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रेरा का डंडा तो चला लेकिन…

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करीब डेढ़ लाख लोग नोएडा, ग्रेटर नोएडा और नोएडा एक्सटेंशन में निवेश के बाद वर्षों से फ्लैटों की पोजेशन का इंतजार कर रहे हैं। हजारों लोग अदालतों में बिल्डरों की मनमानी के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी लोगों को फ्लैटों का कब्जा दिलवाने का आश्वासन दिया है। यह सही है कि न्यायपालिका ने निवेशकों से धोखाधड़ी करने वाले बिल्डरों पर शिकंजा कसा है। कुछ मामलों में बिल्डरों को निवेशकों का धन लौटाने या फिर फ्लैट देने के निर्देश दिए हैं। कुछ कम्पनियों के निवेशकों से उनकी व्यक्तिगत सम्प​त्ति का ब्यौरा मांगा गया और उनके विदेश जाने पर रोक लगा दी गई है लेकिन अदालतों की प्रक्रिया इतनी धीमी है कि निवेशकों को न्याय के लिए कई वर्ष तक इंतजार करना पड़ेगा। देश में रियल एस्टेट अथॉरिटी (रेरा) पिछले वर्ष से लागू है। इसके तहत जारी गाइड लाइन पर खरा उतरने के बाद ही कोई भी बिल्डर नया प्रोजैक्ट लांच कर सकता है। अभी तक ऐसा कोई सिस्टम नहीं था जिसके तहत बिल्डरों की मनमानी पर रोक लगाई जा सके। अब राज्यों में भी रेरा कानून को प्रभावी ढंग से लागू किया जा रहा है। बिना रेरा पंजीयन के कोई भी प्रोजैक्ट की बिक्री नहीं शुरू कर पाएगा।

प्रोजैक्ट पूरा होने में देरी होने पर पेनल्टी भरनी होगी और खरीदार से जो पैसा मिलेगा उसका 70 फीसदी निर्माण कार्य पर खर्च किया जाएगा। कानून में खरीदारों के हितों की सुरक्षा के लिए कई प्रावधान किए गए हैं। रेरा नियमों के तहत बिल्डर को 5 साल तक प्रोजैक्ट की मरम्मत का जिम्मा उठाने का प्रावधान किया गया। इसके अलावा बिल्डर लेट पेमेंट पर मनमाना जुर्माना भी नहीं वसूल पाएंगे। नियमों और कानूनों का फायदा तभी है जब उन्हें सख्ती से लागू किया जाए। बिल्डरों ने एक प्रोजैक्ट के लिए निवेशकों से धन एकत्र किया और दूसरे प्रोजैक्ट में लगा दिया। दूसरे प्रोजैक्ट का पैसा तीसरे प्रोजैक्ट में लगा दिया। केवल ढांचे खड़े कर दिए, किसी को दिया कुछ नहीं। रेरा कानून रियल एस्टेट सैक्टर परियोजनाओं की डिलीवरी में देरी, अपूर्ण परियोजनाएं, निर्माण की बढ़ती लागत, विनियामक मुद्दों जैसी बहुत सारी समस्याओं के हल के लिए ही लाया गया था। यह कानून आवासीय और वाणिज्यिक दोनों ही परियोजनाओं के नियंत्रण के लिए ही बना है। रियल एस्टेट नियामक अधिनियम से यह अपेक्षित है कि वह रियल्टी क्षेत्र में पारदर्शिता लाकर उत्तरदायित्व का निर्वहन करे। इस कानून में खास बात यह है कि खरीदारों आैर डेवेलपर्स किसी की भी शिकायतों का निराकरण 60 दिन के भीतर किया जाएगा। रेरा ने अब एक खरीदार के हक में पहला बड़ा फैसला सुनाया है। रेरा ने एक बिल्डर काे खरीदार का पैसा वापस करने का आदेश दिया है। यह आदेश दिल्ली की एक महिला की शिकायत पर प्रोमोटर बुललैंड बिल्टेक के खिलाफ सुनाया है।

रेरा ने बिल्डर को 45 दिन के भीतर शिकायतकर्ता को फ्लैट की कुल लागत के साथ प्रतिमाह 25 हजार रुपए जुर्माने ने रूप में देने का आदेश भी दिया है। महिला पहले ही दो फ्लैटों के लिए 50 लाख का भुगतान कर चुकी थी। एग्रीमेंट के अनुसार फ्लैटों का कब्जा देने की तिथि 31 अक्तूबर 2015 थी। शिकायत के बाद जांच-पड़ताल में पाया गया कि परियोजना का निर्माण कार्य बन्द है। इसमें पहले ही लगभग 2 वर्ष का विलम्ब हो चुका है। शिकायतकर्ता महिला ने भी अदालत में लड़ाई लड़ी लेकिन उसे इन्साफ नहीं मिला तो उसने 4 महीने पहले ही रेरा में इसकी शिकायत की थी। अगर बिल्डर ने खरीदार का धन नहीं लाैटाया तो उसकी प्रोपर्टी या बैंक अकाउंट से पैसों की वसूली की जा सकती है।

रेरा का फैसला सराहनीय है लेकिन खरीदार को इन्साफ तब मिलेगा जब बिल्डर उसे पैसा वापस करेगा। कई खरीदार इस बात की शिकायत कर रहे हैं कि रेरा में शिकायत करने के बाद भी उनकी सुनवाई नहीं हो रही। सुनवाई की तारीख हर महीने आगे बढ़ा दी जाती है जिससे उन्हें परेशानी हो रही है। रेरा में खरीदारों की शिकायतों का अम्बार लगा हुआ है। अधिक मामले होने से दबाव बन गया है। रेरा प्राधिकरण को चाहिए कि कई शहरों में अपनी शाखाएं स्थापित करे ताकि लोगों को हर सुनवाई के लिए लखनऊ न जाना पड़े। कई राज्यों में बिल्डरों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। पंजीयन न कराने वाले बिल्डरों के प्रोजैक्ट रद्द किए जा रहे हैं। यह सही है कि खरीदार पहले से बहुत जागरूक है, वह अपने हकों की लड़ाई लड़ना भी जानता है ​लेकिन सिस्टम की खामियों की वजह से उसे इन्साफ पाने के लिए बहुत जद्दोजहद करनी पड़ती है। उसे इन्साफ आसानी से नहीं ​मिलता। रेरा का डंडा चले तो फिर ऐसा चले कि खरीदार काे फ्लैट नहीं तो उसका धन तो उसे मिल ही जाए।

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