लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने सम्बोधन में एक हजार दिनों के भीतर देश के हर गांव में बिजली पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया था। अब तक देश के 15 हजार गांवों में बिजली पहुंचा दी गई है, अब शेष रहते तीन हजार गांवाें में जल्द से जल्द बिजली पहुंचाने का काम किया जा रहा है लेकिन गांव में बिजली के खंभे लगा दिए जाएं और गरीबों के घरों में अंधेरा हो, इससे बात बनने वाली नहीं। गरीबाें के घर में उजाला होना ही चाहिए। बिजली किसी भी देश की प्रमुख जरूरत है। इसके बिना बुनियादी सुविधाओं पर अतिरिक्त जोर पड़ता है, जिसके कारण विकास के रास्ते में बाधाएं आती हैं। उद्योग, कृषि, सेवाओं और देखा जाए तो जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए बिजली की जरूरत होती है। अगर घर में ही बिजली नहीं हो तो फिर विकास का काेई अर्थ ही नहीं रह जाता।
वर्तमान पीढ़ी को इस बात का अहसास तक नहीं होगा कि उनकी पुरानी पीढ़ियों ने अभूतपूर्व बिजली संकट को झेला है। एक बल्ब के सहारे पूरा परिवार जीता था, विलासिता के उत्पाद भी नहीं थे। शाम ढलते ही परिवार रात्रि भोजन कर लिया करते थे। जैसे-जैसे जीवनशैली बदलती गई, लोग सुख-सुविधाओं के हर माध्यम का इस्तेमाल करने लगे, बिजली की मांग बढ़ती गई लेकिन उत्पादन मांग के अनुसार नहीं था। लोगों ने ऐसे दिन भी देखे जब हफ्ते-हफ्ते बिजली नहीं आती थी। आजादी के 70 वर्ष बाद देश के कई दूरदराज के क्षेत्र हैं जहां बिजली नहीं है, आज भी ये क्षेत्र समाज की मुख्यधारा से कटे हुए हैं। न तो वहां बिजली है, न सड़कें और न ही अन्य बुनियादी सुविधाएं।
कभी कोयले की आपूर्ति कम हुई तो भीषण गर्मियों में भी बिजली कटौती शुरू हो जाती थी, कभी तकनीकी गड़बड़ी हुई तो बिजली सप्लाई ठप्प हो जाती थी। लोगों काे याद होगा 31 जुलाई, 2012 की रात जब महज 48 घंटे के भीतर एक के बाद एक तीन ग्रिड फेल हो जाने से देश का काफी हिस्सा अंधेरे में डूब गया था। ग्रिड फेल होने के कारण जगहंसाई कोई एक बार नहीं हुई बल्कि बार-बार होती थी। कारण था बिजली का असमान वितरण।बिजली उत्पादन में वृद्धि का लाभ संभ्रांत वर्ग तक पहुंचाया जाता रहा और आम आदमी अंधकार में रहने को मजबूर हुआ। मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद हालात काफी बदले हैं। अब न पावर ग्रिड फेल होने दिए जा रहे हैं और न ही कोयले की आपूर्ति कम होने दी जा रही है। अब बिजली का उत्पादन भी सरप्लस होने लगा है यानी पहले से 12 फीसदी अधिक बिजली उत्पादन हो रहा है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के गरीब परिवारों को मुफ्त में गैस कनैक्शन दिए। रसोई गैस पर सब्सिडी प्राप्त करने वाले संभ्रांत वर्ग ने प्रधानमंत्री की अपील पर स्वेच्छा से सब्सिडी छोड़ी। जितनी बचत हुई, उसी का लाभ गरीबों तक पहुंचाया गया। महिलाओं को स्वच्छ ईंधन उपलब्ध हुआ। चूल्हे, स्टोव से मुक्ति मिली। यह चिंता का विषय रहा कि आखिर गरीबों के घर तक विकास की किरण कैसे पहुंचे, जिससे वह आज तक वंचित रहा है। घर-घर में उजाला हो, इसलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बड़ी महत्वाकांक्षी योजना का आगाज किया है। इस योजना का नाम ‘प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर’ योजना रखा गया है जिसे ‘सौभाग्य योजना’ के नाम से प्रचारित किया गया है। विपक्ष भले ही इस योजना को चुनावी योजना कहकर आलोचना करे और कहे कि यह योजना 2019 के आम चुनावों से पहले लाकर मोदी सरकार चार करोड़ गरीब परिवारों को सीधे अपनी तरफ खींचने की कोशिश कर रही है लेकिन अगर इस योजना से करोड़ों परिवारों को बिजली का कनैक्शन मुफ्त में मिले, हर परिवार को पांच एलईडी बल्ब, एक बैट्री और एक पंखा मिल जाए, जिसमें उनका जीवन सहज हो जाए तो इससे बेहतर क्या होगा ?
यह पूरी कयायद 70 वर्ष बाद मुख्यधारा से कटे लोगों को जोड़ने की कवायद सिद्ध होगी। अब लोगों को सरकारी बाबुओं और पंचायत के मुखिया के दरवाजे पर चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे। अब सरकारी कर्मचारी घर-घर जाकर कनैक्शन देंगे। गांवों में शौचालय बनाने में काफी घपलेबाजी हुई है। सरपंचों ने अपने लिए शौचालय महंगे पत्थरों से बनवाए जबकि दूसरों के लिए शौचालय ऐसे बनवाए, जो हल्का सा धक्का लगने से ही धराशायी हो जाए। कई जगह तो केवल कागजों में ही शौचालय बनाए गए, क्योंकि निगरानी नहीं रखी गई। सौभाग्य योजना को सफल बनाने के लिए पूरा निगरानी तंत्र होना चाहिए ताकि कोई घपलेबाजी नहीं हो सके। सरकार की योजनाओं को ठीक से लागू करने की चुनौती बहुत बड़ी है। इसलिए राज्य सरकारों को भी पूरी मुस्तैदी से काम करना होगा। योजनाअाें को सही ढंग से कार्यान्वित नहीं किया गया तो उनका कोई फायदा नहीं मिलता। उज्ज्वला के बाद घर-घर में उजाला हो तो अंधेरे में जीने को अभिशप्त करोड़ों लोगों की जिन्दगी बदल जाएगी।