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सब्सिडी: मुफ्तखोरी की संस्कृति

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भारत सब्सिडी के दुष्चक्र में ऐसा फंसा कि हर किसी को सब्सिडी चाहिए। राजनीति में सब्सिडी चाहिए। परिवार में सब्सिडी चाहिए। प्यार में सब्सिडी चाहिए। चीनी में सब्सिडी चाहिए। मुफ्तखोरी खून में रहती है। मुफ्त में किसी को कुछ भी मिल जाये, इन्सान खाने को तैयार रहता है। आम आदमी ऐसा नहीं था, उसको ऐसा बना दिया गया। उसे ऐसा बनाया सत्ता ने। सत्ता ने उसे मुफ्तखोरी की ऐसी लत लगा दी कि अब उसे तकलीफ हो रही है। सत्ता का पुराना सिद्घांत है कि अगर खुद मलाई खानी है तो लोगों को चटखारे लेने वाला नींबू पानी दीजिए, चाकलेट दीजिये या टाफियां बांटिए। इस सब्सिडी ने देश की अर्थव्यवस्था को इतना ज्यादा नुकसान पहुंचाया है कि पूछिए मत। पहले पैट्रोल-डीजल पर सब्सिडी ने अर्थव्यवस्था को खोखला बनाया, फिर रसोई गैस सब्सिडी और मिट्टी के तेल पर सब्सिडी ने। कृषि क्षेत्र की सब्सिडी तो बहुत जरूरी है ही। अब नरेन्द्र मोदी सरकार सब्सिडी के दुष्चक्र से देश को निकालना चाहती है।

पैट्रोल-डीजल पर सब्सिडी खत्म करने के बाद अब रसोई गैस यानी एलपीजी पर सब्सिडी खत्म करने की दिशा में उसने कदम बढ़ा दिये हैं। केन्द्र सरकार ने सरकारी तेल कंपनियों से सब्सिडी पर मिलने वाली रसोई गैस की कीमतें हर महीने चार रुपये प्रति सिलेंडर बढ़ाने को कहा है। पैट्रोलियम और गैस मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने बताया कि इससे जो राशि बचेगी उससे देश में रसोई गैस कनैक्शन बढ़ाये जायेंगे। 2019 तक इस पर 30 हजार करोड़ खर्च होंगे। सरकार एलपीजी पर प्रति सिलेंडर 86.54 रुपये सब्सिडी दे रही थी। गैर-सब्सिडी वाले सिलेंडर की कीमत अभी 564 रुपये है जबकि सब्सिडी वाला सिलेंडर 477.46 रुपये है। फिलहाल एक वर्ष में सब्सिडी दर पर 12 सिलेंडर मिलते हैं। अगले वर्ष तक सभी को एक ही दर पर सिलेंडर मिलेंगे। देश में अभी एलपीजी के 18.11 करोड़ उपभोक्ता हैं। इनमें 2.5 करोड़ गरीब महिलायें भी शामिल हैं जिन्हें पिछले एक वर्ष के दौरान प्रधानमंत्री उज्ज्ज्वला योजना के तहत फ्री कनैक्शन दिये गये थे। गैर-सब्सिडी रसोई गैस के उपभोक्ताओं की संख्या अभी 2.66 करोड़ है।

गैस सब्सिडी पूरी तरह खत्म करने की घोषणा से महिलाओं को रसोइघर का बजट बिगडऩे की चिंता सताने लगी है। निम्र और मध्यम वर्गीय लोग भी परेशान हो रहे हैं। संयुक्त परिवार इसलिये चिंतित हैं कि उनके यहां तो गैस सिलेंडर 15 दिन में खत्म हो जाता है। सब्सिडी का सीधा असर उनके बजट पर पड़ेगा। उनकी चिंताएं जायज हैं। सब्सिडी के मामले में पाया गया कि इसका लाभ गरीबों को तो नहीं मिला लेकिन सम्पन्न परिवार इसका लाभ उठाते रहे हैं। जिनके पास गैस कनैक्शन है ही नहीं उनके लिये फायदे का क्या मतलब। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सम्पन्न वर्गों से स्वेच्छा से रसोई गैस सब्सिडी छोडऩे की अपील की थी। प्रधानमंत्री की अपील के बाद एक वर्ष में एक करोड़ से भी ज्यादा एलपीजी ग्राहकों ने रसोई गैस सब्सिडी छोड़ी इसमें सरकारी खजाने को कुछ हजार करोड़ रुपये की बचत हुई। पिछले वर्ष गैस सब्सिडी पर खर्च 30 हजार करोड़ था।

सब्सिडी की रकम सीधे वास्तविक उपभोक्ताओं के बैंक खातों में भुगतान करने से नकली कनेक्शन और चोर बाजार पर रोक लगाने में मदद मिली। इसमें 21 हजार करोड़ से भी ज्यादा की बचत हुई। 3.34 करोड़ उपभोक्ता खाते नकली और असक्रिय थे। इन नकली उपभोक्ता कनैक्शनों से सब्सिडी डकार ली जाती थी। खाद्यान्नों और कैरोसिन को ही ले लीजिए, जिसका बड़ा हिस्सा बीच में ही गायब हो जाता है। कुछ तो नेपाल और बंगलादेश भी पहुंच जाता रहा है। इसका मतलब हम पड़ोसी देशों को सब्सिडी दे रहे हैं। सस्ते कैरोसिन का इस्तेमाल मिलावट और सब्सिडी वाली रसोई गैस का इस्तेमाल ढाबों, होटलों से लेकर कारों के ईंधन तक में होता रहा है। दूसरी ओर सच यह भी है कि भारत एक गरीब देश है और गरीबों को जीवन यापन के लिये छूट चाहिये लेकिन कोई भी सरकार खैरात बांट-बांट कर देश की अर्थव्यवस्था को नहीं चला सकती।

देश को नये स्कूलों, बड़े अस्पतालों, पुलों और बुनियादी ढांचे को खड़ा करने के लिये धन चाहिए। हुआ यह कि पूर्व की सरकारों ने सब्सिडी की नीतियों को अंधाधुंध लागू किया। यह भी नहीं देखा कि सब्सिडी की जरूरत किसे है और किसे नहीं। चाहिए तो यह था कि गरीबों की आय बढ़े ताकि वह बिना सब्सिडी के जरूरी सामान खरीद सकें। उनके लिये भौतिक, सामाजिक मूलभूत ढांचे, वित्तीय उत्पादों, कानून व्यवस्था, तकनीकी सूचना आदि में हस्तक्षेप की जरूरत थी। समर्थों को सब्सिडी देकर हमने उन्हें स्थाई रूप से मुफ्तखोर और विकलांग बना डाला। हमने मुफ्तखोरी की संस्कृति पैदा कर दी। इस संस्कृति को खत्म करना बहुत जरूरी है लेकिन देखना यह है कि गरीबों के भी चूल्हे जलें। सरकार ने कहा है कि उज्ज्वला योजना के तहत गरीबों को सब्सिडी दी जायेगी तो फिर विवाद कहां बचता है। सब्सिडी का दुष्चक्र बंद हो लेकिन मध्यम वर्ग ज्यादा प्रभावित न हो। इसके लिये भी सोचना बहुत जरूरी है।

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