जिस देश ने भारत पर 300 वर्ष तक शासन किया, उस ब्रिटेन ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपने सिर-आंखों पर बिठाया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2010 के बाद से पहली बार राष्ट्रमंडल देशों की बैठक में भाग लिया। वर्ष 2011 और 2013 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस बैठक में हिस्सा नहीं लिया था। इसके बाद भी 2015 में मोदी भी इसमें शामिल होने नहीं जा सके थे।
पूर्व प्रधानमंत्री स्व. जवाहर लाल नेहरू ने भारत को राष्ट्रमंडल देशों में शामिल कराया था। भारत के अन्य प्रधानमंत्रियों ने राष्ट्रमंडल में कोई खास रुचि नहीं दिखाई। वर्ष 1931 में बना राष्ट्रमंडल पूर्व ब्रितानी उपनिवेशों समेत कई अन्य देशों का एक समूह है। यह मंच विकास से जुड़े मुद्दों पर ध्यान देता है। इस मंच को एक उपनिवेशक पहचान के रूप में देखा गया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रॉयल पैलेस में भारतीय समुदाय के बीच जिस अन्दाज में अपने दृढ़ संकल्पों के साथ-साथ अपनी फकीरी को व्यक्त किया,
उससे भारतीय समुदाय में उनकी छवि ‘रमता राम अकेला’ जैसी बन गई है, जिसे दिन-रात लोगों की भलाई और देश के विकास की धुन लगी हुई है। प्रधानमंत्री ने अपनी कविता ‘रमता राम अकेला’ शेयर भी की है। पिछले वर्ष जब प्रिन्स चार्ल्स भारत आए थे तो उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को राष्ट्रमंडल बैठक में शामिल होने के लिए महारानी एलिजाबेथ का व्यक्तिगत निमंत्रण दिया था।
ब्रिटेन का मोदी को महत्व देने के पीछे बड़ा कारण यह है कि ब्रेिग्जट के बाद ब्रिटेन को विदेशी निवेश की बहुत जरूरत है। अगर ब्रिटेन आैर भारत दोनों एक साथ आते हैं तो दोनों देशों को काफी फायदा होगा। राष्ट्रमंडल देशों में 7 महाद्वीपों के 53 देश शामिल हैं।
इन देशों की कुल आबादी 2.4 अरब है जो वैश्विक आबादी की 30 फीसदी है। भारत इस समूह का सबसे बड़ी आबादी वाला देश है जिसमें 125 करोड़ लोग रहते हैं आैर यह राष्ट्रमंडल की कुल आबादी का 55 फीसदी है। राष्ट्रमंडल के 53 देशों के जरिये ब्रिटेन अपने आर्थिक उद्देश्यों को सिद्ध करने की कोशिश में है ताकि यूरोपीय संघ को छोड़ देने के बाद भी उसके आर्थिक हित प्रभावित न हों।
ब्रिटेन को अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए नए मंचों का सहयोग चाहिए और राष्ट्रमंडल उसके लिए पहले ही एक मंच तैयार था। सबसे बड़ी बात यह है कि राष्ट्रमंडल में चीन की मौजूदगी नहीं है, इसलिए इस मंच में उसे चीन की कोई चुनौती नहीं है। भारत के सामने 53 देशों से आर्थिक सम्बन्ध मजबूत करने के लिए खुला मैदान है। राष्ट्रमंडल देेशों की बैठक में भविष्य की चर्चा भी हुई।
प्रधानमंत्री ने अपने विचार खुलकर रखे। प्रधानमंत्री ने तकनीकी सहयोग के लिए राष्ट्रमंडल कोष में भारत के योगदान को दोगुना करने की घोषणा के साथ ही जिम्मेदार देश होने का पिरचय देते हुए छोटे द्विपीय देशों को विकासात्मक सहयोग देने की प्रतिबद्धता जताई है। राष्ट्रमंडल के माध्यम से एक संयुक्त बाजार उभरेगा जिसका फायदा भारत को मिलना तय है। अगर राष्ट्रमंडल देश आयात शुल्क घटाएं तो भारत का व्यापार बढ़ेगा।
इस दौरान भारत और ब्रिटेन में कई महत्वपूर्ण समझौते हुए। हिन्द व प्रशांत महासागर के क्षेत्र में भारत-ब्रिटेन की नौसेनाओं के बीच नए सहयोग की शुरूआत होगी। यह सहयोग चीन को नागवार गुजर सकता है। भारत-ब्रिटेन का स्टैंड यह है कि हिन्द-प्रशांत का क्षेत्र सभी के लिए एक समान तौर पर खुला होना चाहिए।
भारत अब ब्रिटेन में निवेश करेगा जिससे भारतीय युवाओं को रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। दोनों देशों में व्यापार में अड़चन दूर करने आैर कारोबार आसान बनाने पर चर्चा हुई। एक समय था जब भारत विश्व की महाशक्तियों के भरोसे था, आज भारत बोलता है तो दुनिया सुनती है।
दरअसल दुनिया में इस समय किसी नेता का सबसे ज्यादा महत्व है तो वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का। वह आम लोगों के चहेते तो हैं ही, लेकिन दुनिया के बड़े नेता भी उनकी प्रशंसा करते हैं। ब्रिटेन से पहले मोदी जब स्वीडन पहुंचे थे तो वहां के प्रधानमंत्री स्टीफन लॉवेन खुद एयरपोर्ट पर प्रोटोकॉल तोड़कर उनके स्वागत के लिए मौजूद थे। आलोचक कुछ भी कहें लेकिन प्रधानमंत्री को दुनिया ग्लोबल लीडर मान चुकी है।