राष्ट्रीय हरित ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी ने अमरनाथ यात्रा के दौरान एक निश्चित सीमा से आगे जयकारे लगाने और मंत्रों के उच्चारण पर रोक लगाने का आदेश दिया है। यह फैसला हिन्दू धार्मिक संगठनों को यद्यपि रास नहीं आएगा, इस पर विवाद भी होगा और सत्तारूढ़ भाजपा ने तो इसे हिन्दू विरोधी एजैंडा तक करार दे दिया है। विश्व हिन्दू परिषद का कहना है कि एनजीटी ने अमरनाथ मंदिर में पूजा पद्धति पर रोक लगाकर एक तरह से तुगलकी फरमान जारी किया है। विहिप के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रवीण तोगड़िया ने कहा कि पर्यावरण संबंधी हर समस्या का कारण हिन्दू नहीं है। उन्होंने इस आदेश को वापिस लेने की मांग दोहराई है। ऐसी प्रतिक्रियाएं अन्य हिन्दू संगठनों की तरफ से भी आएंगी। हालांकि एनजीटी ने स्पष्टीकरण दे दिया है कि उसने अमरनाथ को साइलेंस जोन घोषित नहीं किया है। उसने केवल पवित्र गुफा के भीतर शिवलिंग के सामने खामोशी बरतने का निर्देश दिया है।
एनजीटी ने कहा है कि अंतिम चैक पोस्ट के बाद किसी भी श्रद्धालु को मोबाइल या किसी सामान को आगे ले जाने की इजाजत नहीं होनी चाहिए। जयकारों पर रोक लगाने के अलावा एनजीटी ने श्रद्धालुओं को पर्याप्त सुविधाएं मुहैया न करवाने और दिसम्बर 2017 के पहले सप्ताह तक स्टेटस रिपोर्ट दायर नहीं करने पर अमरनाथ श्राईन बोर्ड की खिंचाई भी की है। एनजीटी ने यह आदेश एक याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया है। कुछ समय पहले कांवड़ यात्रा के दौरान ऊंची आवाज में धार्मिक गीत बजाने और जगह-जगह कांवड़ शिविर लगाने पर भी कुछ संगठनों ने आपत्ति की थी तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि कांवड़ यात्रा के दौरान धार्मिक गीत नहीं बजेंगे, ढोल मंजीरे नहीं बजेंगे तो साेचिए कांवड़ यात्रा कैसी होगी। भक्त अगर भजन-कीर्तन नहीं करेंगे तो यह यात्रा किसी शव यात्रा के समान होगी लेकिन कांवड़ यात्रा और अमरनाथ यात्रा में काफी अंतर है।
प्रकृति ही शक्ति है और शक्ति ही शिव है। शिव, शक्ति और प्रकृति के मिलाप की यह पवित्र अमरनाथ यात्रा अपने साथ लेकर आती है साम्प्रदायिक सौहार्द और प्रांतीय एकरूपता का सुखद संदेश। बम-बम भोले का उद्घोष करते हुए जब श्रद्धालु बाबा बर्फानी से मिलने की ठान लेते हैं तो कच्चे-पक्के रास्ते तो क्या दरिया और पर्वत भी पार कर जाते हैं। चंदनबाड़ी के बर्फीले रास्ते, शेषनाग पर्वत की दुर्गम ऊंचाई और तीव्र प्रहारमयी लिद्धर दरिया इस आध्यात्मिक सफर में उनके साथी बन जाते हैं। जीवन में उत्साह और अद्भुत रोमांच और ईश्वर एवं प्रकृति के प्रति आस्था का संचार करने वाली अमरनाथ यात्रा का आकर्षण पिछले कुछ वर्षों से लगातार बढ़ रहा है या यूं कहिए कि आस्था का सैलाब उमड़ पड़ता है। इस गुफा में प्राकृतिक हिमलिंग के निर्माण की जानकारी सर्वप्रथम सोलहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में एक मुसलमान गडरिए बूटा मलिक ने दी थी, जिनके वंशजों को आज भी अमरनाथ यात्रा का एक चौथाई चढ़ावा दिया जाता है। प्रायः देखा जाता है कि देश के विभिन्न शक्तिपीठों आैर धार्मिक स्थलों पर श्रद्धालुओं का सैलाब तो उमड़ पड़ता है लेकिन पर्यावरण का कोई ध्यान नहीं रखा जाता।
प्रकृति से छेड़छाड़ का भयंकर परिणाम हमें उत्तराखंड के केदारनाथ में आई प्राकृतिक आपदा के रूप में देखा। 17 जून, 2013 की सुबह केदारनाथ में आए जल सैलाब में हजारों लोग बह गए। माना जा रहा है कि हजारों लोगों का तो अब तक कुछ पता ही नहीं चला। अमरनाथ पर एनजीटी का फैसला पूरी तरह विज्ञान की दृिष्ट से दिया गया है। एनजीटी ने कहा है कि ग्लेशियरों की संवेदनशीलता को देखते हुए पवित्र अमरनाथ गुफा के भीतर भजन-कीर्तन और ऊंची आवाज में जयकारों के चलते शांति और पारिस्थितिकी संतुलन भंग हो रहा है। इससे शिवलिंग तथा गुफा की प्राचीन स्थिति को बरकरार रखने में मदद मिलेगी।
प्राकृतिक विपदाएं क्यों होती हैं? मनुष्य के स्वभाव को भी हम प्रकृति ही कहते हैं। मनुष्य जब अपनी प्रकृति से विमुख हो जाता है तो परमात्मा की प्रकृति, जिसे पराप्रकृति कहते हैं, वह भी स्पष्ट हो जाती है। मनुष्य की प्रकृति तो स्वभाव में होती है, इसका निरीक्षण तो उसे स्वयं करना होगा और अपनी प्रकृति को पराप्रकृति के अनुरूप बनाना होगा। एनजीटी के फैसले को विशुद्ध रूप से धार्मिक आस्था के दृिष्टकोण से देखना उचित नहीं होगा। पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश सभी शिव तत्व हैं इसलिए यात्रा के दौरान शिव और प्रकृति दोनों का सम्मान करें। हम अगर खुद को दिल्ली में स्मॉग से पीड़ित मानते हैं और पर्यावरण को स्वच्छ बनाने की मांग करते हैं तो दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में स्थित धार्मिक स्थानों के पर्यावरण की सुरक्षा करना हमारा ही दायित्व है। प्रकृति तो अपने आप में विज्ञान है। इसके सभी अवयवों को निश्चित अनुपात में रखने के लिए हमें भागीरथ प्रयास करने ही होंगे।