कौटिल्य ने कहा था-भेड़िया, सर्प और बिच्छू अपनी गति स्वभाव के अनुसार निर्धारित करते हैं, अतः इनसे जब कभी वास्ता पड़ जाए तो इनके स्वभाव को बदलने की चेष्टा न करें क्योंकि इन्हें जीवनदान देना आपकी मृत्यु का भी पर्याय हो सकता है। कौटिल्य ने सूत्र दिया था- हिंसक पशुओं के समक्ष कठोर बनो। गवर्नेंस के लिए कठोरता का संबंध पशुता के विरोध में है। यहां मैं कौटिल्य से हटकर कश्मीर की ओर आता हूं। आज कौटिल्य होते तो राष्ट्रद्रोहियों को बुद्धत्व प्रदान कराने की कोशिश न करते।
हम आजादी के बाद से ही इंतजार करते रहे हैं कि कभी पाकिस्तान के हुक्मरानों का दिल बदलेगा, कश्मीर के लोग राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल हो जाएंगे। न तो पाक के हुक्मरानों का हृदय परिवर्तन हुआ और न ही कश्मीर में युवाओं के आतंकवादी बनने का सिलसिला ही बंद हुआ। कश्मीरी अवाम के लिए सहृदयता तो ठीक है, परन्तु यह सत्य कैसे नकारा जा सकता है कि इस भेड़ियो को शाकाहारी नहीं बना सकते।
कौटिल्य को कैसे नकारें। जो कश्मीर पाकिस्तान के कब्जे में है, उसमें केवल एक ही नीति कारगर हो सकती है, जिसे कभी श्री गुरु गोबिन्द सिंह ने प्रतिपादित किया था।
कोई किसी को राज न देहैं
जो लेहैं, निज बल ने लैहें।
भेड़ियों और इंसानों में आज तक इतिहास में किसी संधि का जिक्र नहीं मिलता। इंसान ने जब भी ऐसा किया, उसने मात खाई है। पाकिस्तान खूनी भेड़िया है आैर भारत इंसान, इतिहास गवाह है कि भारत ने जब भी उससे मैत्री का प्रयास किया, खूनी भेड़ियों ने हमेशा धोखा ही दिया। जम्मू-कश्मीर में हालात 90 के दशक से भी ज्यादा बदतर हो चुके हैं। पाकिस्तान की आतंकी तंजीमों और उसकी खुफिया एजैंसी आईएसआई की मदद से आतंकवादी राज्य में सैन्य छावनियों आैर शिविरों पर हमले कर रहे हैं।
सीमाओं पर पाक की गोलाबारी जारी है। हमारे जवानों का शहादत का सिलसिला जारी है। साथ ही सीमांत क्षेत्रों में गोलाबारी से निर्दोष नागरिक भी मारे जा रहे हैं। भारतीय सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक कर शौर्य का परिचय दिया। पाक गोलाबारी का मुंहतोड़ जवाब देकर उसकी चौकियां भी तबाह कीं, दुश्मन सेना के कई जवान भी मारे लेकिन खूनी भेडि़या पागल हो चुका है। पाकिस्तान आतंक की फैक्टरी है।
उस फैक्टरी में युवाओं के दिमाग में भारत के प्रति जेहाद के नाम पर इतना ज़हर भरा जाता है कि उन्हें अपने भविष्य की कोई चिन्ता नहीं रहती। उन्हें मालूम होता है कि सीमा पार से कश्मीर में धकेल दिए जाने के बाद उन्हें केवल मौत ही मिलेगी। जो केवल मरने आैर मारने के लिए आते हैं, उनका कोई उपचार नहीं किया जा सकता। बुरहान वानी की मौत के बाद आज तक लगातार आतंकवादी मारे जा रहे हैं।
सेना का आप्रेशन आल आऊट आतंकियों के सफाये के लिए सफलतम अभियान कहा जा रहा है लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में हमारे अनेक सैनिकों का शहादत देना जारी है, कितनी मांओं की गोद उजड़ी और कितनी सुहागिनों की मांग उजड़ी, कितने अबोध अनाथ हो गए। अफसोस! जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती कहती हैं कि केवल आतंकवादियों को मार गिराने से आतंकवाद को खत्म नहीं किया जा सकता। इस समस्या से निपटने के लिए मानवीय दृष्टिकोण की जरूरत है।
महबूबा सरकार ने पत्थरबाजों पर से मुकद्दमे वापिस ले लिए। मैं मानता हूं कि कभी-कभी सरकारें मानवीय दृष्टिकोण से ऐसे फैसले ले लेती हैं, वैसे भी 15-15 वर्ष के लड़कों को आप सालों के लिए जेल में नहीं डाल सकते। कार्रवाई तो उनके खिलाफ होनी चाहिए जिन लोगों ने बच्चों को पत्थर फैंकने के लिए दिहाड़ी पर रखा था। कार्रवाई उन लोगों पर होनी चाहिए जिन लोगों ने बच्चों के हाथों में किताबों की जगह पत्थर पकड़वाए।
सवाल तो यह है कि भेड़िये पाकिस्तान पर कैसे काबू पाया जाए। पंडित नेहरू, इंदिरा जी, मोरारजी, चरण सिंह जी, राजीव गांधी, वी.पी. सिंह, चंद्रशेखर, नरसिम्हा राव, देवेगौड़ा, गुजराल और अटल जी, ये सारे के सारे कश्मीर को लेकर चिन्तित तो रहे लेकिन आचरण में गुटरगूं-गुटरगूं करते रहे, सारा कश्मीर षड्यंत्रों और षड्यंत्रकारियों से भर गया। हम रक्षात्मक ही रहे।
सेना कश्मीर में आतंकवाद से कड़ी टक्कर ले रही है लेकिन वह दिन कब आएगा जब हमारा कोई जवान शहीद न हो, सीमाओं पर गोलाबारी रुक जाए, लोग पलायन न करें। हमारे सब्र की सीमा कब खत्म होगी? नाग को वही धारण करे, जो तांडव की क्षमता रखता हो अन्यथा विषधर क्या कर बैठे, विधाता भी नहीं जानता। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को राष्ट्रहित में भेड़िये को खत्म करना ही होगा। कूटनीति, राजनीति कुछ नहीं बल्कि सीधी कार्रवाई करनी होगी। आज देश की नज़रें आप पर लगी हुई हैं-
मांगो-मांगो वरदान धाम चारों से
मंदिर, मस्जिदों, गिरिजा, गुरुद्वारों से,
जब मिले काल, जय महाकाल ‘बोलो रे’
सतश्री अकाल, सतश्री अकाल बोलो रे