देश में दो साल पहले डिजिटल इंडिया नामक अभियान की जोरदार शुरूआत की गई थी। नोटबंदी के बाद लेन-देन के डिजिटल उपायों में बढ़ौतरी का एक नतीजा हमारे सामने है परन्तु यह क्रांति दोधारी तलवार साबित हो रही है। हर दूसरे दिन एटीएम कार्ड, बीपीओ के जरिए देश-विदेश में ठगी, क्लोङ्क्षनग के जरिए क्रेडिट कार्ड से बिना जानकारी धन निकासी और कई कंपनियों के एकाउंट और वेबसाइट की हैकिंग से फिरौती वसूलने की घटनाएं हो रही हैं। उत्तर प्रदेश में पैट्रोल पम्पों का घोटाला सामने आ चुका है कि किस तरह एक मामूली चिप लगाकर लाखों उपभोक्ताओं को कम पैट्रोल दिया जाता था। डिजिटल धोखाधड़ी के क्रम में फर्जी बीपीओ खड़े करके देश के कई युवाओं ने अपनी प्रतिभा का इस्तेमाल लोगों को ठगने के लिए किया। इससे साबित होता है कि अगर कोई तकनीक का इस्तेमाल करके फ्राड करता है तो उसे रोकने और उसको पकडऩे के लिए कोई सुदृढ़ व्यवस्था भारत में नहीं है। पिछले वर्ष तो प्रतिष्ठित सरकारी बैंक एसबीआई ने अपने 6 लाख उपभोक्ताओं के डेबिट कार्ड (एटीएम) पहले तो ब्लॉक कर दिए, फिर उन्हें ग्राहकों से वापिस मंगा लिया। इस घटना के पीछे एटीएम कार्डों की क्लोनिंग को जिम्मेदार बताया गया था।
अब तो साइबर हैकर यानी डिजिटल डकैत दुनियाभर में सक्रिय हैं जो साइबर अटैक करके फिरौती वसूलने का गोरखधंधा कर रहे हैं। जब भी कोई बड़ा अटैक होता है तो सभी खौफजदा हो जाते हैं। डेढ़ माह के भीतर ही दुनियाभर के कई देश एक बार फिर साइबर अटैक हमले की चपेट में आ गए हैं। इस खतरनाक वायरस ने पूरे यूक्रेन को ठप्प करने के साथ रूस, ब्रिटेन, यूरोप, अमरीका के कई सर्वरों को प्रभावित किया है। भारत भी इसकी जद में आया है। मुम्बई में जवाहर लाल नेहरू पोर्ट का इस अटैक की वजह से काम ठप्प हो गया क्योंकि कम्प्यूटर नेटवर्क ही डाउन है। पिछली बार रैन समवेयर अटैक से दुनिया के 150 देश प्रभावित हुए थे। इनमें भारत भी शामिल था। तब इसका असर आंध्र प्रदेश के पुलिस नेटवर्क पर पड़ा था। वानाक्राई वायरस पिछले अटैक से कहीं ज्यादा नुक्सानदेह है। यह यूजर के कम्प्यूटर सिस्टम पर अटैक करता है और उसे लॉक कर देता है। इसके बाद इसे खोलने के लिए की परचेज करने की बात करता है जिसके लिए हैकर पैसे मांगता है। पैसे हैकर के खाते में पहुंचते हैं। कम्प्यूटर खुल जाता है। साइबर हमलावर डालर्स या बिटकाइन में पैसा मांगते हैं।
बात जब साइबर सुरक्षा की आती है तो भारत में 91 फीसदी कारोबारियों का कहना है कि आईटी आप्रेशन की जटिलता की वजह से उनका संस्थान खतरे में है। एक ग्लोबल स्टडी के अनुसार 72 फीसदी व्यवसायों का कहना है कि नए सिक्योरिटी फ्रेम वर्क को तैयार करने का समय आ चुका है। पारंपरिक व्यवसाय तेजी से डिजिटल होते जा रहे हैं, उनका वर्कप्लेस केवल आफिस की दीवारों तक सीमित नहीं रहता। हालांकि परिवर्तन ने आधुनिक कार्यबल को ज्यादा लचीला और प्रोडक्टिव बना दिया है लेकिन इसके साथ खतरे भी कहीं बढ़ गए हैं। एक जुलाई से देश में जीएसटी कानून लागू हो रहा है। छोटे कारोबारियों में इसे लेकर पहले से ही खौफ है। जीएसटी को लागू करने के लिए जीएसटीएन ने पिछले वर्ष नवम्बर में करदाताओं के रजिस्ट्रेशन के लिए अपना पोर्टल खोला था तो उसे साइबर अटैक का सामना करना पड़ा था। इसका मकसद सर्विसेज में बाधा पैदा कर इस पूरे सिस्टम को खराब करना था। हालांकि जीएसटीएन तब से ही ऐसे खतरों से निपटने की तैयारी कर रहा है लेकिन नए साइबर हमले के बाद साइबर सुरक्षा के लिए चिंताए बढ़ गई हैं।
चीन और पाक के हैकर साइबर हमला कर सिस्टम को चौपट कर सकते हैं। व्यापारियों को संदेह यह भी है कि क्या जीएसटीएन के पास ऐसे साइबर हमलों को रोकने के लिए पुख्ता तंत्र है? हालांकि जीएसटीएन ने साइबर हमलों को रोकने के लिए सिस्टम तैयार करने का दावा किया है फिर भी सभी को बचाव के लिए कारगर कदम उठाने होंगे। तकनीक का उत्कर्ष कुछ भी करा सकता है। यहां तक कि साइबर युद्ध की भी आशंकाएं गहराती जा रही हैं इसलिए नई प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल सतर्कता से करना होगा। डिजिटल डकैत बहुत खतरनाक हो गए हैं जो लोगों को कंगाल बनाने पर तुले हैं।