोच्च न्यायालय में केन्द्र के खिलाफ उसके आदेश की अवमानना करने के लिए जा रही है और तमिलनाडु में आन्दोलन चलाना भी चाहती है, हालांकि उसकी विरोधी द्रमुक पार्टी आन्दोलन की शुरूआत कर भी चुकी है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

nineteen + four =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।