चीन के बीजिंग में भी दिल्ली में स्मॉग जैसे हालात थे और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को पहुंचना था लेकिन चीन ने ऐसा कमाल दिखाया कि रात ही रात में धुंध साफ कर दी। बीजिंग का प्रशासन दिन में ही सक्रिय हो गया था। बीजिंग में गाड़ियों और निर्माण पर अस्थायी रोक लगाई, स्टील, सीमेंट और कोयला कंपनियों का उत्पादन रोका, दूसरे शहरों से आने वाले वाहनाें पर रोक लगा दी गई, लोगों को पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करने को कहा गया। एंटी स्मॉग गन का इस्तेमाल किया गया जिससे पानी की बौछार के साथ डस्ट पार्टिकल्स नीचे आ गए। जब ट्रंप का विमान उतरा तो आसमान साफ था। क्या बीजिंग जैसे कदम दिल्ली में नहीं उठाए जा सकते? उठाए जा सकते हैं लेकिन इसके लिए राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी है।
राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण, न्यायालय और एनएचआरसी सभी ने सख्त रवैया अपनाया तो दिल्ली सरकार हरकत में आई। दिल्ली सरकार की नाकामी तो सामने आई ही साथ ही केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय भी इसके लिए कम जिम्मेदार नहीं। पर्यावरण मंत्रालय ने राजधानी में प्रदूषण रोधी उपाय लागू करने में तत्परता क्यों नहीं दिखाई? इन सवालों का जवाब तो उसे देना ही होगा। भारत और चीन दोनों ही घनी आबादी वाले देश हैं लेकिन हमने चीन की तरह न तो पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम को मजबूत बनाया और न ही हम तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं। बीजिंग और दिल्ली दुनिया के दो सबसे अधिक प्रदूषित शहर हैं, दिल्ली की तुलना बीजिंग से करना ही बेहतर है क्योंकि आबादी, वाहनों की संख्या आैर आकार के हिसाब से दिल्ली बीजिंग के बराबर है। दिल्ली सरकार फिर से आड-ईवन फार्मूला ले आई है। बीजिंंग में आड-ईवन फार्मूला 2008 के ओलिम्पिक खेलों में लागू किया गया था। इसके अलावा दो बार और इसे लागू किया गया था, नई गाडि़यों की बिक्री पर भी पाबंदी लगाई गई है, जिससे प्रदूषण काफी कम हुआ लेकिन नई गाड़ियां फिर आने से प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ गया। अब नए रास्तों की तलाश की जा रही है। आड-ईवन फार्मूला मैक्सिको में 1984 में लागू किया गया था जो 1993 तक चला।
योजना के लागू करने के तुरंत बाद प्रदूषण में 11 प्रतिशत की कमी आई लेकिन लोगों ने आड-ईवन दोनों रजिस्ट्रेशन नम्बर की कारें खरीदनी शुरू कर दीं जिससे सड़कों पर कारों की संख्या और भी बढ़ गई। प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ गया। हालात बिगड़ गए तो अधिकारियों को यह फार्मूला रद्द करना पड़ा। लंदन, पेरिस और विश्व के कई शहरों में आड-ईवन फार्मूला अपनाया जा चुका है। ऐसा नहीं है कि दिल्ली की जनता आड-ईवन का समर्थन नहीं करती, दिल्लीवासी प्रदूषण से मुक्ति चाहते हैं लेकिन स्थितियां अनुकूल नहीं हैं। दिल्ली की आबादी एक करोड़ 70 लाख है, वाहनों की संख्या लगभग एक करोड़ है। इसके अलावा लाखों वाहन दूसरे राज्यों से दिल्ली में प्रवेश करते हैं। लोगों के पास सम-विषम नम्बर वाली दो-दो गाड़ियां हैं, लाखों परिवारों के पास प्रत्येक सदस्य के पास अपनी-अपनी गाड़ियां हैं। दिल्लीवासी ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करने के लिए पहले ही बदनाम हैं। सड़कों पर लोग बदहवास हो जाते हैं और ट्रैफिक नियमों की धज्जियां उड़ाते नज़र आते हैं। आड-ईवन पर लोगों की राय बंटी हुई है।
कुछ पक्ष में हैं, कुछ विरोध में हैं। प्रदूषण को लेकर सियासत भी कम नहीं हो रही है। दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह आपस में उलझ पड़े हैं। पंजाब, हरियाणा में पुआल जलाने से दिल्ली का दम घुट रहा है। इस पर बहस जारी है। काश ! राज्य सरकारों ने धान की कटाई का सीजन शुरू होने से पहले ही फौरी उपाय लागू कर दिए होते तो शायद प्रदूषण से बचा जा सकता था। आड-ईवन से प्रदूषण तो घटेगा लेकिन दिल्ली की हवा पहले से ही इतनी जहरीली हो चुकी है तो फिर सांस कहां से लें। पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश, वायु सभी मनुष्य और जीवों के लिए बहुत जरूरी है। वायु के महत्व का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि मनुष्य भोजन के बिना कई दिनों तक जीवित रह सकता है लेकिन मनुष्य को वायु नहीं मिलेगी तो उसका जीवित रहना मुश्किल है। मनुष्य दिनभर में जो भी लेता है उसमें 75 प्रतिशत हवा ही होती है।
वैज्ञानिकों के अनुसार मनुष्य एक दिन में 22 हजार बार सांस लेता है। इस तरह वह प्रतिदिन 15 से 17 किलोग्राम तक वायु ग्रहण करता है। वायु के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में ऐसा कोई भी अवांछित परिवर्तन हो जिसके द्वारा स्वयं मनुष्य के जीवन या अन्य जीवों को जीने में दिक्कत या उनको सांस लेने में परेशानी होने लगे या फिर किसी भी प्रकार की हमारी प्राकृतिक संपदा नष्ट होने लगे तो समस्या बहुत गंभीर हो जाती है। इंसान को वायु का महत्व समझना होगा तभी इंसान अपने जीवन को सुरक्षित कर सकेगा क्योंकि जीवन यदि जीना है तो वायु को स्वच्छ रखना भी जरूरी है। केन्द्र सरकार, पर्यावरण मंत्रालय, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान सरकारों को मिलकर प्रदूषण मुक्ति के लिए समग्र योजना पेश करनी होगी और जनता को भी पूरा साथ देना होगा। सम-विषम फार्मूला, स्कूल बंद करना फौरी उपाय तो ठीक हैं लेकिन ऐसी व्यवस्था बार-बार करना संभव नहीं होगा।