कुछ वर्षों से हम बिहार में परीक्षाओं के दौरान चर्चित फोटो देखते आ रहे थे कि परीक्षा केन्द्र की सभी मंजिलों पर लोग चढ़े हुए हैं और धड़ल्ले से अन्दर बैठे परीक्षार्थियों को नकल करवाई जा रही थी। यह तस्वीर शिक्षा और परीक्षा पद्धति पर बहुत बड़े सवाल खड़े करती थी। फिर परीक्षा में नकल की स्थिति उस वक्त सामने आई जब बिहार बोर्ड की टॉपर छात्रा अपना विषय तक सही ढंग से नहीं बता पाई, सवालों के जवाब देने की तो बात छोड़ ही दीजिए। इस पूरे प्रकरण में बिहार का शिक्षा तंत्र मजाक का पात्र बन गया जब टॉपर छात्रा ने अपने विषय का नाम बताया-प्रॉडिकल साइंस। टी.वी. चैनलों पर टॉपर छात्रा का इंटरव्यू टेलिकास्ट होने के बाद छात्रा कानून की नजर में अपराधी हो गई। उसे और उसके पिता को जेल जाना पड़ा। नकल माफिया को दबोचा गया जिनमें एक स्कूल संचालक भी था, जो बच्चों को टॉपर बनाने का ठेका लेता था। इस पूरे प्रकरण के बाद बिहार की नीतीश सरकार ने कड़े कदम उठाए और कुछ हद तक नकल माफिया पर अंकुश लगाया।
अब बात करते हैं उत्तर प्रदेश की। राज्य में बोर्ड परीक्षाएं 6 फरवरी से शुरू हुईं। केवल पांच दिनों में दस लाख से ज्यादा छात्रों के परीक्षा छोड़ देने की खबर है। उत्तर प्रदेश बोर्ड ने टॉप टेन छात्रों को एक लाख का पुरस्कार देने की घोषणा कर रखी है फिर भी यह हाल है। सवाल यह है कि आखिर इतनी बड़ी संख्या में छात्र परीक्षा क्यों छोड़ रहे हैं? क्या परीक्षा छोड़ने का कारण योगी सरकार द्वारा की गई सख्ती है क्योंकि परीक्षा केन्द्रों पर सीसीटीवी लगा दिए गए हैं। क्या नकल के बिना हो रही परीक्षाओं से छात्र डर गए हैं। उन्हें पकड़े जाने आैर फेल हो जाने का डर है इसलिए उन्होंने परीक्षा में नहीं बैठने का फैसला ले लिया। अगर कुछ छात्र एग्जाम सिंड्रोम से ग्रस्त हैं तो फिर यह मामला काफी गंभीर हो जाता है। सारे कारणों की तलाश गहराई से होनी चाहिए और उनका निदान भी होना चाहिए। कहीं ऐसा तो नहीं कि उत्तर प्रदेश में सक्रिय रहे नकल माफिया ने ऐसा वातावरण सृजित कर दिया है जिससे छात्र भयभीत हो चुके हैं। दस लाख से अधिक छात्रों द्वारा अपने भविष्य से खिलवाड़ करना कोई सामान्य बात नहीं। यह तब हो रहा है कि जब कड़ी प्रतिस्पर्धा के युग में छात्र एक-एक अंक और एक-एक प्रतिशत के लिए होड़ में शामिल हैं। ऐसा करने वालों के लिए न शिक्षक और न ही अभिभावक अपनी भूमिका सही ढंग से निभा रहे हैं।
परीक्षा के मूल में है राजनीति। वैसे तो परीक्षाओं का सम्बन्ध सियासत से नहीं होना चाहिए लेकिन उत्तर प्रदेश में परीक्षाएं सियासत से प्रभावित रही हैं। सरकारें बनने और बिगड़ने में भी बोर्ड परीक्षाओं की अहम भूमिका रही है। इतिहास को देखें तो जब-जब भाजपा की सरकार बनी तब-तब बोर्ड परीक्षाओं में काफी हद तक शुचिता बरती गई। उत्तर प्रदेश में गैर-भाजपाई सरकारों के शासनकाल में नकल माफियाओं की पौबारह रही। 1992 से पहले राज्य में एक जुमला बड़ा लोकप्रिय था कि ‘‘सर्व तीर्थ बार-बार, गंगा सागर एक बार।’’ यानी गंगा सागर उन स्कूलों को कहा जाता था जहां एक बार या दो बार स्कूल जा आएं या फिर परीक्षा केन्द्र में एक बार हो आएं तो फेल होने का सवाल ही नहीं होता। 1992 में जब कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे आैर मौजूदा गृहमंत्री राजनाथ सिंह शिक्षामंत्री थे तब नकल विरोधी अध्यादेश में कई नकल को गैर जमानती अपराध की श्रेणी में डाल दिया गया था, तब तो छात्रों से लेकर परीक्षा ड्यूटी में लगे शिक्षक और प्रिंसिपल तक सहम गए थे। नकल माफिया में हड़कंप मच गया। परीक्षा के दौरान बड़ी संख्या में छात्र जेल भी भेजे गए। फिर भाजपा चुनावों में हार गई आैर मुलायम सिंह की सरकार सत्ता में आई तो उसने अध्यादेश को रद्द कर दिया। 1998 में राजनाथ सिंह मुख्यमंत्री बने लेकिन कानून में तब्दीली कर उसे काफी नरम कर दिया गया। अखिलेश यादव के शासनकाल में नकल माफिया की जमकर चली। परीक्षाओं के दौरान माफिया ने खूब पैसा बनाया।
योगी सरकार ने बोर्ड परीक्षाओं की शुचिता एवं पिवत्रता बनाए रखने के लिए उत्तर प्रदेश सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों का निवारण) अधिनियम काे फिर से लागू किया। इससे नकल माफिया को झटका लगा है। सरकार ने काफी सख्ती बरती। एक आेर पुलिस काफी अलर्ट है तो वहीं हिदायत दी गई है कि जिस परीक्षा केन्द्र में सामूहिक नकल हुई तो जिम्मेदार प्रबंधक और प्रिंसिपल होंगे। नकल माफिया के विरुद्ध गुंडा एक्ट के तहत कार्रवाई होगी। बोर्ड की परीक्षाएं नकलविहीन होनी ही चाहिएं। हालांकि कई जगह नकल कराए जाने की खबरें भी हैं। सवाल यह है कि इतनी बड़ी संख्या में छात्रों ने परीक्षा छोड़ अपने पांवों पर कुल्हाड़ी क्यों मारी? देश का भविष्य कहां-कहां से परीक्षा छोड़कर भागेगा। छात्रों के भविष्य को स्वर्णिम बनाने की जिम्मेदारी केवल सरकार की नहीं बल्कि उनके अभिभावकों व पूरे समाज की भी है। क्या छात्रों ने सोच लिया है कि परीक्षा देने की बजाय पकौड़े बेचना ज्यादा फायदेमंद है। परीक्षा छोड़ देने वाले बच्चों की काउंसलिंग की जरूरत है, उन्हें समझाने की जरूरत है कि सही रास्ता खुद मेहनत कर परीक्षा में बैठने का ही है। परीक्षा से भागना तो पलायन है। परीक्षा का डर उनके मन से निकालें अन्यथा भविष्य ही धूमिल हो जाएगा।