तेलगू देशम का ‘राग भैरव’ - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

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तेलगू देशम का ‘राग भैरव’

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केन्द्र में सत्ताधारी भाजपानीत राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन (एनडीए ) से अलग होकर आन्ध्र प्रदेश की तेलगू देशम पार्टी ने मोदी सरकार के खिलाफ जो अविश्वास प्रस्ताव लाने की घोषणा की है उसका केवल एक ही मन्तव्य है कि यह पार्टी अपने राज्य में अपनी खिसकती जमीन को बचाना चाहती है और राजनीतिक रूप से खुद को उस सरकार की नीति से पीडि़त दिखाना चाहती है जिसमें वह पिछले सप्ताह तक ही शामिल थी।

विशुद्ध रूप से यह आन्ध्र के मतदाताओं को गफलत में डालने की कोशिश है क्योंकि 2014 में आन्ध्र प्रदेश से तेलंगाना के अलग हो जाने के बाद सत्ता पर काबिज हुई तेलगू देशम पार्टी ने आम जनता के विकास के लिए कुछ नहीं किया है और राज्य की नई राजधानी अमरावती के नव निर्माण हेतु एक ईंट भी नहीं लगाई गई।

तेलगू देशम के नेता व राज्य के मुख्यमन्त्री श्री चन्द्र बाबू नायडू अपनी नाकामियों का ठीकरा केन्द्र सरकार के सिर पर यह कह कर फाेड़ना चाहते हैं कि उसने आन्ध्र को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिया। बिना शक 2014 में जब तत्कालीन प्रधानमन्त्री डाॅ. मनमोहन सिंह ने इस राज्य के बंटवारे को मंजूरी सभी औपचारिकताएं पूरी होने के बाद दी थी तो उन्होंने राज्यसभा में वादा किया था कि तेलंगाना के अलग राज्य बन जाने और हैदराबाद शहर के इसकी राजधानी बन जाने के बाद केन्द्र बचे हुए राज्य की पूरी मदद करेगा और इसके राजस्व घाटे की आपूर्ति करने के लिए यथानुरूप वित्तीय मदद देगा और नई राजधानी के निर्माण में मदद देते हुए विशेष राज्य का दर्जा भी बख्शेगा।

मगर इसके बाद केन्द्र में सत्ताबदल हुआ और भाजपा की सरकार गठित हुई। 2014 के लोकसभा के चुनावों में तेलगू देशम ने भाजपा के साथ गठबन्धन किया था और नई सरकार में भी शिरकत करते हुए अपने दो सांसदों को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया था। इन दोनों मन्त्रियों ने पिछले सप्ताह ही मन्त्रिमंडल से त्यागपत्र देते हुए कहा कि मोदी सरकार द्वारा आन्ध्र को विशेष राज्य का दर्जा न दिये जाने की वजह से वे यह कदम उठा रहे हैं।

परन्तु तभी स्पष्ट हो गया था कि चन्द्रबाबू नायडू अपनी जमीन बचाने को ले यह सब नाटक कर रहे हैं क्योंकि उन्हें यह अच्छी तरह मालूम है कि केन्द्र की सरकार चाह कर भी 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों का उल्लंघन नहीं कर सकती है जिसने केवल पूर्वोत्तर के राज्यों को छोड़ कर शेष किसी भी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देने की मनाही कर दी है। वित्त आयोग की सिफारिश कानूनी रूप से केन्द्र पर बन्धन होती है क्योंकि यह एेसी संवैधानिक संस्था है जो केन्द्र व राज्यों के बीच वित्तीय संसाधनों का बंटवारा करती है। इसी की सिफारिश के बाद केन्द्र को कुल राजस्व प्राप्ति का 42 प्रतिशत हिस्सा विभिन्न राज्यों में तकसीम करना पड़ता है।

अतः मोदी सरकार के वित्तमन्त्री श्री अरुण जेटली ने आन्ध्र प्रदेश के मुख्यमन्त्री चन्द्र बाबू नायडू को विश्वास दिलाया कि बेशक विशेष राज्य का दर्जा आन्ध्र को न मिल पाए मगर वे सभी वित्तीय लाभ केन्द्र सरकार उन्हें देगी जो किसी विशेष राज्य को मिलते हैं। इसके चलते ही साढे तीन साल पहले श्री जेटली ने ढाई हजार करोड़ रु. का चेक भी श्री नायडू को दिया और कहा कि वह नई राजधानी बनाने का काम शुरू करें। राज्य की जितनी भी परियोजनाएं हैं केन्द्र उन्हें अपने खाते से 90 प्रतिशत धन देगा और 10 प्रतिशत धन ही राज्य सरकार को देना पड़ेगा। कोवलम परियोजना के लिए भी केन्द्र ने पांच हजार करोड़ रु. से अधिक धनराशि दे दी, मगर चन्द्र बाबू नायडू पर जिम्मेदारी बनती थी कि वह पिछले धन को खर्च करने के बाद आगे के लिए और धन मांगे जिसके लिए केन्द्र प्रतिबद्ध था, परन्तु श्री नायडू अमरावती में अब तक नींव का पत्थर तक नहीं लगा पाये हैं और केन्द्र से कह रहे हैं कि वह बिना परियोजनाओं के लागू हुए ही उन्हें और चेक पर चेक काट कर देती रहे।

अतः स्पष्ट है कि अपनी प्रशासनिक नाकामी और राजनैतिक गिरावट से घबराये हुए चन्द्रबाबू नायडू जनता के गुस्से से बचने के लिए भाजपा को जिम्मेदार बताने की चौसर बिछा रहे हैं। दूसरा कारण यह भी है कि राज्य में वाईएसआर कांग्रेस उनकी प्रमुख प्रतिद्वन्दी पार्टी है जिसने विशेष राज्य के मुद्दे पर तेलगू देशम को घेर लिया है। इस पार्टी के जगन रेड्डी ने संसद के बजट सत्र का दूसरा चरण शुरू होते ही घोषणा कर दी थी कि वह विशेष राज्य का दर्जा न मिलने पर अपने सांसदों से आगामी 6 अप्रैल को सदस्यता से इस्तीफा दिला देंगे जाहिर है कि विशेष राज्य के मुद्दे को जगन रेड्डी ने राज्य के आम मतदाताओं के लिए भावनात्मक मुद्दा बना दिया है जिससे घबरा कर चन्द्र बाबू नायडू ने एनडीए से अलग होने में ही भलाई समझी और जगन रेड्डी के मुकाबले आन्ध्र की जनता का स्वयं को ज्यादा खैरख्वाह दिखाने के लिए मोदी सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाने की भी घोषणा कर दी क्योंकि जगन रेड्डी दो दिन पहले ही अविश्वास प्रस्ताव लाने की घोषणा कर चुके थे,

लेकिन आन्ध्र की इस प्रतियोगी राजनीति के चक्कर में संसद की गरिमा की धज्जियां जरूर उड़ गईं क्योंकि इन्हीं दोनों दलों के सदस्य (तमिलनाडू के अन्ना द्रमुक सदस्य भी ) लगातार दोनों ही सदनों के मध्य में आकर पोस्टर हाथों में उठा कर नारे बाजी कर रहे हैं और सदनों को चलने नहीं दे रहे हैं. राज्यसभा में बैंकिंग घोटाले को लेकर कांग्रेस के सदस्य भी नारे बाजी कर रहे हैं मगर लोकसभा में इस पार्टी के सदस्य अपने स्थानों पर खड़े होकर ही शोर मचा रहे हैं और बहस कराने की मांग कर रहे हैं।

अतः स्पष्ट है कि आन्ध्र प्रदेश की राजनीति ने केन्द्र की राजनीति को निगल लिया है जिसकी वजह से लोकसभा में बजट होहल्ले और नारेबाजी के बीच पारित हुआ। ( हालांकि इस स्थिति को टाला भी जा सकता था ) परन्तु असली सवाल यह है कि अविश्वास प्रस्ताव लाने से मोदी सरकार की सेहत पर क्या असर पड़ सकता है? अकेले भाजपा के ही 272 सदस्य हैं जबकि अकाली दल, लोजपा, शिवसेना के भी दो दर्जन से अधिक सदस्य इसके साथ हैं। शिवसेना तो बन्दर घुड़की देकर पेड़ के पत्तों में छिपने वाली पार्टी शुरू से ही रही है लेकिन तेलगू देशम पर भाजपा विरोधी दल यकीन क्यों करेंगे? इसकी राजनीति ही केन्द्र से सख्त सौदेबाजी की रही है। वाजपेयी शासन के दौरान पूरे देश ने देखा है कि किस तरह यह पार्टी केंद्र सरकार को बाहर से समर्थन देने के नाम पर राजनीतिक ‘ब्लेकमेल’ करती थी दरअसल चन्द्रबाबू नायडू को दीवार पर लिखी इबारत साफ नजर आ रही है कि ‘भाग मछन्दर गोरख आया’

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