हमारे देश में लोकतंत्र इतना विशाल है कि आरोपबाजी इसकी विशालता में एक परंपरा बनती जा रही है लेकिन घोटालों के बारे में और भ्रष्टाचार को लेकर अगर देश की सबसे बड़ी वित्तीय व्यवस्था भी लपेटे में आ जाए तो फिर इसे क्या कहेंगे? कभी 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले, कोलगेट घोटाला, कॉमनवैल्थ घोटाला, आदर्श सोसाइटी घोटाला और घोड़ा व्यापारी हसन अली का इनकम टैक्स घोटाला जैसे नाम विभिन्न सरकारों के शासन के दौरान उछले और उसकी छवि पर भी इसका असर पड़ा। पिछले दिनों एक बड़ा शराब व्यवसायी विजय माल्या बैंकों का 9000 करोड़ से ज्यादा का लोन लेने के बाद ब्रिटेन में जा बसा। अब पीएनबी में 11,400 करोड़ के घोटाले के गुनहगार नीरव मोदी व मुहेल चौकसी की तलाश हो रही है। देश की इस अकूत रकम की रिकवरी कैसे होगी। इसका जवाब देशवासी सरकार से मांग रहे हैं। सरकार के मंत्री अब केवल सफाई देते हुए कांग्रेस पर आरोप लगा रहे हैं। क्या यही जवाबदेही व जिम्मेदारी से भरी सरकार की कार्यशैली है। यह सब कुछ सोशल साइट्स पर लोग खूब शेयर कर रहे हैं। चौकीदार सोता रहे व चोर भागते रहे तो ऐसे ही सवाल उठते रहेंगे।
शोर तो कालेधन और स्विस बैंकों में जमा भारतीयों के पैसे वापिस भारत लाने का भी होता रहा। घोटाले किसी भी सरकार की साख पर असर डालते हैं, भले ही उसका इससे लेना-देना हो या न हो, लेकिन नैतिक जिम्मेवारी तो रहती ही है। अनेक बैंककर्मियों को सस्पेंड होते हुए सुना है। कभी स्वतंत्र भारत में न्यू बैंक ऑफ इंडिया जैसे 700 से ज्यादा शाखाओं वाले राष्ट्रीय बैंक का वजूद खत्म होकर रह गया था तो बैंकिंग व्यवस्था लपेटे में आ गई थी लेकिन अब पीएनबी में जो कुछ हुआ इसके बारे में सरकार से लोगों की उम्मीदें बढ़ गई हैं कि वह ठोस जांच के बाद ऐसी व्यवस्था इजाद करे कि गड़बड़ी की कोई गुंजाइश न हो। आज जब सारा लेन-देन सूचना और प्रौद्योगिकी के समय में पारदर्शिता के तहत हो रहा है तो भी अगर उसी पुराने ढर्रे के आधार पर घोटाले हों तो इसे क्या नाम दें? क्या ई-पेमेंट सिस्टम में कहीं सुराख है या फिर वित्तीय लेन-देन में हमारी किसी व्यवस्था में गड़बड़ी है। डिजिटल का हम बहुत शोर कर रहे हैं लेकिन जमीनी हकीकत के लिए किसे दोष दें? पीएनबी की मुंबई ब्रांच में इतना भारी-भरकम घोटाला बगैर किसी की मिलीभगत के नहीं हो सकता। ताज्जुब यह है कि दो कंपनियों के बीच इतना बड़ा लेन-देन होता है और किसी को पता नहीं चला। यकीनन इसमें बैंक के बड़े अधिकारी शामिल हैं।
पीएनबी के कर्मचारियों ने अकाउंट होल्डर को फायदा पहुंचाने के लिए यह घपला किया। जब पीएनबी ने अपनी ब्रांच से किसी कंपनी के लिए लैटर ऑफ अंडरटेकिंग (एलओयू) जारी किया हो तो ये चीजें लोन से जुड़ी होती हैं। इस एलओयू के तहत लोन लिया और दिया जा सकता है लेकिन अगर लेन-देन में फंड जुटाने और निकालने के लिए स्विफ्ट अर्थात ग्लोबल फाइनेंशियल मैसेजिंग सर्विस का इस्तेमाल किया जाता है तो आसानी से लेन-देन वाली कंपनियों की पहचान संभव नहीं। आज के जमाने में जब कैशलेस इकोनॉमी की बात हो रही है और विदेशी निवेशकों को मेक इन इंडिया के लिए आमंत्रित किया जा रहा है, ऐसे में अगर देश के सबसे बड़े किसी बैंक में घोटाला हो जाए तो आप देशवासियों को संतुष्ट कैसे कराएंगे और अंतराष्ट्रीय स्तर पर आपकी उस छवि का क्या होगा, जो भ्रष्टाचार और कालेधन जमा करने वालों के खिलाफ एक्शन पर टिकी हो? कुछ भी हो ये सब कुछ सरकार केलिए शुभ संकेत नहीं हैं। लोग सोशल साइट्स पर यही बातें शेयर कर रहे हैं कि जितना धन घोटालों में गया, उसकी भरपाई कैसे होगी? इस देश में जब घपलों में लिप्त दूरसंचार मंत्री रहे राजा और सांसद कानिमोझी जैसे अनेकों लोग बाइज्जत बरी होते चले गए तो फिर आगे घपलेबाजों को सजा कब मिलेगी, यह एक टेढ़ा सवाल है? हालांकि सरकार लेन-देन की वित्तीय व्यवस्था को पारदर्शी बना रही है, परंतु फिर भी अगर घोटाले हो जाएं तो उन्हें इस बारे में जल्द ही ठोस व्यवस्था करनी होगी, तभी कुछ हो पाएगा वरना लोगों को नकारात्मक रूप से अपनी बातें शेयर करने का मौका मिलेगा, जिसे रोकना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। कहते हैं एक मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है। यहां तो पूरा तालाब ही घोटालेबाज मछलियों से भरा पड़ा है, जिसे साफ करना ही मोदी सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। ऊर्दू का एक शेर काबिलेगौर है-
तू इधर-उधर की न बात कर,
बता ये कारवां क्यों लुटा।
मुझे रहजन से गिला नहीं,
तेरी रहबरी का सवाल है।।