भारतीय सेना के ‘लेफ्टिनेंट उमर फैयाज’ की कश्मीर में आतंकवादियों ने जिस तरह हत्या की है उससे साबित हो गया है कि इस राज्य में कथित आजादी की लड़ाई लडऩे वाले लोग कश्मीरी जनता के ही सबसे बड़े दुश्मन हैं। फैयाज कश्मीर के ही नागरिक थे और एक ऐसे होनहार नौजवान थे जो सेना में भर्ती होकर ‘मातृभूमि’ की रक्षा करना चाहते थे। इससे यह भी पुन: साबित हो गया है कि कश्मीर की आम जनता ‘देश प्रेमी’ है और वह भारत में अपना भविष्य देखती है। पाकिस्तान परस्त ‘आतंकवादियों’ से यह बर्दाश्त नहीं हो पा रहा है और वे पूरे कश्मीरी समाज को आतंक के साये में जीने के लिए मजबूर करना चाहते हैं मगर यह किसी भी सूरत में संभव नहीं हो सकता क्योंकि कश्मीरी मूलत: ‘पाकिस्तान विरोधी’ हैं। 1947 में भारत के बंटवारे का पुरजोर विरोध यदि किसी राज्य के लोगों ने एक स्वर से किया था तो वह जम्मू-कश्मीर ही था। अत: मजहब के नाम पर भारत को बांटने के खिलाफ बुलन्द आवाज जम्मू-कश्मीर से ही उठी थी अत: आज यदि इस राज्य में पाकिस्तान अपने चन्द गुर्गों के माध्यम से ‘मजहब’ को आधार बनाकर कश्मीर के लोगों को बरगलाना चाहता है तो उसे घोर निराशा ही मिलेगी। कश्मीर के एक फैयाज को मारने के बदले इस राज्य के हर घर में फैयाज पैदा होगा। भारतीय फौजों पर पत्थर फैंकने वाले सुनें कि उनके जुल्म में इतना दम नहीं है कि वे कश्मीरियत को फना कर सकें। क्योंकि इस राज्य के लोगों ने अपनी मर्जी से अपना भविष्य भारत के साथ जोड़ा है। बेशक कुछ लोग रास्ता भटक सकते हैं मगर वे ‘कश्मीर’ को ‘कश्मीर’ होने से कभी नहीं रोक सकते। लेफ्टिनेंट फैयाज की ‘शहादत’ बेकार नहीं जा सकती। अपनी शहादत से वह कश्मीर के युवाओं को सन्देश देकर चले गये हैं कि अपनी मिट्टी की हिफाजत में सर्वस्व न्यौछावर करना ही कश्मीरियत है। अत: जो लोग पाकिस्तान के इशारे पर इस खूबसूरत वादी को ‘दोजख’ में बदल देना चाहते हैं उनके खिलाफ खड़े हो जाओ और उनका डटकर मुकाबला करो। भारतीय फौजों की इसकी हिफाजत में बहुत बड़ी भूमिका है अत: उसमें शामिल होकर अपने कश्मीर को बचाओ मगर कहां है वे लोग जो अफजल गुरू के आतंकी कारनामों की वकालत कर रहे थे और कह रहे थे कि ‘कितने अफजल मारोगे, घर-घर में अफजल पैदा होगा।’ कश्मीर के लोग आज उल्टा यह सवाल अपने दिल में दबाये बैठे हैं कि ‘कितने फैयाज मारोगे, घर-घर में फैयाज पैदा होगा।’ बहुत साफ है कि आतंकवादियों के लिए राष्ट्रभक्त कश्मीरी बहुत बड़ा खतरा हैं इसलिए उन्हें मजहब के नाम पर बरगलाया जा रहा है जबकि हर कश्मीरी जानता है कि उसकी वादी में सदियों से हिन्दोस्तान की ‘गंगा-जमुनी’ तहजीब की ‘बहारें’ अपना नजारा बिखेरती रही हैं। कट्टरपंथी यहां की ‘फिजाओं’ में शुरू से ही ‘बेसुरे राग’ की तरह रहे हैं मगर हकीकत यह भी है कि इस खूबसूरत वादी की फिजाओं में सियासतदानों ने ही जहर भरा है। सूबे की राजनीतिक पार्टियों ने इसके दिलकश नजारों में ‘बारूद भरा है, इन्हीं सियासी जमातों ने भारतीय फौज के खिलाफ लोगों को भड़काने में किसी तरह की कोई कमी नहीं रखी है। जिन सियासी पार्टियों के नेताओं में इतनी तक हिम्मत नहीं है कि वे पाकिस्तान के कब्जे में पड़े अपनी ही रियासत के हिस्से को वापस लेने की मांग कर सकें, वे कश्मीरियों का भला किस तरह कर सकती हैं? जो सियासी पार्टियां यह ‘जायज’ तक मांग नहीं कर सकतीं कि ‘नाजायज मुल्क पाकिस्तान’ उनके कश्मीर के हड़पे हुए इलाके से अपनी फौजें हटाये, वे भारत की फौजों के खिलाफ ही जाकर किस मुंह से कश्मीर की हिफाजत करने का दावा कर सकती हैं? होना तो यह चाहिए था कि पाकिस्तान के कब्जे से कश्मीर को छुड़ाने के लिए इन सियासी पार्टियों का पूरा समर्थन भारतीय फौजों को मिलता जिससे पूरा जम्मू-कश्मीर एक हो सके मगर ये उल्टा ही राग अलापने लगती हैं और अलगाववादियों को भी बातचीत में शामिल करने की तजवीजें आगे बढ़ाने लगती हैं। जिस पाकिस्तान को ‘तालिबानी’ तलवारबाजों ने दोजख में तब्दील कर डाला है उसी के नक्शेकदम पर ये कश्मीर को भी ले जाना चाहती हैं मगर भारत की फौज तो वह फौज है जिसने एक बार नहीं कई बार पाकिस्तान से ‘तौबा’ बुलवाई है और इसमें कश्मीरी जनता की शिद्दत के साथ शिरकत रही है। इसलिए ‘भारत’ के ‘भाल’ को लहूलुहान करने की कोशिशें आखिर में नाकामयाब होकर ही रहेंगी क्योंकि इसकी फौज का ईमान अपने नागरिकों की सुरक्षा करना है।