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क्यों सुलग रहा है पाकिस्तान

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क्या पाकिस्तान में सेना फिर बैरकों से बाहर आ सकती है? क्या फिर वहां लोकतंत्र कुचला जाएगा? यह सवाल औचित्यहीन हो चुके हैं। सबको पता है कि पाकिस्तान में लोकतंत्र एक मजाक है। दुनिया को दिखाने के लिए महज ठेंगा है। पाकिस्तान में धर्म आधारित लगभग 300 राजनीतिक पार्टियां और धार्मिक संगठन हैं, जो शरिया कानून को अपने स्वरूप के अनुसार ढाल कर राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक प्रणाली को बदलने के लिए काम कर रहे हैं। आतंकवादी समूहों के सिद्धांत राजनीतिक और धार्मिक पार्टियों के सिद्धांतों से मेल नहीं खाते और उन्होंने अपने एजैंडे को स्थानीय स्तर से बढ़ाकर विश्व स्तर का बना लिया है और साथ ही क्षेत्रीय और वैश्विक आतंकवादी नेटवर्कों के साथ उनकी सांठगांठ है।

1970 में पाकिस्तान में केवल 30 धार्मिक संगठन सक्रिय थे जिनमें 7 देवबंदी संगठन थे, 5 बरेलवी, 4 अहल-ए-हदीस और 3 शिया थे। 1980 के बाद नए धार्मिक संगठनों ने सिर उठाना शुरू कर दिया जबकि पुराने संगठन कई गुटों में बंट गए। अब इन संगठनों की संख्या काफी बढ़ चुकी है। 1979-90 के दौरान स्थापित संगठन और समूह मुख्यत: जिहादी और साम्प्रदायिक स्वरूप के थे। सभी बड़े जिहादी और साम्प्रदायिक संगठन इस दौरान अस्तित्व में आए जिन्होंने समाज को कट्टïरपंथी इस्लाम के लिए प्रेरित किया। पाकिस्तान फिर सुलग रहा है तो इसका कारण है कट्टïरपंथी इस्लाम। अब तो वहां मदरसा प्रशासकों ने अपने समूह बना लिए हैं। तहरीक-ए-खन्म-ए-नबूवत, तहरीक-ए-लब्बैक या रसूल अल्लाह (टीएलवाईआर) और सुन्नी तहरीक पाकिस्तान के करीब 2000 कार्यकर्ताओं ने दो सप्ताह से ज्यादा समय से इस्लामाबाद एक्सप्रैस-वे और मुर्दी रोड की घेरेबंदी कर रखी थी। यह सडक़ इस्लामाबाद को एकमात्र हवाई अड्डïे और सेना के गढ़ रावलङ्क्षपडी से जोड़ती है।

तहरीक-ए-लब्बैक ने कानून मंत्री जाहिद हमीद को चुनावी शपथ में बदलाव का दोषी ठहराते हुए उनके इस्तीफे की मांग की थी। पिछले 2 अक्तूबर को पाकिस्तान की संसद ने चुनाव सुधार विधेयक 2017 को पारित किया। इसमें निर्वाचित प्रतिनिधियों ने शपथ से खात्मे नबूवत या पैगम्बर मोहम्मद वाले खंड को हटा दिया था। इन संगठनों ने इसे ईशनिंदा बताया। इस पर सडक़ पर कोहराम मच गया। तहरीक-ए-लब्बैक के प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए सुरक्षा बलों ने कार्रवाई की तो ङ्क्षहसक झड़पों में 6 लोग मारे गए और अनेक घायल हुए। सेना बुलाई गई और आंदोलनकारियों के दबाव में कानून मंत्री ने इस्तीफा दे दिया। उनके इस्तीफे के बाद आंदोलन भी खत्म हो गया।

पाक सरकार ने कट्टरपंथियों के आगे घुटने टेकते हुए शपथ ग्रहण की पुरानी प्रक्रिया को बहाल कर दिया। प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कार्रवाई कोर्ट के आदेश पर ही की गई थी। पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून पहले भी उसे अशांत कर चुका है। यह एक बेहद कठोर, दमनकारी और भेदभाव से भरा कानून है लेकिन जब भी कोई उसमें संशोधन या परिवर्तन की बात करता है तो उसे इस्लाम का दुश्मन करार दे दिया जाता है। पंजाब प्रांत के गवर्नर सलमान तासीर ने इस कानून को कठोर बताया था तो उनके ही सुरक्षा गार्ड मुमताज कादरी ने ही उनकी हत्या कर दी थी। कादरी को गिरफ्तार करके जब उसे अदालत लाया जा रहा था तो वकीलों ने उस पर फूल बरसाए थे। जिस जज ने मुमताज कादरी को फांसी की सजा सुनाई थी, वह भी सजा सुनाने के बाद देश छोड़ गए थे। मुमताज को फांसी तो हो गई लेकिन समर्थकों ने उसकी याद में मजार बना दी और वहां हर वर्ष उर्स किया जाता है। तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) एक इस्लामिक राजनीतिक दल है जिसका नेतृत्व खादिम हुसैन रिजवी कर रहे हैं। इसका गठन एक अगस्त 2015 को कराची में हुआ था जो धीरे-धीरे राजनीति में प्रवेश करता चला गया। इसका मुख्य मकसद पाकिस्तान को एक इस्लामिक राज्य बनाना है जो शरियत-ए-मुहम्मदी के अनुसार चले। खादिम हुसैन रिजवी प्रसिद्ध इस्लामिक विद्वान है। टीएलपी का गठन उस विरोध आंदोलन से हुआ था जिसे पंजाब के पूर्व गवर्नर के हत्यारे मुमताज कादरी के सम्मान में आयोजित किया गया था। सितम्बर 2017 में आयोजित लाहौर की एक सीट पर हुए उपचुनाव में इसने निर्दलीय उम्मीदवार का समर्थन किया था। उसके बाद इसका चुनाव आयोग में पंजीकरण हो गया।

पाकिस्तान सरकार और स्थानीय पुलिस प्रशासन के 2000 प्रदर्शनकारियों को खदेडऩे के लिए पसीने छूट गए। पाकिस्तान में धरने-प्रदर्शन तो होते ही रहते हैं लेकिन इस बार नौबत यहां तक आ गई कि सभी टीवी चैनलों को प्रसारण रोकना पड़ा। प्रदर्शनकारी हिंसक हो उठे तो पाक के एक मंत्री ने इसका दोष भारत पर मढ़ दिया। इससे पाकिस्तान की दुनिया भर में खिल्ली उड़ी। इससे पता चलता है कि पाक में धार्मिक आधार पर सियासी पार्टियां और समूह इतने ताकतवर हो चुके हैं कि वे सरकारों को झुकाने की क्षमता रखते हैं। मोहाजिर कौमी मूवमेंट के अल्ताफ हुसैन का कहना भी सही है कि पाक का लोकतंत्र फिर खतरे में है क्योंकि सेना वहां अपना वर्चस्व साबित करने के लिए कट्टïरपंथी ताकतों का इस्तेमाल कर रही है। तमाम सबूतों के बावजूद मुम्बई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद की रिहाई सेना के हस्तक्षेप से ही सम्भव हुई है। ऐसी स्थिति में भारत को और सतर्क रहना होगा, जो सेना और आईएसआई अमेरिका की सुनने को तैयार नहीं, वह किसी और की क्यों सुनेगी। दुनिया में अलग-थलग पड़ चुके पाकिस्तान का भविष्य क्या होगा, यह भी भविष्य के गर्भ में है। हो सकता है कि पाकिस्तान अपने घर की आग से ही खाक हो जाए।

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