छोटे होते से यह गीत सुनती आ रही हूं और अपनी मां को घर आए मेहमानों की सेवा करते देखा चाहे उनकी ट्रेन आधी रात को आए या सुबह-सुबह। मां काम करने वालों के होने के बावजूद खुद अपने हाथों से खाना बनाकर मेहमानों की सेवा करती थी। मेरे पिताजी, जो बड़े मजाकिया स्वभाव के थे, अक्सर कह भी देते थे- अरे भाई स्टेशन के वेटिंग रूम में इंतजार कर लेते सुबह होने का परन्तु मेरी मां अक्सर यही पंक्तियां गुनगुना कर उन्हें शांत कर देती थीं। यही नहीं जब मेरी शादी हुई तो बहुत बड़ा इकट्ठा परिवार था। तीन पीढि़यां थीं घर में । अक्सर सभी हर शनिवार को मेरी मां के हाथ का खाना खाने अाते थे और उनके खुशी से पांव जमीन पर नहीं लगते थे और मां कहती थी ‘‘कीड़ी (चींटी) घर भगवान आए।’’ क्योंकि हमारी भारतीय संस्कृति उन संस्कारों से बनी है जो घर पर आने वाले मेहमान की पूजा से आरम्भ होती है। जब यह संस्कृति आपकी कालोनी, शहर या समाज से होती हुई राष्ट्र तक पहुंचती है तो हम इसे परम्परा कह सकते हैं। यकीनन अतिथि देवो भवः।
जब हम अपने यहां पांच सितारा होटल में जाते हैं तो अक्सर विदेशी आकर वहां ठहरते हैं। जैसे ही वह होटल के अन्दर आते हैं उन्हें बड़ी-बड़ी मालाएं और माथे पर टीका (तिलक) लगाया जाता है। जयपुर (राजस्थान) में तो उनका हाथियों द्वारा या परम्परागत डांंस से भी स्वागत किया जाता है। तब उन लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं होता। लोग भी उनकी बहुत इज्जत करते हैं क्योंकि कई देशों में पर्यटन के दम पर ही अर्थव्यवस्था मजबूत है और हमारे भी जिस राज्य में पर्यटन स्थल हैं, जहां विदेशों से लोग आते हैं, मजबूती मिलती है चाहे ताजमहल, फतेहपुर सीकरी, कश्मीर, मथुरा, वृंदावन, राजस्थान, गोवा, केरला, गुजरात, हरिद्वार आदि-आदि क्योंकि बाहर से आने वाले लोग भारतीय संस्कृति और परम्पराओं को बहुत पसंद करते हैं। हमारे लोग भी उनकी सेवा कर खुश होते, कइयों की राेजी-रोटी चलती है परन्तु कुछ बातें ऐसी हैं जो हमेशा मुझे अखरती हैं। एक तो इनसे टिप यानी बख्शीश के कारण ज्यादा पैसे लेना, जो अपनी खुशी से दें वो तो अच्छा परन्तु कोई जबरदस्ती करे तो बहुत बुरा लगता है। यही नहीं जनपथ चले जाओ वहां इन लोगों को 500 रु. की चीज 5000 में बेचने की कोशिश की जाती है क्योंकि मेरे साथ भी कई बार ऐसा हुआ है।
कई बार मुझे विदेशी समझ कर पैसे ज्यादा बताते हैं तो फिर मैं कहती अरे भाई अपने लोगों का तो लिहाज कर लो, यहां तक तो फिर भी चलता है, अभी यह भी स्वीकार नहीं है। ऐसी बातें देखते हुए एक प्रसिद्ध एक्टर ने एक अभियान शुरू किया था अतिथि देवो भवः, िजसकी काफी प्रशंसा हुई थी। परन्तु अभी कुछ रोज पहले स्विट्जरलैंड से आए हुए कपल पर फतेहपुर सीकरी जाने पर जिस तरह से वहां के कुछ लोकल लोगों ने डंडों और सरियों से हमला किया, वह चौंकाने वाला है। वे बेचारे अभी भी अस्पताल में हैं। चाहे हमलावरों को पकड़ लिया गया है परन्तु इससे हमारे भारत की छवि भी खराब होगी और पर्यटन पर भी असर पड़ेगा। लूटपाट आैर हमला जैसी संस्कृति भारत की कभी नहीं थी। हमें इस पर नियंत्रण के लिए कड़े पग उठाने होंगे।
हर पर्यटन स्थल पर सीसीटीवी कैमरे, सिक्यूरिटी के पुख्ता इंतजाम और जो कोई भी अतिथियों के साथ बुरा व्यवहार करे तो उन्हें कड़ी सजा मिले। हमें भारतीय संस्कार आैैर संस्कृति का पालन करते हुए मेहमानों का सम्मान करना चाहिए तभी अतिथि देवो भवः सुरक्षित रह सकेंगे। यह हमारे नेताओं आैर आम लोगों को समझ लेना चाहिए िक हर पर्यटन स्थल रोजगार उपलब्ध कराता है, व्यापार देता है, आर्थिक व्यवस्था मजबूत होती है, सो हर टूरिस्ट खुशी से भारत आए-जाए आैर हमारी अतिथि देवो भवः की परम्परा की खुशबू सारे विश्व में फैले। मेहमान हमारे भगवान हैं, उनकी सुरक्षा की जिम्मेवारी हमारी सबकी है। हर जगह पुलिस भी नहीं हो सकती तो आम नागरिक अपनी जिम्मेदारी समझें।