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बीसीसीआई में तूफान क्यों?

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होली निकल चुकी है और भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड में नया भूचाल भी आ चुका है। पहले ही कहा जा रहा था कि बस होली खत्म होनेे का इंतजार कीजिये और देखिये किस-किस के चेहरे के रंग उड़ेंगे। भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष सी.के. खन्ना, कार्यवाहक सचिव अमिताभ चौधरी और कोषाध्यक्ष अनिरुद्ध चौधरी की कुर्सी जाना तो लगभग तय माना ही जा रहा था लेकिन नाटकीय घटनाक्रम में आरोपों और प्रत्यारोपों के बीच प्रशासकों की समिति (सीओए) और बीसीसीआई पदाधिकारियों के बीच चल रही तनातनी ने विकृत रूप धारण कर लिया, जब चेयरमैन विनोद राय ने इन तीनों के पर कतर दिए।

विनोद राय ने 30 जनवरी 2017 को सुप्रीम कोर्ट की ओर से जारी आदेश को आधार बनाकर तीनों पदाधिकारियों की शक्तियों में भारी कटौती कर दी, वहीं सीईओ राहुल जौहरी की शक्तियां बढ़ा दी गईं। अब तीनों ही पदाधिकारियों को अपना और अपने कर्मियों का यात्रा खर्च लेने के लिए सीओई की मंजूरी लेनी होगी। किसी भी अनुबंध या नियुक्ति पर अगर कार्यवाहक सचिव ने पांच दिन के भीतर हस्ताक्षर नहीं किए तो सीओए की मंजूरी से सीईआे के हस्ताक्षर पर इसे मंजूरी दे दी जाएगी। इस आदेश के साथ ही भारतीय क्रिकेटरों के मोटे वार्षिक अनुबंध का रास्ता साफ हो गया है।मैंने भी क्रिकेट खेली है, क्रिकेट मेरा पहला कैरियर रहा है।

आज जब बीसीसीआई की हालत देखता हूं तो व्यथित जरूर होता हूं कि आखिर दुनिया के सबसे धनी और प्रतिष्ठित बोर्ड का क्या हाल हो चुका है। भ्रष्टाचार, मैच फिक्सिंग, सट्टेबाजी, महत्वपूर्ण पदों पर वर्षों तक काबिज रहने की राजनीतिज्ञों की महत्वाकांक्षाओं और राजनीति में अपने सोशल स्टेटस के इस्तेमाल की इच्छाओं ने बोर्ड को इस मुकाम तक पहुंचा दिया है कि बोर्ड पर चारों तरफ से अंगुलियां उठने लगी हैं। बड़े खेल कभी-कभी बहुत चमत्कारिक होते हैं लेकिन कभी-कभी बड़े खेल विकृति में बदल जाते हैं।

बीसीसीआई से लेकर आईसीसी तक धन का बोलबाला हो गया। क्रिकेट में नए-नए फोरमैट आते गए। मैच फिक्सिंग, स्पॉट फिक्सिंग उत्कर्ष पर पहुंचा आैर क्रिकेट के क्लब संस्करणों ने देश के स्कूली बच्चों से लेकर कॉलेज छात्रों तक, जहां तक के घर के भीतर बैठी गृहणियों को भी सट्टेबाज बना दिया। शॉर्टकट की विडम्बना देखिये, कई खिलाड़ियों का कैरियर तबाह हो गया, कुछ को जेल जाना पड़ा आैर कुछ ने प्रतिबंध झेला। राज्य क्रिकेट संघों पर राजनीतिज्ञों का कब्जा रहा। गुरु घंटाल ससुर-दामाद, उद्योगपति बाप-बेटे, राजनीतिज्ञ और उनकी पत्नियां आईपीएल में खेल करते रहे। एक दौर ऐसा भी आया कि देश में सट्टेबाजी को वैध बनाने की वकालत की जाने लगी।

एक जेंटलमैन खेल घोटाले में तब्दील हो गया। सुप्रीम कोर्ट द्वारा लोढा समिति की सिफारिशें लागू किए जाने से बड़े-बड़े दिग्गजों को बाहर का रास्ता दिखाया गया और बीसीसीआई को एक ईमानदार संगठन में परिवर्तन करने की कोशिशें की गईं। बदलते घटनाक्रम के बीच बीसीसीआई में उन लोगों की लॉटरी खुल गई जो पदों के अयोग्य थे। मौजूदा टकराव के चलते बीसीसीआई पदाधिकारियों की त्योरियां चढ़ गई हैं। बोर्ड पदाधिकारी विनोद राय के कदम को तानाशाहीपूर्ण मानते हैं। बोर्ड के पदाधिकारी का कहना है कि सोसायटी एक्ट के तहत बिना उनके हस्ताक्षर के कोई भी अनुबंध या पेमेंट नहीं हो सकता है। वे इस सम्बन्ध में कानूनी सलाह ले रहे हैं।

एक तरफ भारतीय क्रिकेटरों के केन्द्रीय करार में देरी से सीओए विनोद राय चिढ़ गए हैं क्योंकि खिलाड़ियों के बीमे खत्म होने वाले थे। दूसरी तरफ सचिव अमिताभ ने सीओए की गई कुछ नियुुक्तियों पर अंगुली उठाकर मामले को गरमा ​दिया है। इनमें पेज थ्री के एक पूर्व पत्रकार और एक प्रोडक्शन कम्पनी से जुड़े व्यक्ति को जीएस मार्केटिंग के रूप में एक करोड़ 65 लाख के सालाना पैकेज पर नियुक्ति भी शामिल है। सवाल यह भी उठता है कि क्या भारतीय क्रिकेट को मार्केटिंग की जरूरत है, सवाल तो बनता है। दूसरी तरफ क्रिकेट के नाम पर पदाधिकारियों की विदेश यात्राएं, महंगे होटलों में रहना हमेशा ही चर्चा का विषय रहा है।

कौन नहीं जानता कि क्रिकेट के नाम पर पदाधिकारी क्या-क्या करते रहे हैं। तभी तो सीओए ने बीसीसीआई के कार्यवाह सचिव अमिताभ चौधरी से श्रीलंका दौरे पर सवाल उठा ​दिया है। कुछ बोर्ड पदाधिकारियों ने बिना कोई विशिष्ट उद्देश्य के उनकी श्रीलंका प्रस्तावित यात्रा पर सवाल उठाया था। विनोद राय ने उनसे पूछा है कि वह श्रीलंका की यात्रा के दौरान क्या-क्या काम करेंगे। बोर्ड ने पाया कि अमिताभ चौधरी एक माह में 25-25 दिन या​​त्राएं करते हैं और बिल बीसीसीआई से लेते हैं। सवाल तो उठेंगे ही, वह इतनी यात्राएं किस उद्देश्य से करते हैं।

बीसीसीआई में मौजूद टकराव हितों का ही टकराव है। विनोद राय तो सातवीं स्टेटस रिपोर्ट में सी.के. खन्ना, अमिताभ चौधरी और अनिरुद्ध चौधरी की बर्खास्तगी की मांग पहले ही कोर्ट से कर चुके हैं। इनकी तीन साल की अवधि भी खत्म हो चुकी है। इन्हें कूलिंग पीरियड में जाना ही होगा और कई राज्य क्रिकेट संघ के पदाधिकारी भी इससे प्रभावित होंगे। जरूरत है बोर्ड की आेवरहालिंग की क्योंकि खेलों से जुड़े व्यक्तित्व बोर्ड का संचालन करते। बोर्ड को कोई प्रशासनिक अधिकारी लम्बे अर्से तक नहीं चला सकता। इसके लिए खेलों से जुड़े लोगों का समूह भी चला सकता है। बोर्ड में टकराव खत्म कर नई व्यवस्था कायम करनी ही होगी।

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