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मजहब, मंदिर, जाति और हिन्दू कार्ड

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भारतीय लोकतंत्र में वोटतंत्र को अपने-अपने माकूल बनाने को लेकर इस साल 2017 की सबसे बड़ी जंग गुजरात में लड़ी जा रही है। जंग के तौर-तरीके, कायदे-कानून किताबों में तय हो सकते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि जमीन पर सबके अपने-अपने हिसाब-किताब बने हुए हैं। क्योंकि गुजरात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का होम स्टेट है, इसलिए पूरे देश की निगाहें यहां लगी हुई हैं। पिछली चार टर्म से गुजरात में भाजपा का शासन है और वहां का एक ईमानदार सीएम आज देश का एक वह पीएम है, जिनका लोहा दुनिया मानने लगी है लेकिन इसी गुजरात में कांग्रेस जो 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद हाशिये पर चली गई थी, राज्यों में सब कुछ गंवा चुकी है तो अब कुछ पाने के लिए गुजरात में जोर मार रही है। वो इसलिए क्योंकि कांग्रेस संगठन के अंदर ही अंदर एक ऊपरी सतह पर लोकतांत्रिक लड़ाई के बीच उपाध्यक्ष राहुल गांधी अध्यक्ष बनने जा रहे हैं। इस चुनाव में राहुल गांधी की इमेज अब पप्पू वाली नहीं बल्कि एक जुझारू नेता की है और उनकी कांग्रेस खबरों और आकलनों के मुताबिक भाजपा को कांटे की टक्कर देने जा रही है। अब हम सीधे प्वाइंट पर आते हैं। गुजरात में एक बार फिर धर्म और जाति पर सारा चुनाव फोकस हो गया है।

विकास का कोई एजेंडा है या नहीं हम नहीं जानते, लेकिन सब जानते हैं कि तरह-तरह के जुमले गुजरात में देखे और सुने जा सकते हैं। विकास पागल हो गया है या फिर कांग्रेस ने सारी जिंदगी पैसा ही बटोरा। प्रधानमंत्री मोदी हों या राहुल गांधी, अब तो हिन्दू-मुसलमान तथा अलाउद्दीन खिलजी और औरंगजेबी आरोप एक-दूसरे पर खुल कर लगने लगे हैं। ये आरोप हर स्तर पर जिस तरह से लग रहे हैं सारा चुनाव अन्य राज्यों की तरह जाति और मजहब पर आधारित होकर रह गया है। गुजरात चुनावों से दो महीने पहले राम मंदिर निर्माण का मामला गरमा जाना और तीन तलाक पर सख्त कानून बनाए जाने की वकालत को लेकर सोशल साइट्स पर अपनी-अपनी विचारधाराएं लोग शेयर करने लगे हैं। मोहब्बत और जंग में सब कुछ जायज होता है लेकिन गुजरात के चुनावों में अब कायदे-कानून किताबी रह गए हैं और नैतिकता कहीं भी दिखाई नहीं दे रही है तो फिर सवाल उठने स्वाभाविक ही हैं। हमारा मानना है कि शिक्षा, रोजगार, काम-धंधे, मेडिकल सुविधाएं, महिला सशक्तिकरण और यूथ को लेकर अनेक ऐसे कामकाज हैं, जिन्हें राज्य सरकारें करती हैं। यह उनका कत्र्तव्य है लेकिन जब गड़े मुर्दे उखाड़े जाएंगे तो फिर जनसेवा जिसे राजनीति का एक बड़ा हिस्सा माना जाता है तो वह शक के घेरे में आ सकती है। कांग्रेस, भाजपा या फिर पाटीदार नेता हार्दिक पटेल हो या ‘आधे कांग्रेसी और आधे भाजपाई’ शंकर सिंह वाघेला हों, इनसे जुड़े वे नेतागण जो मुकाबले में उतरे हुए हैं, के दामन भी पाक-साफ नहीं हैं। सोशल साइट्स पर चुनाव में उतरे सैकड़ों नेताओं की करोड़ों की प्रॉपर्टी के जिक्र हो रहे हैं। चैनल्स की दुनिया अपने-अपने सर्वे को लेकर सक्रिय है तो सट्टïेबाजों के दांव अलग ही हैं।

भाजपा और कांग्रेस के जीत के अपने-अपने दावे हैं लेकिन यह तो मानना ही पड़ेगा कि जिस तरह से हिन्दू-मुसलमान जो भारतीय लोकतंत्र में हमेशा ही केंद्र बिन्दू रहे हैं, इस बार इस हद तक पहुंच जाएंगे कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के जनेऊधारी होने तक के दावे किए जाने लगेंगे, यह किसी ने नहीं सोचा था। मंदिर में प्रवेश को लेकर इतनी सियासत कभी नहीं देखी गई। राम मंदिर निर्माण भारतीय आस्था का सवाल हो सकता है लेकिन गुजरात के मंदिरों में एंट्री को लेकर, पूजा-पाठ और भजन-कीर्तन को लेकर सियासत से जुड़े लोग मर्यादाओं और नैतिकताओं के तमाम बांध लांघ जाएंगे यह कल्पना भी किसी ने नहीं की। हम तो यही कहेंगे कि राहुल गांधी अगर मंदिरों में जाकर पूजा-पाठ करने लगे हैं या अपने माथे पर तिलक लगवाने लगे हैं तो इसके लिए उन्हें आरएसएस की हिन्दूवादी विचारधारा के प्रति नतमस्तक होना चाहिए, जिसे देखकर उन्होंने यह रास्ता चुना।

कांग्रेस रणनीतिकारों को लगता है कि गुजरात में सत्ता का द्वार शायद मंदिरों की सियासत से होकर गुजरता है, इसीलिए कांग्रेसी खेमे में यह एक हथियार बनकर इस्तेमाल किया जा रहा है। इसी कारण भाजपा इस पर पलटवार कर रही है। सोशल साइट्स पर एक टिप्पणी जोरदार है कि भाजपा के हिन्दूवाद पर कांग्रेस ने जनेऊधारी हिन्दू कार्ड से अब पलटवार किया है। समय की मांग यही है कि चुनाव होते हैं और वे मर्यादित तरीकों से लड़े जाने चाहिएं। एक बात पक्की है कि गुजरात का चुनाव सारे मुद्दों से हटकर केवल पीएम मोदी बनाम राहुल गांधी बनकर रह गया है। इसीलिए हिमाचल पर किसी का ध्यान नहीं बल्कि सारा ध्यान गुजरात पर ही फोकस हो गया है अगर राज्य बड़ी चीज है तो फिर हिमाचल को क्यों नजरअंदाज कर दिया गया? यह सवाल सोशल साइट्स पर लोग एक-दूसरे से शेयर कर रहे हैं। गुजरात का चुनाव अब अपने परिणाम से बस हफ्ताभर ही दूर रह गया है। हमारा मानना है कि गुजरात के विकास मॉडल की दुनियाभर में गूंज थी और इस बार यह रोल मॉडल मजहब, जातिवाद और हिन्दू-मुसलमान के आरोप-प्रत्यारोपों के बीच खोकर रह गया है। विकास सुनिश्चित रहना चाहिए, यह कभी पगलाना नहीं चाहिए बल्कि हमेशा सततï् रूप से चलते रहना चाहिए। जवाब वक्त देगा।

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