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राष्ट्रपति की पुन: चेतावनी

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राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने एक बार फिर भारत की ‘विविधता’ की ताकत की तरफ इशारा करते हुए स्पष्ट सन्देश दिया है कि भारत दुनिया का ऐसा ‘अनूठा देश है जिसकी पांच हजार साल से भी ज्यादा पुरानी संस्कृति के छाते के तले विभिन्न मत-मतान्तर मानने वाले लोग शान्ति और सौहार्द के साथ रहते आये हैं। जिस देश में दो सौ भाषाएं व बोलियां बोली जाती हों और जहां द्रविड़, मगोल व काकेशस जातीय वर्गों के लोग हजारों साल से मिल-जुलकर रहते आये हों उस देश में धर्म या मान्यता के नाम पर मनुष्यों की सरेआम हत्या करना आधुनिक भारत में कलंक से कम नहीं है। ऐसी प्रवृत्तियों पर अंकुश रखने के लिए लोगों को ही सावधान होकर इसे दूर करना होगा। गौ संरक्षण के नाम पर देश में जिस प्रकार आतंक का माहौल बनाया जा रहा है वह भारत जैसे सभ्य देश में अक्षम्य कहा जा सकता है क्योंकि गौपालकों में केवल हिन्दू ही नहीं बल्कि दूसरे धर्मों को मानने वाले लोग भी शामिल होते हैं। इससे भी ऊपर भारतीय संस्कृति ‘वसुधैव कुटुम्कम’ का उद्घोष करते हुए प्रत्येक नागरिक को संविधान प्रदत्त अधिकारों की पुरजोर पैरवी करती है।

इसके साथ यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि स्वयं प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने भी गऊ के नाम पर दहशत फैलाने वाले लोगों को आड़े हाथों लेते हुए उहें ‘असामाजिक तत्व’ तक कहा और कानून को अपना काम करने देने की इजाजत दी। भारत में कानून का शासन इस प्रकार चलता है कि किसी भी राजनैतिक दल की सरकार का इकबाल इसके बूते पर बुलन्द रहता है। लोकतन्त्र में सरकार का इकबाल लाठी-डंडे से नहीं बल्कि कानून के पालन के जरिये चलता है। राजनैतिक विरोध का इससे केवल इतना लेना-देना ही रहता है कि कानून का पालन करने की वकालत की जाये। इसके साथ हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी देश का विकास केवल आर्थिक आंकड़ों से नहीं मापा जाता बल्कि वहां के लोगों के नजरिये से भी पहचाना जाता है।

यही वजह रही कि राष्ट्रपति महोदय ने ताकीद की अंधकार और देश को पीछे ले जाने वाली ताकतों के प्रति हमें सजग रहना होगा। दुनिया के सबसे बड़े लिखित संविधान में यह साफ लिखा हुआ है कि कोई भी काबिज सरकार नागरिकों के नजरिये को वैज्ञानिक पुट देने का प्रयास करेगी। हम बड़े-बड़े बिजली घर लगा सकते हैं, बांध बना सकते हैं और कल-कारखानों का जाल खड़ा कर सकते हैं। इनके जरिये लोगों की आर्थिक क्षमता बढ़ा भी सकते हैं मगर दिमागी क्षमता बढ़ाये बिना यह सब बेकार है क्योंकि आदमी का दिमाग ही उसे आगे की सोच की तरफ ले जाता है वरना वह मात्र मशीन बन कर उत्पादन करने वाला औजार बन कर रह जायेगा। लोकतन्त्र की यही तो खूबसूरती है कि वह व्यक्ति के निजी विकास की सभी संभावनाओं को खोलते हुए सामाजिक विकास के रास्ते पर आगे बढ़ता है और आर्थिक विकास की सीढिय़ां चढ़ता है। नहीं भूला जाना चाहिए कि हम कम्युनिस्ट चीन नहीं है जहां निजी सम्मान और गौरव को गिरवी रखकर एक पक्षीय आर्थिक विकास किया गया है बल्कि हम भारत हैं जिसके संविधान में निजी सम्मान व गौरव को सबसे ऊपर रखा गया है।

यही वजह थी कि महात्मा गांधी ने स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान निजी गौरव को विशेष महत्व दिया था और बाकायदा ‘हरिजन अखबार’ में लेख लिखकर भारतवासियों को चेताया था कि समाज का विकास ध्येय होना चाहिए मगर प्रत्येक व्यक्ति के निजी सम्मान की रक्षा करते हुए लोकतन्त्र और साम्यवाद में यही मूल अन्तर है। राष्ट्रपति के कथन को बहुत गंभीरता से लेने की जरूरत है क्योंकि उन्होंने वर्तमान परिस्थितियों का वैज्ञानिक विश्लेषण करते हुए अपनी बात रखी है। बात बस इतनी सी है कि सभी भारतवासी उस सभ्यता का पालन करें जिसके लिए वे जाने जाते हैं। अपवाद हर समाज में होते हैं परन्तु जब वे ‘सांस्थनिक स्वरूप’ धारण कर लेते हैं तो समाज में तनाव का माहौल पैदा हो जाता है जिससे विकास के सभी मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं। बेशक भारत बदल रहा है, हम आर्थिक मोर्चे पर तरक्की कर रहे हैं परन्तु यदि हम मानसिक तौर पर बीमार बने रहते हैं तो आने वाली पीढिय़ों के लिए अराजक समाज ही छोड़कर जायेंगे।

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