उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कुर्सी सम्भालने के दिन से ही काम करना शुरू कर दिया था। उन्होंने संकल्प पत्र के अनुसार काम करना शुरू किया और वह लोगों को दिखाई भी दे रहा है। योगी आदित्यनाथ जनता में व्याप्त इस धारणा को बदलने की कोशिश कर रहे हैं कि राजनीति लूट के लिए नहीं, सेवा के लिए है। उत्तर प्रदेश में राजनीति दलाली का पर्याय बन चुकी थी और दलालों, माफिया, ठेकेदारों, बिल्डरों के समूह किसी न किसी राजनेता को घेर ही लेते थे। सियासत और प्रशासन को स्वच्छ और ईमानदार बनाने की चुनौती तो उनके सामने है ही, साथ ही समाज में पाई जाने वाली विसंगतियों और विकृतियों को खत्म करने के लिए भी उन्हें बहुत कुछ करना होगा। मुख्यमंत्री योगी की सरकार ने इस दिशा में कदम बढ़ा दिया है। योगी सरकार अब गरीब लोगों की बेटियों की शादी सामूहिक विवाह कार्यक्रम का आयोजन करके करवाएगी तथा उनके खातों में 20 हजार रुपए भी जमा करवाएगी। वहीं उपहार में सभी दुल्हनों को एक-एक स्मार्ट फोन भी दिया जाएगा। इस फैसले के लागू होने पर पहले चरण में 70 हजार से भी ज्यादा लड़के-लड़कियों का सामूहिक विवाह कराया जाएगा। विपक्ष इस फैसले को किसी भी दृष्टि से देखे, लेकिन सामाजिक दृष्टिकोण से यह एक अच्छा फैसला है।
देश में हर जगह सामाजिक संगठन ऐसी पहल करते रहे हैं। दिल्ली जैसे महानगर में भी कुछ संस्थाएं सामूहिक शादियों का आयोजन करती हैं। कन्यादान को महादान माना जाता है, इसलिए लोग अपने सामथ्र्य के अनुसार जो बन पड़ता है, देते हैं। उत्तर प्रदेश के सामाजिक संगठनों को आगे आकर इस काम के लिए योगी सरकार को सहयोग देना चाहिए। गरीबों की बेटियों की गृहस्थी बस जाए, इससे बड़ी और क्या बात हो सकती है। योगी सरकार ने एक और कदम यह उठाया है कि राज्य में सभी धर्मों के लोगों के लिए विवाह का पंजीकरण अनिवार्य बना दिया है। केन्द्र सरकार ने संविधान के अनुरूप विवाह पंजीकरण नियमावली बनाई है जो अब तक उत्तर प्रदेश और नागालैंड में लागू नहीं है जिसे अब उत्तर प्रदेश में लागू किया जा रहा है। विवाह पंजीकरण अनिवार्य होने से स्वयं ही अनेक सामाजिक विकृतियां दूर होंगी। बहुविवाह पर अंकुश लगेगा। मुस्लिम समाज में तलाक को लेकर पीडि़त महिलाएं भी लाभान्वित होंगी। सरकार पंजीकरण के लिए एक पोर्टल बनाएगी। सभी धर्म के लोग इस पोर्टल के जरिये अपने विवाह का पंजीकरण कराएंगे। एक वर्ष के भीतर पंजीकरण कराने वालों को केवल 10 रुपए का शुल्क देना होगा। पंजीकरण में विलम्ब की स्थिति में समय के अनुसार शुल्क बढ़ता जाएगा।
विवाह पंजीकरण को लेकर सभी धर्मों के लोग सहमत हैं लेकिन कुछ मुस्लिम धर्मगुरु अब भी विरोध करने में लगे हैं। मुस्लिम उलेमाओं के विरोध के चलते पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार ने इस नियमावली को लागू करने से रोक दिया था। सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि मुस्लिम भी चार शादियों का पंजीकरण करा सकते हैं। जब यह नियमावली किसी धार्मिक रीति-रिवाज में कोई दखलंदाजी नहीं करती तो फिर आपत्ति का औचित्य ही कहां। मुस्लिमों के एक वर्ग ने पंजीकरण में तस्वीर न लगाने की मांग की थी। ऐसी मांग का भी कोई औचित्य नहीं क्योंकि आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र बिना फोटो के लिए नहीं होता। पासपोर्ट पर भी फोटो लगाना है तो फिर विवाह पंजीकरण में फोटो लगाने पर ऐतराज क्यों? विवाह पंजीकरण के बाद पासपोर्ट लेना आसान होगा। इससे विधिक मामलों में अथवा मृत्यु के बाद एक से अधिक पत्नी के विवाद पर विराम लगेगा। नागालैंड सरकार को भी उत्तर प्रदेश सरकार का अनुसरण कर इसे लागू कर देना चाहिए। वैवाहिक व्यवस्था से जुड़ी बुराइयों का इसके माध्यम से शमन जरूर होगा।
उत्तर प्रदेश सरकार के विवाह पंजीकरण अनिवार्य किए जाने के फैसले पर दारुल उलूम और अन्य देवबंदी उलेमाओं ने कहा है कि वे पंजीकरण के खिलाफ नहीं, ऐसा न करने वालों को सरकारी सुविधाओं से वंचित रखने का फरमान उत्पीडऩात्मक है। शादी के पंजीकरण को जोर-जबर्दस्ती से लागू करना मजहबी आजादी के खिलाफ है। मुस्लिम धर्म में दो गवाहों के सामने निकाह हो जाता है जिससे किसी भी सबूत की जरूरत नहीं पड़ती। उत्तर प्रदेश में बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जिनके पास आज भी न तो पहचान पत्र है और न ही आधार कार्ड, ऐसे में इसे अनिवार्य बनाने की जरूरत नहीं। योगी सरकार को देखना होगा कि इस नियमावली को लागू करने में किसी का उत्पीडऩ न हो। अशिक्षित आबादी सरकारी सुविधाओं से वंचित न हो अन्यथा एक सही फैसले का प्रभाव नकारात्मक होगा। हर समाज को वैवाहिक व्यवस्था की विकृतियां दूर करने लिए स्वयं अपनी मानसिकता बदलनी होगी। यह कैसे होगा, इसकी जिम्मेदारी स्वयं लोगों और धर्मगुरुओं की भी है।