उत्तर प्रदेश की कारोबारी राजधानी नोएडा के बारे में एक मान्यता मशहूर है कि यहां मुख्यमंत्री रहते हुए जो भी नेता अाया या तो उसकी सरकार गिर गई या फिर वह चुनाव हार गया। इस मान्यता का इतिहास बहुत पुराना है। हम ऐसे देश में रहते हैं जहां हम आस्था आैर आधुनिकता के विरोधाभास में जीते हैं। जब ऐसी ही आस्थाएं और मान्यताएं सियासत से जुड़ जाती हैं तो काफी दिलचस्प हो जाती हैं। उत्तर प्रदेश के नोएडा का इतिहास जानें तो 1988 में राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह कालिंदी कुंज का उद्घाटन करने आए थे। इसके तुरन्त बाद उनकी सरकार गिर गई थी। 1989 में तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी एक कार्यक्रम में भाग लेने नोएडा आए थे। इसके बाद उन्हें अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी। 1998 में पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह एक कार्यक्रम में आए और इसके बाद उनकी भी सरकार गिर गई थी। 2004 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव एक स्कूल का उद्घाटन करने पहुंचे थे, उसके बाद वह दोबारा मुख्यमंत्री नहीं बन सके। यह सिलसिला 2004 में भी जारी रहा।
बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती नोएडा आई थीं आैर उसके बाद हुए चुनाव में उन्हें करारी पराजय का सामना करना पड़ा। देश की राजधानी दिल्ली से सटा शहर हमेशा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों को डराता रहा है। 29 वर्षों से ज्यादातर मुख्यमंत्री इस औद्योगिक शहर में कदम रखने से बचते रहे हैं। अंधविश्वास के चलते बड़े नेता इस शहर में आने से बचते रहे हैं। समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव मुख्यमंत्री तो बने मगर कुर्सी खोने के डर के कारण उन्होंने इस शहर से दूरी बनाए रखी। उत्तर प्रदेश में सियासी वहम तो बहुत सारे हैं लेकिन नोएडा का वहम सबसे बड़ा है इसीलिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते नोएडा की परियोजनाओं का उद्घाटन लखनऊ में बैठकर ही किया जाता रहा है। यही कारण रहा कि राजनाथ सिंह ने 2001 में नोएडा फ्लाईआेवर का उद्घाटन दिल्ली छोर से ही किया। नोएडा में 2006 में निठारी कांड हुआ, बहुत बड़ा आंदोलन हुआ, सरकार हिल गई लेकिन मुलायम सिंह यादव नोएडा नहीं आए। अखिलेश यादव ने भी नोएडा से गुजरने वाले यमुना एक्सप्रैस-वे का उद्घाटन भी लखनऊ से ही किया था। नोएडा जैसा अंधविश्वास मध्य प्रदेश के अशोक नगर जिले से भी जुड़ा है जिसके मुताबिक जो भी मुख्यमंत्री जिला मुख्यालय आते हैं, उन्हें सत्ता गंवानी पड़ती है। 1975 में प्रकाश चन्द सेठी, 1977 में श्यामाचरण शुक्ल, 1984 में अर्जुन सिंह, 1993 में सुन्दरलाल पटवा अाैर 2003 में दिग्विजय सिंह वहां गए थे जिसके बाद वे दोबारा मुख्यमंत्री नहीं बन पाए।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नोएडा के अंधविश्वास को तोड़ने का फैसला किया। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिवस पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ नोएडा-कालकाजी मैट्रो लाइन का उद्घाटन किया। ऐसा करके मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दिखाया कि वे अंधविश्वास में यकीन नहीं रखते आैर वह नए दौर के मुख्यमंत्री हैं। उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि समूचे देश में ऐसा संदेश दिया जाना जरूरी है कि लोग अंधविश्वासी नहीं बनें। जब योगी ने नोएडा जाकर भ्रम को तोड़ा तो मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए भी अशोक नगर का मिथक चुनौती बन गया। जब पत्रकारों ने उनसे पूछा कि आप अशोक नगर क्यों नहीं आते तो शिवराज चौहान ने कहा-क्यों नहीं जाएंगे, जरूर जाएंगे। अब देखना है कि शिवराज चौहान किस दिन इस मिथक को तोड़ेंगे। सपा प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने योगी आदित्यनाथ पर तंज कसा है कि वह नोएडा तो गए लेकिन उन्होंने न तो मैट्रो को हरी झंडी दिखाई और न ही मैट्रो की शुरूआत वाला बटन दबाया। मुझे उनके तंज में कोई तर्क नजर नहीं आया, न ही कोई आैचित्य दिखाई दिया। अखिलेश यादव तो नोएडा आए ही नहीं, फिर भी वह दोबारा मुख्यमंत्री नहीं बन पाए। कम से कम योगी आदित्यनाथ ने नोएडा आकर भ्रम तो तोड़ ही दिया। देशवासियों को अंधविश्वासों से मुक्ति दिलाना बहुत जरूरी है। देश के लोग आज भी पाखंडी, धूर्त बाबाओं के जाल में फंसे हुए हैं। युवितयां अपनी अस्मत लुटवा रही हैं। देश के लोगों को ऐसे बदमाश बाबाओं से मुक्ति दिलाने के लिए सियासतदान पहले करें तो यह अच्छी बात होगी।