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ये गुलिस्तां हमारा !

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1947 में पाकिस्तान के बन जाने के बावजूद भारतीय मुसलमानों की राष्ट्र भक्ति पर कभी किसी सच्चे हिन्दोस्तानी ने संदेह नहीं किया क्योंकि हर संकट की घड़ी में कोई न कोई ऐसा सूरमा निकल कर बाहर आया जिसने इस देश के लोगों की एकता का परचम पूरे तेजो- ताब से आसमान में लहरा कर ऐलान किया कि भारतवासियों की ताकत उनकी धार्मिक व सामाजिक विविधता की परतों में छुपी हुई है। भारत सदियों से वह शानदार गुलिस्तां रहा जिसमें हर किस्म के फूल खिल कर इसकी रौनक बढ़ाते रहे हैं। इस देश की इस अजीम ताकत को चुनौती देने की हिम्मत औरंगजेब जैसे क्रूर शासन में भी नहीं हुई थी। दिल्ली के चांदनी चौक में खड़ा हुआ भगवान गौरी शंकर का मन्दिर गवाह है कि किस तरह औरंगजेब ने अपने मराठा सेनापति आपा गंगाधर की मांग को सर-माथे लगाते हुए लालकिले के सामने ही इस मन्दिर को बनाने की इजाजत दी थी।

भारत का इतिहास हिन्दू-मुस्लिम संघर्ष का इतिहास राजे-रजवाड़ों के शासन पर अधिकार करने का तो रहा है मगर अवाम को इस आधार पर बांटने की हिम्मत उस दौर तक में किसी सुल्तान या बादशाह की नहीं हुई। यह हिन्दोस्तान ही है जहां महाराणा प्रताप ने हल्दी घाटी के युद्ध में अपना सिपहसालार एक मुस्लिम पठान हाकिम खां तैनात किया हुआ था, यह भी इतिहास का एक हैरतंगेज पहलू है कि 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ पहला स्वतन्त्रता समर लडऩे की प्रेरणा एक मुसलमान मौलवी अहमद शाह ने ही दी थी। इतिहास का अनाम नायक दिल्ली के बादशाह बहादुर शाह जफर की रहबरी में सभी हिन्दू-मुसलमान रियासतों को एक झंडे के नीचे लाने के लिए भारत भ्रमण पर निकल गया था और इसने देशी रियासतों की एकता कायम कर दी थी, मगर अंग्रेजों ने जब इस मुल्क का निजाम अपने हाथों में इस स्वतन्त्रता समर को कुचल कर लिया तो उन्होंने हिन्दू-मुसलमानों की एकमुश्त ताकत को तोडऩे के सारे इन्तजाम करने शुरू किये और उसी शायर अल्लामा इकबाल के मुंह से पहली बार पाकिस्तान का लफ्ज निकलवा दिया जिसने सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा नज्म लिखी थी।

मुस्लिम लीग के 1932 में हुए इलाहाबाद के जलसे में पहली बार पाकिस्तान का नाम हिन्दोस्तान की सरजमीं पर बोला गया था जिसे किसी और ने नहीं बल्कि खुद मुहम्मद अली जिन्ना ने तब ‘एक शायर का ख्वाब’ करार दिया था मगर अंग्रेजों ने मुल्क को बांटने की अपनी तजवीज पर आगे बढऩा शुरू कर दिया था और इसके लिए उन्होंने जिन्ना के दिल में पाकिस्तान के ख्वाब जगाने शुरू किये जिसने मुस्लिम लीग की निगेहबानी संभाल कर भारत के मुसलमानों को बरगलाना शुरू किया। इसके बावजूद जिन्ना को यह इल्म था कि मजहब के नाम पर तामीर किया गया पाकिस्तान ज्यादा दिनों तक ठहर नहीं पायेगा इसीलिए उसने इस नये मुल्क का कौमी तराना एक हिन्दू शायर ‘जगन्नाथ आजाद’ से लिखवाया था। इसकी असली वजह यही थी कि हिन्दोस्तान में हिन्दू-मुसलमानों के इत्तेहाद की नींव इस मुल्क की मिट्टी की रवायतों पर पड़ी हुई थी जिसे एक जिन्ना तो क्या सौ जिन्ना मिलकर भी नहीं तोड़ सकते थे मगर 1947 में अंग्रेजों ने भारत में ऐसे हालात बना दिये या बनने दिये जिसकी वजह से यह मुल्क खून में नहा गया और पाकिस्तान का वजूद पैदा हो गया मगर 1971 के आते-आते पाकिस्तान की बुनियाद हिल गई और वह फलसफा जमींदोज हो गया कि मजहब के नाम पर कोई भी नया मुल्क अपने वजूद को संभाले रह सकता है।

बंगलादेश के बनने से पाकिस्तान की जड़ें खोखली हो गईं और यह बेनंग-ओ-नाम हो गया। इसके बाद से ही इसके आधे फौजी हुक्मरान अपने वजूद को कायम रखने के लिए कश्मीर का कलमा पढऩे लगे और इन्होंने हिन्दोस्तान के लोगों में फूट डालने के लिए 80 के दशक से दहशतगर्दी का सहारा लेना शुरू किया जिससे भारत के हिन्दू-मुसलमानों को लड़ाया जा सके, मगर यह हिन्दोस्तान की सरजमीं है जिसने रसखान और अब्दुर्रहीम खाने खाना जैसी हस्तियां पैदा की थीं जिन्होंने यहां की मिट्टी में सिजदे करके इस मुल्क को ऊंचाइयों तक पहुंचाया था।

मौजूदा दौर में इसने ब्रिगेडियर उस्मान और हवलदार अब्दुल हमीद ही पैदा नहीं किये बल्कि ड्राइवर सलीम शेख भी पैदा किया जो अमरनाथ यात्रियों से भरी बस को गोलियों की परवाह न करते हुए खुद जख्मी होने के बावजूद महफूज जगह तक लाया। पूरा हिन्दोस्तान सलीम शेख को सलाम करके हिन्दू-मुस्लिम एकता का ध्वज आसमान में इतना ऊंचा उड़ा रहा है कि पाकिस्तान के दहशतगर्दों के पसीने छुड़ाने के लिए काफी है। ऐसे मुसलमान पर कौन हिन्दी फिदा होना नहीं चाहेगा। यही वह ताकत है जो सदियों से इस मुल्क की हस्ती को सजा-संवार रही है। बाबा अमरनाथ की यात्रा गवाह है कि किस तरह इस पवित्र गुफा की निगरानी से लेकर इसके पूजा-पाठ की व्यवस्था कश्मीरी मुसलमान सैकड़ों वर्षों से करते आ रहे हैं मगर पाकिस्तान के दहशतगर्द भूल रहे हैं कि वे ‘कजा’ को दावत दे रहे हैं, हिन्दोस्तानी मुसलमान हमारे गुलिस्तां के अहम हिस्सा हैं।

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