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आज अनुभवी लोगों का दिन है

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आज सारे देश में अनुभवी लोगों (सीनियर सिटीजन) अपना दिन मना रहे हैं। हमारी भारतीय संस्कृति और मेरे अनुसार हर रोज इनका दिन है। रोज ही दिन इनके आशीर्वाद से शुरू होना चाहिए और इनके आशीर्वाद से ही समाप्त होना चाहिए। इनके आशीर्वाद, दुआएं दिल से निकली होती हैं जो कभी खाली नहीं जातीं। इनकी सेवा में हजारों-लाखों पूजा-यज्ञ का पुण्य छुपा है। मुझे लगभग 15 वर्ष हो गए हैं इनके साथ, इनके लिए काम करते हुए और इन्हीं से अनुभव करते हुए, इनका सुख-दु:ख समझते हुए अमर शहीद लाला जगत नारायण जी और अमर शहीद रोमेश चन्द्र जी की अधूरी इच्छा को पूरा करने के लिए वरिष्ठ नागरिक कसरी क्लब की स्थापना की और इतने सालों में इन्हीं के अनुभवों से पुस्तकें लिखीं। ‘आशीर्वाद’, ‘ब्लैसिंग’, ‘जीवन संध्या’, ‘जिन्दगी का सफर’, ‘आज और कल’ और आज ‘अनुभव’ पुस्तक का विमोचन देश के प्रमुख नामी-गिरामी व्यवसायी महाशय जी, गीतकार ओम व्यास और देश के प्रसिद्ध पत्रकार और सांसद अश्विनी कुमार चोपड़ा जी के हाथों से होगा।

असल में बहुत साल पहले जब मैं और अश्विनी जी अमेरिका गए तो वहां हम अपने कजन के साथ ओल्ड होम का दौरा किया और उस समय हमारे कजन ने एक बात कही कि They are waiting for their Death. तब से हमने निश्चय कर लिया कि हम कुछ ऐसा करेंगे जिससे बुजुर्ग, जिन्होंने सारी उम्र बच्चों और समाज के लिए काम किया, इस उम्र में आत्मविश्वास से जिन्दगी के हर पल को जीयें कि वह किसी से कम नहीं और वह मर्यादा में रहकर इस जीवन की संध्या को खुशी से जीयें न कि मौत का इंतजार करें और हमारे देश में वृद्ध आश्रम नहीं होने चाहिएं क्योंकि हमारा देश श्रीराम और श्रवण का देश है। इनके मुख पर एक-एक झुर्री (Lines) इनके अनुभवों को बयान करती है। ये मार्गदर्शक हैं। ये कदमों की धूल नहीं माथे की शान हैं। जब मैंने इस काम को तीनों वर्गों के लिए शुरू किया-गरीब, मध्यम वर्गीय और अमीर बुजुर्ग, क्योंकि इस उम्र में बुजुर्ग चाहे गरीब हो या अमीर, सबको कोई न कोई तकलीफ होती है। अधिकतर तन-मन-धन की, गरीब बुजुर्ग तो रोकर अपनी व्यथा कह लेता है। अमीर बुजुर्ग अन्दर ही अन्दर नाक की (इज्जत की लड़ाई) लड़ता है, डिप्रैशन या हताशा का शिकार होता है।

इस समय इन्हें प्यार और सम्मान की आवश्यकता होती है तो जरूरतमंद बुजुर्गों के हैल्थ कैम्प और मोतियाबिंद के आपरेशन और उनकी जरूरत का सामान दिया जाता है और विश्व में पहली बार ‘एडोप्शन सिस्टम’ शुरू किया कि बुजुर्गों को घर नहीं लेकर जाना, सम्पन्न लोग उन्हें एडोप्ट (यानी दवाई और खाने के पैसे दें) करें ताकि वह अपने घर अपने बच्चों और परिवार में रह सकें क्योंकि वृद्ध आश्रम रोटी, छत तो दे सकते हैं परन्तु अपनापन नहीं और मध्यमवर्गीय लोग यानी जो सर्विस से उच्च पद से रिटायर हैं, कुर्सी के जाते ही समाज और घर के लोगों की नजरें बदल जाती हैं। डिप्रैशन के शिकार होते हैं, कभी-कभी आत्महत्या के केस भी सामने आते हैं और अमीर लोग जिनके बच्चे बाहर विदेश या दूसरे शहरों में सैटल हैं या जिनकी सिर्फ बेटियां ही हैं और वे शादी कर चली गईं, उन्हें अकेलापन महसूस होता है। जब लोग क्लब में आए थे तो उनकी सोच, उनकी अवस्था में फर्क था। आज अगर आप उन्हें मिलें तो वे बदल गए हैं। आज वे झूमकर गाना गाते हैं- आज फिर जीने की तमन्ना है और जिन्दगी एक सफर है सुहाना। आज वे व्यस्त हैं, मस्त हैं। इसमें हमारे सारे ब्रांच हैड्स की कड़ी मेहनत है। नि:स्वार्थ सेवा भावना है। अगर हम चाहें तो एक दिन में एक लाख ब्रांचें खोल सकते हैं।

देश के विभिन्न कोनों से बड़ी डिमांड है परन्तु हम भावना और नि:स्वार्थ सेवा करने वालों के साथ ही ब्रांच खोलते हैं क्योंकि इन बुजुर्गों से ब्रांच हैड्स और हमारे ऐसे सम्बन्ध बन जाते हैं जो खून के रिश्तों से भी ज्यादा प्यारे हैं और आज यह बुजुर्ग नहीं हमारे हीरो-हीरोइन हैं, गायक हैं, एक्टर हैं, डांस करते हैं, शेरो-शायरी करते हैं। आज ‘अनुभव’ पुस्तक से ये प्रसिद्ध लेखक बनने जा रहे हैं क्योंकि यह पुस्तक इनके द्वारा ही लिखी गई है। फर्क सिर्फ इतना है कि मैंने इनको अपनी इस उम्र के अनुभव लिखने को कहा था और यह भी कड़ी प्रार्थना की थी कि मेरे बारे में कुछ नहीं लिखना परन्तु जब पुस्तक प्रिंट होने जा रही थी तो देखा सबने अपने वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब के अनुभव लिखे और न-न करते कहीं न कहीं एक लाइन तो जरूर मेरे बारे में लिख ही दी क्योंकि यह भी समझ आता है कि बच्चा-बुजुर्ग एक समान है। यह अपनी जिद और प्यार तो जरूर दिखाते हैं। चलो जो भी हो मर्यादा में रहकर अपने लाड़-प्यार से आशीर्वादों की झड़ी लगाते रहें, तो आओ चलें उनके साथ, जिन्होंने हमें अंगुली पकड़कर चलना सिखाया।

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