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‘रामबाण’ नहीं है आधार

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आधार कार्ड को लेकर कुछ समझ में नहीं आ रहा कि क्या हो रहा है। सरकार भी आधार कार्ड के चक्कर में जलेबी की तरह उलझ गई है। कभी कुछ तो कभी कुछ दिशा-निर्देश जारी किए जा रहे हैं। अब टेलिकॉम सचिव ने कहा है कि मोबाइल सिम लेने के लिए आधार कार्ड की जरूरत नहीं होगी। मोबाइल सिम के लिए अब वोटर आईडी, पासपोर्ट और ड्राइ​विंग लाइसैंस का इस्तेमाल किया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट पहले ही मोबाइल नम्बरों को आधार से जोड़े जाने को अनिवार्य बनाए जाने के केन्द्र सरकार के फैसले पर सवाल उठा चुकी है। आधार मामले से न सिर्फ भारतीय प्रभावित ​हुए बल्कि एनआरआई और भारत आने वाले विदेशी पर्यटकों को भी काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा था। भारतीय जब भी विदेश जाते हैं, उन्हें वहां के हवाई अड्डों पर आसानी से सिम मिल जाते हैं लेकिन भारत में आधार कार्ड की बंदिश के कारण एनआरआई काे भी सिम नहीं मिल रहे थे। मोबाइल रिटेलर्स ने तो उनको सिम कार्ड बेचने ही बंद कर दिए थे।

आधार को लेकर बंदिशों का कोई आैचित्य नज़र नहीं आ रहा था जबकि सरकार विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने के हरसंभव प्रयास कर रही है। इससे स्थानीय स्तर पर व्यवसाय प्रभावित हुआ और भारत आने वाले लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा। वास्तव में टेलिकॉम कंपनियां उपभोक्ताओं को परेशान नहीं करना चाहतीं लेकिन आधार को लेकर ऐसा वातावरण सृजित हो गया जैसे हर काम के लिए आधार अनिवार्य हो गया हो। जन्म से लेकर मृत्यु तक का प्रमाणपत्र लेने, बैंक अकाऊंट खोलने इत्यादि हर काम के लिए आधार की अनिवार्यता को लेकर भी सवाल उठे।

पिछली सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने आधार के बारे में महत्वपूर्ण प्रश्न खड़ा कर दिया है और यह भी कहा है कि आधार हर मर्ज का इलाज नहीं है। शीर्ष न्यायालय ने केंद्र सरकार के इस तर्क को खारिज कर दिया है कि आधार हर भ्रष्टाचार को रोकने का एक सुनिश्चित हथियार है। आधार हर धोखाधड़ी को नहीं पकड़ सकता है और न ही इससे आतंकियों काे पकड़ने में मदद मिल सकती है।

मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय सं​िवधान पीठ इन दिनों आधार कानून की वैधता पर सुनवाई कर रही है। शीर्ष न्यायालय ने यह प्रश्न किया कि सरकार हर चीज को आधार से क्यों जोड़ना चाहती है? क्या हर व्यक्ति को वह आतंकवादी समझती है? आखिर आधार से बैंक धोखाधड़ी कैसे रुक जाएगी? वहां पहचान का संकट नहीं है। बैंक को मालूम होता है कि वह किसको कर्ज दे रहा है। बैंक धोखाधड़ी कर्मचारियों की मिलीभगत से होती है।

न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि बैंक धोखाधड़ी रोकने में बैंक सफल नहीं हैं। अटार्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने अपने तर्क में कहा कि आधार के माध्यम से हजारों करोड़ की धोखाधड़ी एवं बेनामी लेन-देन पकड़े गए और फर्जी कम्पनियों का भी खुलासा हुआ है लेकिन शीर्ष न्यायालय इस दलील से संतुष्ट और सहमत नहीं है। यह सत्य है कि आधार के अनेक फायदे अवश्य हैं, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने जो प्रश्न खड़ा किया है, उसे भी खारिज नहीं किया जा सकता।

जिस प्रकार से बैंकों में घोटाले हो रहे हैं उन्हें आधार के माध्यम से नहीं पकड़ा जा सकता है। यह व्यवस्था और प्रक्रियागत खामियां हैं, जो भ्रष्टाचार को प्रोत्साहित कर रही हैं। सर्वोच्च न्यायालय के सवाल गंभीर और विचारणीय हैं। सरकार को ऐसे उपाय करने होंगे जिससे बैंक धोखाधड़ी या अन्य घोटाले रोके जा सकें। सिर्फ आधार को ही ‘रामबाण’ नहीं माना जा सकता है। अन्य विकल्प भी विकसित करने होंगे। आधार से निजता का मामला भी जुड़ा है, जिसकी रक्षा अत्यंत आवश्यक है। इसके दुरुपयोग के बढ़ते खतरे को भी रोकना होगा।

आधार कार्ड अब सरकार के लिए विवाद का विषय बन चुका है जबकि वास्तव में इसे लोगों की मदद और प्रशासनिक व्यवस्था को आसान बनाने के लिए शुरू किया गया था। आधार की शुरूआत सरकार की समाज कल्याण योजनाओं को लागू करने और समाज के कमजोर वर्गों को दिए जाने वाले लाभ को सीधा हस्तांतरण करने के लिए की गई थी। यह उचित भी था कि सरकार ने डुप्लीकेट पैन कार्डों को खत्म करने के लिए और सरकारी लाभों के पात्र लोगों की बजाय अन्य के हाथों में जाने से रोकने के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य बनाया परन्तु आधार को पैन से जोड़ने और आधार को बैंक खातों से जोड़ने के फरमानों ने लोगों को असहज बना दिया। इसे लोगों की निजता में हस्तक्षेप माना गया। सरकार को ऐसे कदम उठाने चाहिएं जिसमें आधार की योग्यता बनी रहे अन्यथा आधार ही अयोग्य बन जाएगा।

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