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हम हिन्द के वासी हिन्दोस्तानी

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हरियाणा के हिसार शहर में एक मस्जिद के इमाम के साथ बजरंग दल के कारकुनों ने जिस तरह का बर्ताव किया है वह भारतीयता पर सीधा हमला है। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश के आगरा शहर में विश्व हिन्दू परिषद के कार्यकर्ताओं ने हाथों में हथियार लेकर जिस तरह प्रदर्शन किया वह भी भारत की अहिंसक संस्कृति को चुनौती से कम नहीं है। दोनों ही प्रदर्शन अमरनाथ यात्रियों पर हुए हमले के खिलाफ आयोजित किये गये। हिसार में तो हद पार कर दी गई और इमाम साहब के साथ बाकायदा कुछ लोगों ने मारपीट की। उनसे कहा जा रहा था कि वह भारत माता की जय का नारा लगायें। राष्ट्र भक्ति का प्रमाण पत्र सड़कों पर बांटने वाले इन लोगों से सबसे पहले यह पूछा जाना चाहिए कि वे कौन से भारत के उपासक हैं? यही भारत माता है जिसके चरणों में अंग्रेजों से आजादी पाने के लिए लाखों मुसलमानों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिन्द फौज में मुसलमान जनरलों से लेकर हजारों जवानों ने अंग्रेजों की सेनाओं से युद्ध लड़ा था।

वे आजादी के दीवाने संयुक्त हिन्दोस्तान की आजादी के लक्ष्य को लेकर अपनी जान हथेली पर रखकर लड़ रहे थे मगर अंग्रेजों ने इस हिन्दू-मुस्लिम एकता से घबरा कर ही भारत के दो टुकड़े मुस्लिम लीग को अपना मोहरा बना कर डाले थे। इतिहास की इस त्रासदी से हम भारतवासियों को सबक सीखने की जरूरत है मगर हम उलटी दिशा में जा रहे हैं और फिर से हिन्दू-मुस्लिम इत्तेहाद को निशाने पर रखने की गलती कर रहे हैं। अमरनाथ यात्रियों की हत्या से केवल हिन्दू ही नहीं बल्कि भारत और कश्मीर तक के मुसलमान दिल से दुखी हैं और जिस लश्करे तैयबा के आतंकवादियों ने इस घटना को अंजाम दिया है उन्हें मुसलमान मानने के लिए तैयार नहीं हैं लेकिन कुछ सिरफिरे लोग पूरे देश के मुसलमानों की राष्ट्रभक्ति की तसदीक करने के लिए उतावले हो रहे हैं और इस उन्माद में वे साम्प्रदायिक भाईचारे को तोडऩे तक की हरकतें करने पर आमादा हैं।

ऐसा करके वे सोच रहे हैं कि वे भारत की उदात्त समग्र हिन्दू संस्कृति और हिन्दू राष्ट्रवाद के प्रवर्तक बन सकते हैं जबकि उनका कार्य ठीक इसके उलट है क्योंकि उनके ऐसे कारनामों से भारत घर में ही नहीं दुनिया भर में प्रतिगामी व अंधेरे में ले जाने वाली ताकतों का बसेरा समझा जायेगा और सबसे ऊपर भारत भीतर से कमजोर होगा। इसकी सारी आर्थिक गतिविधियों के विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। ऐसी शक्तियों को भ्रम पैदा हो गया है कि देश की वर्तमान सत्ता से उन्हें कोई खतरा नहीं है मगर वे भूल रहे हैं कि आज की भारतीय जनता पार्टी साठ या सत्तर के दशक का भारतीय जनसंघ नहीं है, अब यह समूचे भारत की सत्ताधारी पार्टी है जिसका लक्ष्य ‘सबका साथ-सबका विकास’ है और इसकी ताकत हिन्दुवाद नहीं बल्कि गरीबों का साथ है। 2014 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को भारी जीत मिलने का बहुत बड़ा कारण श्री नरेन्द्र मोदी का ‘एक गरीब चाय बेचने वाले का बेटा’ होना था।

भारत की सत्तर प्रतिशत गरीब जनता को लगा कि पहली बार किसी गरीब का बेटा देश के सत्ताधीशों को खुली चुनौती देकर प्रधानमन्त्री पद पर बैठना चाहता है इसीलिए जाति-पाति के बन्धन को तोड़कर आम भारतीय ने उन्हें अपनी पसन्द बनाया मगर चाहे विश्व हिन्दू परिषद हो या बजरंग दल हो या श्रीराम सेना या अन्य कोई कट्टरपंथी हिन्दुवादी दल, सभी को यह मालूम होना चाहिए कि इस देश के लोगों ने स्वतन्त्रता के बाद से किसी भी सम्प्रदाय के कट्टरपंथी दल को स्वीकार नहीं किया। मुसलमानों ने भी स्वतन्त्रता के बाद से किसी मुस्लिम को अपना नेता नहीं माना। इस सम्प्रदाय के लोगों के लोकप्रिय नेता भी हिन्दू ही रहे। बेशक बीच-बीच में कट्टरपंथी मुस्लिम दल सिर उठाते रहे मगर उनकी लड़ाई जनसंघ के खिलाफ सिमट कर रह गई।

आज की भारतीय जनता पार्टी केवल उत्तर भारत की हिन्दुवादी पार्टी नहीं है बल्कि यह दक्षिण के कर्नाटक और केरल तक की अखिल भारतीय पार्टी है। इसका विस्तार हिन्दुत्व के दायरे में नहीं बल्कि भारतीयता के दायरे में हुआ है और इससे भी ऊपर गरीबों के हक को अपना सिद्धान्त बनाने पर हुआ है। मुझे अभी तक याद है कि सत्तर के दशक तक में यह कहा जाता था कि यदि जनसंघ कोई आर्थिक कार्यक्रम भी जनता के सामने पेश करे तो यह अखिल भारतीय दल हो सकता है। श्री नरेन्द्र मोदी का सबसे बड़ा योगदान यही है कि उन्होंने गरीबों के सामने आर्थिक कार्यक्रम रखकर अपनी पार्टी का विस्तार किया है और इसे संकीर्ण दायरे से बाहर निकाला है मगर कुछ उन्मादी लोग इस गति को हिन्दू-मुसलमान का बखेड़ा खड़ा करके पीछे की तरफ मोडऩा चाहते हैं।

क्या यह बेवजह है कि इस देश में आज हिन्दू महासभा का नामो निशान मिट गया है। मुस्लिम लीग का कोई नाम लेना वाला नहीं है। इसकी वजह यह नहीं है कि हम बहुसंख्यक वाद (मेजोरिटिज्म) की तरफ मुड़ गये हैं बल्कि यह मतलब है कि हमने ‘आर्थिक समावेशीकरण’ को राजनीति का हिस्सा बना दिया है। बेशक राष्ट्रवाद की भूमिका इसमें आधार स्तम्भ की है मगर हिन्दू कट्टरता का कोई स्थान नहीं है क्योंकि ऐसा होते ही राष्ट्रवाद का आधार जातिगत सींखचों में बंट जायेगा। मगर हिसार के सिरऌिफरों को कौन समझाये कि प. बंगाल में हर मुसलमान जब तिरंगा उठाता है उसके मुंह से खुद ही आवाज निकलती है ‘वन्दे मातरम’, उत्तर प्रदेश या अन्य पड़ौसी राज्यों के मुसलमान ‘जय हिन्द’ का उद्घोष पूरे जोश के साथ करते हैं। यह नारा नेताजी की फौज का नारा है।

जिन हिन्दुओं के तेंतीस करोड़ देवी-देवता हैं क्या वे भारत माता को एक ही रूप में देखने की गलती कर सकते हैं? जय हिन्द बोलने से भी भारत माता निराकार रूप में अपने नागरिकों की वन्दना स्वीकार करती है। हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि हम हिन्दोस्तान हैं, पाकिस्तान नहीं जहां मजहब के नाम पर ही आज भी मुसलमान से मुसलमान को ही लड़ाया जाता है। हमारी असली लड़ाई तो ऐसी प्रवृत्तियों को ही भारत में आने से रोकने की है। क्या भारत के लोग भूल सकते हैं कि 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान स्वयं श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि मुझे देवालय की चिन्ता नहीं है, पहले हर घर में शौचालय की चिन्ता है। यही तो वह आर्थिक समावेशीकरण का मंत्र है जिसके भारतवासी दीवाने हो गये थे। अत: जो लोग गाय के नाम पर भी लाठी-डंडे चलाते हैं वे भी समझें कि गाय यदि उनकी माता है तो मरने के बाद उसे दलितों के कन्धे पर क्यों लाद दिया जाता है? उसके अंतिम क्रियाकर्म के समय वे कहां गायब हो जाते हैं?

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