लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला

NULL

भारत में कानून तो बहुत हैं लेकिन उनका दुरुपयोग भी होता है। कानून इसलिए बनाए गए हैं ताकि लोगों को इन्साफ मिल सके। समाज के दलित और शो​िषत वर्ग को सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार है, इसीलिए उनके संरक्षण के लिए समय-समय पर कानूनी प्रावधान किए गए हैं। एससी-एसटी अधिनियम 1989 में बना था और इसमें संशोधन कर 17 नए अपराध शामिल किए गए जिसके आधार पर 6 माह से लेकर 5 साल तक की सजा का प्रावधान किया गया।

इनमें अनुसूचित जाति के लोगों या आदिवासियों के बीच ऊंचा आदर हासिल करने वाले किसी मृत शख्स का अनादर भी शामिल है। इस कानून में यह भी कहा गया था कि अगर कोई गैर-दलित या गैर-आदिवासी पब्लिक सर्वेंट दलितों के खिलाफ होने वाले अपराधों को लेकर अपनी जिम्मेदारियों का ठीक ढंग से पालन नहीं करता तो उसे 6 माह से लेकर एक साल तक की जेल हो सकती है लेकिन एससी-एसटी एक्ट ब्लैकमेलिंग का हथियार बन गया।

कानून बनाने वालों ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि इसका दुरुपयोग इस कदर बढ़ जाएगा कि सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ेगा। अपराध के बारे में क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े देखने से पता चलता है कि एससी-एसटी एक्ट में दर्ज ज्यादातर मामले झूठे पाए गए। 2016 में पुलिस जांच में अनुसूचित जाति के व्यक्ति को प्रताडि़त किए जाने के 5,347 केस झूठे पाए गए जबकि अनुसूचित जनजाति के कुल 912 मामले झूठे पाए गए।

इतना ही नहीं, वर्ष 2015 में एससी-एसटी कानून के तहत अदालत ने कुल 15,638 मुकद्दमे निपटाए जिसमें से 11,024 केसों में अभियुक्त बरी हुए जबकि 495 मुकद्दमे वापस ले लिए गए। सिर्फ 4,119 मामलों में ही अभियुक्तों को सजा हुई। यह आंकड़े 2016-17 की सामाजिक न्याय विभाग की वार्षिक रिपोर्ट में दिए गए हैं। शोषित वर्ग पर अत्याचार न हो, इसलिए यह कानून बना लेकिन इसका दुरुपयोग निर्दोष लोगों के विरुद्ध किया जाने लगा।

न्यायिक तौर पर यह सामने आया कि पिछले 30 वर्षों से इस कानून का कई मामलों में गलत इस्तेमाल हुआ। राजनीतिक विरोधियों द्वारा, पैसे के विवाद में, नौकरी विवाद में, वरिष्ठता के विवाद में ऐसा अक्सर देखा गया है। सरकारी अधिकारियों के खिलाफ अपने हित साधने के लिए फर्जी मुकद्दमे दर्ज कराए गए। निर्दोष नागरिकों को आरोपी बनाया गया। इस कानून का मकसद यह नहीं था कि सरकारी अफसरों को अपनी ड्यूटी करने में बाधाएं उत्पन्न की जाएं और उन्हें कानून का सहारा लेकर आतंकित किया जाए। ​

पिछले वर्ष एक ऐसा मामला सामने आया था कि कुछ लोगों ने इसे एक पेशे के तौर पर अपना लिया है। उत्तर प्रदेश में कुछ लोगों ने दलित एक्ट का नाम लेकर कई लाख रुपए का मुआवजा वसूला। एक व्यक्ति तो 10 से ज्यादा मुकद्दमे दर्ज करा लखपति बन गया। इस पेशे में पूरा परिवार ही लगा हुआ था। सुप्रीम कोर्ट ने पुणे की एक राजकीय फार्मेसी के डाक्टर काशीनाथ के मामले की सुनवाई करते हुए मामले को परखा और अहम फैसला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अब एससी-एसटी मामले में तत्काल गिरफ्तारी नहीं होगी, जमानत भी मिल सकती है।

पहले डीएसपी रैंक के अधिकारी जांच करेंगे और देखेंगे कि कहीं मामला सरकारी अधिकारी या कर्मचारी को फंसाने का तो नहीं है। दरअसल डा. काशीनाथ और एक अन्य अधिकारी ने सर्विस की गोपनीय रिपोर्ट में शिकायतकर्ता के विरुद्ध प्रतिकूल टिप्पणी दर्ज करते हुए कहा था कि उसका चरित्र और निष्ठा अच्छी नहीं है। इस पर शिकायतकर्ता ने अधिकारी के खिलाफ एससी-एसटी में मुकद्दमा किया। मामले की जांच के बाद पुलिस ने अधिकारी के विरुद्ध चार्जशीट दाखिल करने की अनुमति मांगी तो निदेशक स्तर के अधिकारी ने मुकद्दमे की मंजूरी देने से इन्कार कर दिया। शिकायतकर्ता ने बाद में इस अधिकारी के विरुद्ध भी एससी-एसटी एक्ट में मुकद्दमा दर्ज कराया।

हाईकोर्ट ने जब अधिकारी के विरुद्ध मुकद्दमा रद्द करने की मांग खारिज कर दी तो अधिकारी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इस अहम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समाज को जातिरहित बनाने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है। जातिरहित समाज होगा तो कानूनों का दुरुपयोग नहीं होगा, इसके परिणामस्वरूप समाज में घृणा फैल रही है। समाजवादी चिन्तक राम मनोहर लोहिया ने कभी ‘जाति तोड़ो, दाम बांधो’ आंदोलन चलाया था।

जाति की चक्की निर्दयता से चलती है। अगर वह छोटी जातियों के करोड़ों को पीसती है तो वह ऊंची जाति काे भी पीस कर सच्ची उच्च जाति आैर झूठी ऊंची जाति को अलग कर देती है। देश की राजनीति हो, समाज हो, आज भी ​जाति का बोलबाला है। जातिविहीन समाज का सपना कल्पना ही लगता है। जब तक समाज जातियों में बंटा रहेगा तब तक संविधान के उद्देश्य पूरे नहीं किए जा सकते। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने कानून को परख कर जो फैसला दिया है उससे सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को राहत ​िमल गई है इसलिए फैसला सराहना का पात्र है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

3 × 2 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।