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ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे…

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भारत-रूस दोस्ती की नींव सोवियत संघ के दौर में दोनों देशों के बीच 1971 की मैत्री संधि पर खड़ी हुई थी। रूस-भारत संबंध देश की विदेश नीति का एक मजबूत स्तम्भ है। इसके बाद 2000 में दोनों देशों के बीच स्ट्रेटजिक पार्टनरशिप का ऐलान किया गया जिसे एक बार 2010 में स्पेशल और प्रिविलेज्ड पार्टनरशिप करार दिया गया। रूस भारत की आजादी के बाद से ही विश्वसनीय दोस्त रहा है। कई बार ऐसे मौके आए जब यह विश्वसनीयता स्वत: सिद्ध हुई। दरअसल अच्छे दोस्तों की पहचान यह होती है कि वह आपकी किसी भी प्रगति से ईष्र्या नहीं करता। आज के दौर की युवा पीढ़ी ने अगर इतिहास को नहीं खंगाला तो मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान अमेरिका ने पाक का साथ देते हुए अरब सागर की तरफ अपने सबसे बड़े जंगी बेड़े को रवाना कर दिया था तो यह रूस ही था जिसने अमेरिका के जंगी बेड़े इंडिपेंडेंट को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए अपना युद्धपोत भेज दिया था। रूस की मदद से ही भारत ने एक-एक करके कई स्टील कारखाने खड़े किए जो भारत की औद्योगिक संरचना की बुनियाद बने। भारत-रूस दोस्ती का लम्बा इतिहास रहा है। यह भी सच है कि बदलती दुनिया में भारत-रूस संबंधों में बहुत उतार-चढ़ाव देखा गया। पिछले कुछ वर्षों से भारत के अमेरिका से आर्थिक और राजनीतिक संबंध काफी मजबूत हुए। भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु करार के बाद यह रिश्ते गहरे होते गए।

कभी-कभी ऐसा लगा कि भारत-रूस दोस्ती कहीं टूट न जाए। बीते एक दशक के दौरान भारत-रूस रिश्तों को सबसे बड़ा आघात रूस की चीन और पाकिस्तान से बढ़ती नजदीकी से पहुंचा है। बीते दिनों रूस ने पाकिस्तान को जहां सैन्य सहायता देने के लिए करार किए हैं वहीं उसने चीन के साथ हिन्द महासागर में भारत के प्रभाव की कीमत पर उसके वर्चस्व को बढ़ाने का काम किया है। रूस चीन की महत्वपूर्ण परियोजनाओं ‘वन बैल्ट वन रोड’ में भी भागीदारी करने पर सहमत है। रूस और पाकिस्तान के बीच संबंधों की शुरूआत 2014 में हुई जब रूस ने पाकिस्तान को सैन्य सहयोग देने पर लगे प्रतिबंध हटाने का फैसला किया। उसने 2015 में पाक को 4 एमआई 35 हेलीकाप्टर भी बेच डाले और सुखोई 35 एस युद्धक विमान को लेकर सौदा भी कर लिया। रूस ने पाकिस्तान के साथ अपना पहला संयुक्त सैन्य अभ्यास भी कर डाला। यह बदलाव कोई सामान्य बदलाव नहीं था। उसका मुख्य कारण भारत की अमेरिका से बढ़ती नजदीकियां और भारत द्वारा अमेरिका, फ्रांस, इटली और इस्राइल जैसे देशों से हथियार खरीदना भी रहा। अफगानिस्तान पर भी रूस ने भारत को असहज स्थिति में डाल दिया। रूस ने तालिबान को संयुक्त राष्ट्र की आतंकी सूची से हटवाने की मुहिम छेड़ी। इन परिस्थितियों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रूस यात्रा का अपना एक अर्थ है। उनकी रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन से कई मुद्दों पर बातचीत भी हुई और रक्षा और कारोबारी समझौते भी हुए।

भारत-रूस ने तमाम अवरोधों से उबरते हुए तमिलनाडु के कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र की अंतिम दो इकाइयों को लगाने के लिए बहुप्रतीक्षित समझौते को अंतिम रूप दिया गया। दुनिया की निगाहें इस समझौते की ओर लगी हुई थीं। मीडिया ऐसा वातावरण सृजित कर रहा था जैसे कि भारत रूस को पाकिस्तान से दूरी बनाए रखने के लिए कुडनकुलम समझौते को लेकर दबाव बनाएगा या यह समझौता नहीं होगा लेकिन सारे कयास गलत साबित हुए। इसके अलावा भारत को ईरान के रास्ते रूस और यूरोप से जोडऩे वाले प्रस्तावित कारीडोर पर भी बात आगे बढ़ी है। मोदी-पुतिन मुलाकात के दौरान बहुत ही गर्मजोशी दिखाई दी और काफी अंतरंगता भी नजर आई। मोदी-पुतिन की वार्ता के बाद जारी विजन डॉक्यूमेंट में कहा गया है कि भारत-रूस की अर्थव्यवस्थाएं ऊर्जा के क्षेत्र में एक-दूसरे की पूरक हैं और दोनों देश एक ऊर्जा सेतु बनाने की दिशा में काम करेंगे। परमाणु ऊर्जा, परमाणु ईंधन चक्र और परमाणु विज्ञान और प्रौद्योगिकी समेत व्यापक परिप्रेक्ष्य में भारत-रूस सहयोग का भविष्य उज्ज्वल है। इसके साथ कई मुद्दों पर धुंध छंट गई।

ब्लादिमीर पुतिन ने स्पष्ट कर दिया कि रूस के पाकिस्तान के साथ घनिष्ठ संबंध नहीं हैं और भारत के साथ उसकी करीबी दोस्ती को हल्के में नहीं लिया जा सकता। पुतिन ने यह सवाल भी किया कि अमेरिका से क्या आपके संबंध घनिष्ठ हैं? रूस के भारत के साथ विशेष संबंध हैं। केवल इससे यह अर्थ नहीं निकल जाता कि भारत को अन्य साझेदार देशों से संपर्क सीमित कर लेने चाहिएं। निश्चित रूप से पाकिस्तान से रूस के रिश्तों का भारत और रूस व्यापार पर कोई असर नहीं है। रूस ने एनएसजी और सुरक्षा परिषद में सदस्यता के लिए भारत का समर्थन करते रहने का वादा किया है। भारत-रूस की दोस्ती को 70 वर्ष पूरे हो चुके हैं और इस दौरान रूस ने हर मोड़पर हमारा साथ दिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर भी रूस से रिश्तों को नया आयाम देने का दबाव था। नई आर्थिक और सामरिक जरूरतों को देखते हुए भारत और रूस एक बार फिर दोस्ती की बुनियाद मजबूत करने की ओर आगे बढ़े हैं। सोवियत संघ द्वारा बोकारो और भिलाई स्थित कारखानों के निर्माण में मदद, भाखड़ा नंगल बांध निर्माण में सहयोग, सोयूज टी-11 स्पेस शटल में पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री विंग कमांडर राकेश शर्मा को भेजने को भारत कैसे भूल सकता है। जरूरत है एक अच्छे दोस्त को साथ रखने की। प्रधानमंत्री ने इस सोच को सामने रखकर संबंधों को फिर से गर्मजोशी वाला बनाया है। देखना है भारत इसमें कितना सफल रहता है।

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