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शामली गैस त्रासदी : घोर लापरवाही

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उत्तर प्रदेश में शामली चीनी मिल के बायोगैस प्लांट से जहरीली गैस रिसाव से 500 स्कूली बच्चों के बीमार होने की घटना में भगवान का शुक्र है कि किसी बच्चे की जान नहीं गई अन्यथा एक और गैस त्रासदी हो जाती। कई घण्टों तक अस्पताल में बच्चों की चीख-पुकार गूंजती रही, अफरातफरी का माहौल बना रहा। प्रशासन की सांस अटकी रही। यद्यपि हर घटना के बाद जांच के आदेश दिए ही जाते हैं सो इस घटना के बाद भी जांच के आदेश दे दिए गए हैं। अधिकारियों का कहना है कि दोषी कोई भी हो, उसे बख्शा नहीं जाएगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी यही कह रहे हैं लेकिन सवाल यह है कि इस त्रासदी को पहले क्यों नहीं रोका गया। बायोगैस प्लांट से कैमिकल के निस्तारण के गलत तरीके और गैस रिसाव के कारण भविष्य में हादसे की आशंका स्कूल प्रबन्धन और स्थानीय लोगों ने पहले ही जता दी थी। लोगों ने शूगर मिल प्रबन्धन से शिकायत भी की थी लेकिन मिल प्रबन्धन ने उनकी शिकायत को गम्भीरता से नहीं लिया।

मिल प्रबन्धन की घोर लापरवाही के कारण ही बच्चों की जिन्दगी सांसत में पड़ गई। मिल प्रबन्धन की लापरवाही तो साफ है लेकिन प्रशासन भी लापरवाही के आरोप से बच नहीं सकता। बायोगैस प्लांट से कैमिकल का निस्तारण रास्ते के किनारे तालाब पर किया जा रहा था। उसकी फैलती गंध का क्या अधिकारियों को अहसास नहीं हुआ होगा? क्या अधिकारियों के नाक बन्द थे? क्या उन्हें जरा भी अपनी जिम्मेदारी का अहसास नहीं हुआ कि इससे शहर के लोगों को जान का खतरा हो सकता है? सरस्वती शिशु मन्दिर और बालिका विद्या मन्दिर इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्यों ने 15 दिन पूर्व ही शूगर मिल प्रबन्धन से शिकायत की थी और कहा था कि इससे स्कूल आने-जाने में बच्चों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है लेकिन किसी ने उनकी नहीं सुनी और प्रशासन के अधिकारी भी सोये रहे। यदि स्थानीय लोगों की शिकायतों पर गौर किया जाता और पूर्व में जांच करा ली जाती तो इतना बड़ा हादसा टल सकता था। वैसे भी गन्ने की पेराई शुरू होते ही शामली के लोग परेशान हो उठते हैं। शूगर मिलों में पेराई का सत्र शुरू होते ही लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इस दौरान छाई उड़ती है और आसपास के इलाकों में छाई का प्रकोप रहता है। मकानों की छतों पर काली छाई गिरती रहती है जिस कारण लोग छतों पर कपड़े तक नहीं सुखा पाते और खुले में पानी भी नहीं रख पाते।

लोगों को 3 दिसम्बर 1984 को भोपाल शहर में हुई भयानक औद्योगिक दुर्घटना तो याद होगी और निश्चित रूप से यह दुर्घटना अधिकारियों को भी याद होगी। भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड कारखाने से जहरीली गैस का रिसाव हुआ। हजारों लोगों की जान चली गई थी और बहुत सारे लोग अनेक तरह की शारीरिक अपंगता से लेकर अंधेपन का शिकार हुए। भोपाल गैस काण्ड से मिथाइल आइसो साइनाइड (मिक) नामक गैस का रिसाव हुआ था जिसका उपयोग कीटनाशक बनाने के लिए किया जाता था। भोपाल गैस त्रासदी को मानवीय समुदाय और पर्यावरण को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाली औद्योगिक दुर्घटनाओं में गिना जाता है। इस त्रासदी का कारण भी यही था कि कारखाने में कई सुरक्षा उपकरण न तो ठीक हालत में थे और न ही सुरक्षा के अन्य मानकों का पालन किया गया था। कौन नहीं जानता कि कम्पनी के सीईओ वारेन एंडरसन की गिरफ्तारी तो हुई थी लेकिन कुछ घण्टे बाद ही उन्हें रिहा कर दिया गया था और वह विदेश रवाना हो गया था।

भोपाल गैस त्रासदी से पीडि़त लोग आज भी नारकीय जीवन जीने को विवश हैं। शामली का हादसा शहरों के अनियोजित विकास की कहानी भी कह रहा है। प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों के निकट आबादी और स्कूल होने ही नहीं चाहिएं। प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग आबादी से दूर होने चाहिएं लेकिन भारत की यह विडम्बना है कि बढ़ती जनसंख्या के कारण शहरों का अनियोजित विकास होता गया। जहां जगह मिली लोगों ने वहां रहना शुरू कर दिया। औद्योगिक केन्द्रों के निकट लोग बसते रहे और जिन्दगी भर यातनाएं भुगतते रहे। शहरों के कचरा निस्तारण की कोई योजना नहीं, सरकारी और प्राइवेट अस्पताल भी अपना कचरा खाली पड़ी जमीन पर फैंक रहे हैं। डिस्टलरियां अपना वेस्ट सड़कों के किनारे डाल देती हैं, कोई देखने वाला नहीं। फैक्टरियों का रसायन घरों तक पहुंच रहा है। किसी को जिम्मेदारी का अहसास नहीं, किसी को लोगों की जान की परवाह नहीं। प्रशासन सोया रहता है तो फिर हादसों को कौन रोकेगा? ‘स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारतÓ जैसे अभियान तब तक बेमानी हैं जब तक शहरों का नियोजन सही तरीके से नहीं होता। जहां विद्यालय स्थापित हैं, ऐसी संवेदनशील जगह पर चीनी मिल का होना कहां तक न्यायसंगत है। क्या इस तरह की दुर्गन्ध मिल से पहली बार निकली है? ऐसे कई सवाल हैं जिनका जवाब प्रशासन और सरकार को देना होगा। उत्तर प्रदेश के गन्ना मंत्री सुरेश राणा भी शामली इलाके से ही हैं। क्या वह इन सवालों का जवाब दे पाएंगे?

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