न्यायपालिका में भ्रष्टाचार है, इसके बावजूद भारतीयों की उसमें अटूट आस्था है लेकिन जब भ्रष्टाचार के मामलों में जजों की गिरफ्तारी होती है तो हर कोई सोचने को विवश हो जाता है कि वह न्यायपालिका का मूल्यांकन कैसे करे। गंगा के जल में बैठकर पाप करना अनुचित है। न्यायाधीश न्याय की देवी का पुजारी, आराधक और साधक होता है। उसका चिन्तन, आचरण और कृति जिस आसन पर वह बैठता है उसके आदर्श और अपेक्षाओं के अनुरूप होना ही उसे न्यायाधीश का बाना पहनने का पात्र बनाता है। अगर जज की कुर्सी पर बैठकर अन्याय किया जाता है तो वह उसका पात्र नहीं हो सकता। अगर कोई जज रिटायर होने के बाद भी भ्रष्टाचार में लिप्त है तो भी यह गलत आचरण है। अब लखनऊ के प्राइवेट मैडिकल कॉलेज में दाखिलों से सम्बन्धित मामलों को रफा-दफा करने की साजिश में हाईकोर्ट के पूर्व जज समेत 6 लोगों की गिरफ्तारी हुई है। डील एक करोड़ की थी। हाईकोर्ट के यह पूर्व जज हैं ओडिशा हाईकोर्ट के इसरत मसरूद कुद्दुसी। इसके साथ ही हमारी न्यायपालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार की एक और मिसाल जुड़ गई है। जस्टिस इसरत मसरूद 2004 से 2010 तक ओडिशा हाईकोर्ट में न्यायाधीश थे। पूर्व जज की गिरफ्तारी कोई नई बात नहीं। सवाल तो यह है कि पद पर रहते हुए उन्होंने क्या-क्या किया होगा। यह देश की न्याय व्यवस्था चरमराने का ही स्पष्ट संकेत है।
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार में मंत्री रहे गायत्री प्रजापति को बलात्कार के मामले में जमानत देने वाले अतिरिक्त सेशन जज ओम प्रकाश मिश्रा को सेवानिवृत्त होने से एक दिन पहले निलम्बित कर दिया गया था। जज ओम प्रकाश मिश्रा लखनऊ की बाल यौन अपराध संरक्षण अदालत में थे। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए मतदान के दौरान गायत्री प्रजापति को जमानत दिए जाने का मामला हाईप्रोफाइल हो गया था। उसने मतदान के दिन बड़े रौब से मतदान किया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने गायत्री प्रजापति की जमानत रद्द कर उसे जेल पहुंचाया था। गम्भीर मामलों में आरोपियों को जमानत मिलना यह कोई अनूठा मामला नहीं था। दिल्ली में तंदूर कांड को कौन भुला सकता है। कांग्रेस नेता सुशील शर्मा ने अपनी प्रेमिका नैना साहनी के शव के टुकड़े-टुकड़े कर उसे बगिया रेस्तरां के तंदूर में जला डाला था। तब भी वह तमिलनाडु की अदालत द्वारा जमानत लेने में कामयाब हो गया था जबकि अपराध दिल्ली में हुआ था और तमिलनाडु के अधिकार क्षेत्र में आता ही नहीं था।
इससे पहले भी कई जज गिरफ्तार हो चुके हैं। भ्रष्टाचार और गलत आचरण करने पर एक न्यायाधीश पर तो महाभियोग भी चलाया गया था लेकिन राजनीतिक खेमेबाजी के चलते महाभियोग का प्रस्ताव पारित ही नहीं हुआ था। सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश और पूर्व न्यायाधीश कई बार न्यायपालिका में भ्रष्टाचार पर चिन्ता व्यक्त कर चुके हैं। जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने भी कहा था कि ‘एक हाईकोर्ट अंकल सिंड्रोम अर्थात भाई-भतीजावाद से ग्रसित है। इस हाईकोर्ट में कुछ जजों के बेटे, सगे-सम्बन्धी प्रेक्टिस कर रहे हैं। प्रेक्टिस शुरू करने के कुछ दिनों बाद ही ये लोग लाखों कमा लेते हैं। उनके भारी-भरकम बैंक खाते हैं, लग्जरी कारें हैं, बड़ी-बड़ी कोठियां हैं।” इससे बड़ी विडम्बना क्या हो सकती है कि मद्रास हाईकोर्ट का जज, जिस पर भ्रष्टाचार के गम्भीर आरोप थे, वह न केवल अपने पद पर बना रहा बल्कि हाईकोर्ट में एडिशनल जज बना और बाद में उसे स्थायी नियुक्ति दे दी गई थी।
अधिकतर न्यायाधीश सेवानिवृत्त होकर बाद में मध्यस्थता करने लगते हैं। आर्बिट्रेशन एक ऐसी इंडस्ट्री बन गई है जिसमें शीर्ष अदालत के बहुत सारे न्यायाधीश हैं और करोड़ों कमा रहे हैं। कुछ तो मोटी डील करते हैं। इसरत मसरूद भी भुवनेश्वर के एक बिचौलिये के जरिये सुप्रीम कोर्ट से 46 मैडिकल कॉलेजों के नामांकन पर लगे प्रतिबंध से राहत दिलाने की साजिश कर रहे थे। अपने उच्च सम्पर्कों का दावा करने वाले बिचौलिये आजकल काफी सक्रिय हैं। अगर बिचौलिये अपने सम्पर्कों के माध्यम से बड़े लोगों के काम करवा रहे हैं तो स्पष्ट है कि न्याय बिक रहा है। न्याय का अर्थ है नीति संगत बात यानी उचित-अनुचित का विवेक। पूर्व जज की गिरफ्तारी की गम्भीरता को लेकर न्यायपालिका को स्वयं इस क्षेत्र को भ्रष्टाचारमुक्त बनाने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे अन्यथा न्यायपालिका के प्रति जनता का विश्वास गिरना स्वाभाविक होगा। राह न्यायपालिका को ही निकालनी है।